यूपी के बस्ती जनपद के एक गांव का रहने वाला था निर्भया बलात्कार कांड का एक दोषी - तहक़ीकात समाचार

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शुक्रवार, 20 मार्च 2020

यूपी के बस्ती जनपद के एक गांव का रहने वाला था निर्भया बलात्कार कांड का एक दोषी

भास्कर.कॉम के लिए रवि श्रीवास्तव की रिपोर्ट ,खबर की मूल प्रति दैनिक भास्कर के अधीन है 

बस्ती. उत्तर प्रदेश के बस्ती से 35 किमी दूर रुधौली थाना क्षेत्र में विनय का गांव है। गांव का नाम हम नहीं बता रहे हैं क्योंकि यहां के लोग यह नहीं चाहते कि विनय के कारण इस गांव का नाम खराब हो। गांव वालों का कहना था कि आप खबर में गांव का नाम न लिखें, इससे यहां के नौजवानों का भविष्य खराब हो जाएगा। हम सबसे पहले विनय के घर पहुंचे। बरामदे में पड़े तख्त पर चाचा और कमरे के देहरी पर चाची बैठी दिखीं। विनय का नाम लेते ही चाची फफक कर रो पड़ीं। उनकी आंखों से लगातार आंसू गिरते रहे। वह कह रहीं थीं कि पूरी दुनिया हमारे बेटे के पीछे पड़ गयी तो भला वह कैसे बच पाता? उन्होंने कहा सबको लग रहा है कि इस फांसी से कुछ बदल जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि क्या अब जो रेप होंगे उनमें भी कोर्ट फांसी की ही सजा देगी? अगर ऐसा होता है तो फैसला ठीक है। नहीं तो ये गलत है।

एक और नई कहानी जो हमें विनय की चाची से पता चली वो यह थी कि 16 दिसंबर 2012 को हुए इस कांड से ठीक 15 दिन पहले ही विनय की सगाई हुई थी। विनय की चाची बताती हैं कि उस दिन से 15 दिन पहले ही विनय गांव आया था। यहां उसका फलदान हुआ और जल्द ही शादी होने वाली थी। लेकिन उस घटना के बाद हमारे परिवार ने लड़की के घर वालों से माफी मांग ली और दूसरी जगह शादी करने के लिए कह दिया।
विनय दिल्ली में ही पैदा हुआ लेकिन इंटर तक उसने गांव में ही पढ़ाई की
विनय के चाचा मायाराम बताते हैं कि "हम तीन भाई हैं। विनय के पिता हरिराम बहुत पहले ही दिल्ली जाकर बस गए थे। वहां गुब्बारा बेचने का काम करते थे। विनय की पैदाइश भी दिल्ली की ही है लेकिन गांव में रहकर उसने इंटर तक पढ़ाई की। निर्भया कांड से पहले उसने मिलिट्री का फॉर्म भी डाला था।" चाचा ने यह भी बताया कि विनय के परिवार में अब माता-पिता, एक बेटा और दो बेटियां हैं।
बाबा ने विनय को जेल में रोता देखा और फिर कुछ दिन बाद उनकी जान चली गई
चाचा ने बताया, "हमारे घर में टीवी नहीं है। सुबह 4 बजे से ही दूसरे के घर में टीवी देख रहे थे। जो भी हुआ, गलत हुआ, उसे आजीवन कारावास की सजा दे दी जाती तो ज्यादा अच्छा रहता। घर परिवार सब लूट गया और जान भी नहीं बची।" पिछले दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं, "इसी दुख में विनय के बाबा भी गुजर गए। जब विनय को जेल में डाला गया तो छह महीने बाद ही मैं पिता जी के साथ उससे मिलने गया था। वह बस रो रहा था। मेरे बाबूजी से यह सब सहन नहीं हुआ और उसके कुछ दिन बाद ही वह चल बसे।" विनय के चाचा यह भी कहते हैं कि विनय को जबरन फंसाया गया। अगर वह गलत होता तो वह कभी मिलता ही नहीं, कहीं भाग गया होता।

हमनें उसे बड़ा होता देखा है, उसकी मौत का दुख तो होगा ही
एक बुजुर्ग महिला कहती है, "विनय जब गांव में रहता था तो सबकी इज्जत करता था। सब उसे पसंद भी करते थे। बूढ़े बुजुर्ग या जरूरतमंदों की मदद भी करता था। लेकिन गलत संगत में पड़ गया। अब जब उसके मरने की खबर सुन रही हूं तो दुख हो रहा है।
गांव का नाम आया तो युवाओं का होगा भविष्य खराब
7 सालों तक मीडिया को इस गांव की भनक क्यों नही लगी? यह पूछने पर जवाब मिला कि जब मुकदमा हुआ तो विनय के पिता ने दिल्ली का पता दिया। जिससे गांव का नाम कभी सामने कभी नहीं आ पाया। युवाओं की चिंता है कि गांव का नाम सामने आने से यहां के जो मेधावी युवा है उनका भविष्य खराब हो सकता है।

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