बुधवार, 31 जुलाई 2019

रेप पीड़िता के कार दुर्घटना मामले में आई फोरेंसिक जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट

उन्नाव रेप पीड़िता के ऐक्सिडेंट मामले में हादसा या साजिश को लेकर लगातार उठ रहे सवालों के बीच अब फोरेंसिक जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट में भी घटना को हादसा ही बताया गया है इसके पहले पुलिस भी इस मामले को हादसा बताती आ रही है रिपोर्ट की मानें तो बारिश में ट्रक का पहिया फिसला और सीधे जाकर कार से टकरा गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस कार में रेप पीड़िता, उसकी चाची, मौसी और वकील थे, उसकी तेज रफ्तार थी और ट्रक भी 70 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा था। तेज बारिश हो रही थी। संभव है कि बारिश में ट्रक का पहिया फिसला हो और कार से उसकी टक्कर हो गई हो। फरेंसिक टीम की रिपोर्ट में लिखा है कि ऐक्सिडेंट एक हादसा हो सकता है।

फरेंसिक साइंस लैबरेटरी की लखनऊ और रायबरेली इकाइयों के विशेषज्ञों ने सोमवार को क्राइम साइट का निरीक्षण किया। इसके अलावा विशेषज्ञों ने क्षतिग्रस्त कार और ट्रक की भी जांच की। इस टीम के एक सदस्य ने बताया कि प्रथम दृष्टया यह एक हादसा ही प्रतीत होता है। विशेषज्ञ ने कहा, '12 पहिये वाला ट्रक 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा था। जब कार ट्रक के पास आई, तो ट्रक ड्राइवर उसे संभाल नहीं पाया होगा और ट्रक कार से भिड़ गया होगा।'

विशेषज्ञ ने बताया कि जिस जगह पर ऐक्सिडेंट हुआ है, वहां पर एक अंधा मोड़ भी है। इस अंधे मोड़ पर न तो कोई साइन बोर्ड लगा है, न ही कोई स्पीड ब्रेकर है। कोई चेतावनी भी नहीं लिखी थी, जिस वजह से कार और ट्रक के ड्राइवर ठीक से एक-दूसरे को नहीं देख पाए और जब तक ड्राइवर कार संभालते गाड़ियां भिड़ गईं।

विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि घटनास्थल पर पहियों के फिसलने के निशान भी हैं। जो निशान हैं, उन्हें देखकर साफ है कि ट्रक तेज रफ्तार में चल रहा था। कार की बॉडी, ट्रक की बॉडी और उनके पेंट्स का भी निरीक्षण किया गया है। आईजी (लखनऊ रेंज) एस के भगत ने बताया कि अभी कोई भी निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी और उन्होंने इस फरेंसिक रिपोर्ट पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

यूपी पुलिस ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय SIT का गठन किया है। टीम में तीन डेप्युटी एसपी भी शामिल होंगे। इधर सरकार ने सीबीआई जांच की भी मंजूरी दे दी है। अब यूपी की एसआईटी और सीबीआई इस मामले की जांच करेगी।

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व्हाट्सएप बन्द होने और 499 रुपये का चार्ज लगने की सच्चाई

विश्वपति वर्मा 

कृपया किसी मैसेज की पूरी सच्चाई जाने वगैर उसे शेयर न करें यह एक जिम्मेदार व्हाट्सएप उपयोगकर्ता की जिम्मेदारी है

केंद्र सरकार ने आदेश दिया है कि रोज रात 11:30 से सुबह 6 बजे तक WhatsApp बंद रहेगा. पीएम नरेंद्र मोदी का मैसेज है
WhatsApp मैसेंजर पर हमारे यूजर्स के नामों का अधिक उपयोग हुआ है. हम सभी यूजर्स से निवेदन करते हैं कि वो ये मैसेज अपने कॉन्टैक्ट लिस्ट में सभी को भेजें. अगर आप ये फॉरवर्ड नहीं करते हैं, तो हम मानेंगे कि आपका अकाउंट इनवैलिड है और इसे अगले 48 घंटों में डिलीट कर दिया जाएगा. मेरे शब्दों को नजरअंदाज मत करिए, नहीं तो WhatsApp आपका एक्टिवेशन नहीं मानेगा. अकाउंट डिलीट होने के बाद अगर आप इसे दोबारा रि-एक्टिवेट करना चाहेंगे, तो इसके लिए 499 रुपये हर महीने देने होंगे
ये मैसेज को 10 लोगों को भेजें. जब आप ऐसा करेंगे तो लाइट ब्लू हो जाएगी, नहीं तो WhatsApp के लिए पैसे लगने शुरू हो जाएंगे.)'

पड़ताल

यह मैसेज पूरी तरहं से झूठ है हमने इसका तहकीकात किया है जिसमे हमे पता चला कि 3 जुलाई को पूरी दुनिया मे व्हाट्सएप और फेसबुक का सर्वर डाउन होने के बाद यह अफवाह फैलाई गई है।

तो आप निश्चिंत रहें WhatsApp न रात 11:30 बजे से सुबह 6 बजे तक बंद रहेगा, और न ही केंद्र सरकार ने ऐसी कोई घोषणा की है.

इसके पृष्टि के लिए तहकीकात समाचार द्वारा WhatsApp को मेल किया गया जिसमें उनके प्रवक्ता ने बताया कि वायरल हो रहा मैसेज झूठा है कंपनी ऐसा कुछ भी अपडेट्स नही कर रही है।



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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

क्यों भीड़ के आगे बेबस है प्रशासन?

रवीश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार_

उत्तर प्रदेश में 28 साल के सुजीत कुमार को लोगों ने चोर समझ कर मारा पीटा और जला दिया. सुजीत कुमार अपने ससुराल जा रहे थे. कुत्तों ने उनका पीछा किया तो वे एक घर में छिप गए. लोगों ने उन्हें चोर समझ लिया और पेट्रोल डालकर जलाने की कोशिश की. सुजीत को लखनऊ के सिविल अस्पताल में भर्ती किया गया है. बाराबंकी ज़िले की यह घटना है. पीटीआई न्यूज़ एजेंसी की यह ख़बर है. चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. बिहार में भी मॉब लिंचिंग की एक घटना हुई है. चोरी के आरोप में पकड़े गए तीन लोगों को घेर कर लोगों ने मार दिया. घटना सारण ज़िले के बनियापुर गांव की है. इन घटनाओं के संदर्भ में आप स्टेट और सोसायटी को समझिए. लगता ही नहीं है कि समाज और राज्य के बीच गहरा रिश्ता बना है. बस गुस्सा आना चाहिए, लोग खुद ही राज्य बन जाते हैं, त्वरित इंसाफ पर उतारू हो जाते हैं. किसी पर पेट्रोल डाल कर जला देने का ख्याल कहां से आ रहा है, किसी को मारते मारते मार देने की सनक कैसे पैदा हो रही है, समझने की ज़रूरत है.


पिठौरी नंदलाल टोला में तीन युवकों को मवेशी चुराने के आरोप में ग्रामीणों ने पकड़ लिया. कायदे से उन्हें पुलिस के हवाले कर देना था लेकिन लोगों ने पीट पीट मार डाला. दो की मौत तो धटना स्थल पर ही हो गई. तीसरा अस्पताल में दम तोड़ गया. सोचिए मारते वक्त लोगों के सर पर कितना ख़ून सवार हो गया होगा. सनक की हद तक चले गए होंगे. किसी को रुकने का ख्याल नहीं आया कि यहां से मामला बिगड़ जाएगा. ऐसा लगता है कि गांव वाले मार देने के लिए ही मार रहे थे. गांव वालों का कहना है कि तीन लोग पिक अप गाड़ीलेकर गांव में घुसे. पहले तीन बकरियों को पिक अप वैन पर चढ़ाया. बुधु राम के घर से चार बकरियों की चोरी हुई. उसके बाद आरोपी भैंस खोलने लगे. तभी घर वाले जाग गए और शोर मचाना शुरू कर दिया. लोगों की भीड़ आते देख युवक भागने लगे लेकिन उनकी पकड़ में आ गए. नौशाद, राजीव और सुरेश नट को मार दिया गया. तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने गांव में कैंप डाला हुआ है. वैसे किसी आला अधिकारी ने इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

मई में महेश यादव को मवेशी चोरी के आरोप में भीड़ ने मार डाला था. अररिया ज़िले की घटना है. पिछले साल देश भर में बच्चा चोरी के आरोप में कई लोगों को भीड़ ने शक के आधार पर पकड़ कर मार दिया. झारखंड में तबरेज़ की हत्या इसी तरह की सनक के कारण हो गई. सारण की घटना मवेशी चोरी से संबंधित है. इसमें सांप्रदायिक एंगल नहीं है फिर भी भीड़ है. भीड़ तो अस्पताल में भी घुस कर डाक्टरों को मारने लग जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने पूरी व्यवस्था दी है कि भीड़ की हिंसा के मामले में किस तरह से जांच होगी, किसकी जवाबदेही होगी. इसी के साथ यह भी कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार इस हिंसा को लेकर जागरूक करे. प्रचार प्रसार के ज़रिए लोगों को बताए कि ऐसा करना ठीक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट सिर्फ इसी बात की स्टेटस रिपोर्ट मंगा ले कि भीड़ की हिंसा को लेकर जागरूक करने के लिए प्रचार प्रसार के कौन से तरीके अपनाए गए. फिर जब आप सुबह सुबह इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पढ़ते हैं कि 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे के 41 मामलों में से 40 में आरोपी बरी हो गए हैं. दंगों के ये मामले भीड़ कि हिंसा से ही संबंधित थी. 65 साल के इस्लाम को लोगों ने दौड़ा कर मार दिया. इस्लाम के रिश्तेदार और पांचों गवाह मुकर गए. पुलिस सबूत से लेकर गवाह तक पेश नहीं कर पाई.


2013 के दंगे में 65 लोग मारे गए थे. इससे संबंधित हत्या के 10 मामले दर्ज हुए थे. अगर इस तरह भीड़ सबूतों के अभाव में छूटती रहेगी तो उसका हौसला बढ़ता रहेगा. बल्कि यही नया राजनीतिक औजार भी बन चुका है. सबको पता है कि बाद में सब कुछ मैनेज हो जाता है. कारण जो भी हों, भीड़ बच जाती है. इंडियन एक्सप्रेस ने कोर्ट के रिकार्ड और गवाहों का गहन अध्ययन किया है. यह रिपोर्ट बता रही है कि अंत में भीड़ बच जाती है. एक परिवार को जला दिया गया. तीन दोस्तों को खींच कर खेत में मार दिया गया. एक पिता की तलवार से हत्या कर दी गई. इन मामलों में 53 आरोपी बरी हो गए. तो फिर इनकी हत्या करने वाले कहां गए. यही नहीं गैंग रेप के चार और दंगों के 26 मामलों में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है. आप यह ख़बर ज़रूर पढ़ें. हिन्दी के अखबारों में ऐसी खबरें नहीं होती हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि यूपी सरकार बरी हुए आरोपियों के मामले में ऊंची अदालत में अपील भी नहीं करेगी. भीड़ अपने आप में कोर्ट बन चुकी है. ऐसा लगता है कि लोगों के बीच कानून व्यवस्था नहीं बची है. वे किसी भी बात पर लाठी तलवार निकाल कर हमला बोल सकते हैं. यह हिंसा किसी एक या दो की जान नहीं लेती बल्कि स्टेट, संविधान और सिस्टम की समझ को भी चुनौती दे रही है.

भोपाल में बीजेपी के पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह मम्मा को गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्‍होंने प्रदर्शन के दौरान कह दिया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी खून बहेगा. बाद में उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. सुरेंद्र नाथ सिंह मम्मा की भाषा में जो हिंसा है वो वहां मौजूद सैकड़ों लोगों में भी स्वीकृत है. खून की बात करना, खून बहा देना बोला जा सकता है. सुरेंद्र नाथ सिंह मम्मा यह भी भूल गए कि आकाश विजयवर्गीय के मामले में प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह सब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हालांकि अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, कार्रवाई तो प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ भी नहीं हुई लेकिन आए दिन इक्का दुक्का की तरह ये जो घटनाएं हो रही हैं, बयान आ रहे हैं लगता है कि यही हमारे समय की भाषा और समझ बन कर रह गई है. मामला यही था कि भोपाल में नगर निगम शहर के अलग-अलग इलाकों में बनी अवैध गुमटियों को हटा रहा था. सुरेंद्र नाथ सिंह इन्हीं गुमटी वालों के साथ विधानसभा का घेराव करने गए थे. बीजेपी के नेताओ का भी कहना है कि ऐसी भाषा ठीक नहीं है.

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि भारत शरणार्थियों की राजधानी नहीं बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को लेकर सुनवाई चल रही थी. केंद्र सरकार और असम सरकार मांग कर रही है कि एनआरसी की अंतिम सूची बनाने की डेडलाईन 31 जुलाई से बढ़ा दी जाए. दोनों की मांग है कि 20 प्रतिशत एनआरसी की समीक्षा होनी चाहिए क्योंकि लाखों लोगों के ऐसे सर्टिफिकेट बन गए हैं जो हकदार नहीं थे. सरकार ने कहा कि एनआरसी कोर्डिनेटर ने अच्छा काम किया है लेकिन हम लाखों लोगों के मामले में काम कर रहे हैं. बांग्लादेश के बार्डर के पास लाखों लोग ग़लत तरीके से एनआरसी में नाम आ गए हैं. जिन लोगों के नाम जुड़े वे अवैध घुसपैठिये हैं. बॉर्डर इलाके में गहन सर्वेक्षण की ज़रूरत है. स्थानीय लोगों के साथ मिलकर उन्होंने गड़बड़ी की है. इसलिए कोर्ट से सरकार ने अपील की है कि अंतिम सूची जारी करने की तारीख 31 जुलाई से बढ़ा दी जाए. एनआरसी के कोर्डिनेटर प्रतीक हैजला ने कहा है कि 36 लाख लोगों के दावों को वेरिफाई किया गया है. उनके परिवार के लोगों को भी वेरिफाई किया गया है.

हैजला ने भी कहा कि अभी कई दावे लंबित है इसलिए समय चाहिए. 31 अगस्त तक डेडलाइन बढ़ा दी जाए. हमने बाढ़ के सिलसिले में बताया है कि असम में कई लोग एनआरसी के कारण जान जोखिम में डाल रहे हैं. बाढ़ में उनके लिए जान से ज्यादा चिन्ता इस सर्टिफिकेट को बचाना हो गया है. कोर्ट ने इस काम पर बाढ़ के असर का भी हाल पूछा तो जवाब में प्रतीक हैजला ने कहा कि ट्रक के ट्रक कागज़ात सुरक्षित जगह पर पहुंचाए गए हैं.

रिफ्यूज़ी के बारे में दुनिया के कई देशों में राजनीति बदल रही है. जर्मनी जैसे देश जहां शरणार्थियों को जगह दे रहे हैं तो रूस चेतावनी दे रहा है कि यह ठीक नहीं है. अमरीका में रोज़ इस मसले को लेकर राजनीतिक टकराव होता रहता है. वसुधैव कुटुंबकम सारी दुनिया परिवार है तो फिर परिवार के लिए सारी दुनिया क्यों नहीं है. कहीं लोग जान बचाने के लिए भाग रहे हैं तो कहीं ग़रीबी और प्रकृति की तबाही के कारण. एक बार आप शरणार्थी और रिफ्यूजी का मतलब भी समझिए. आज शहरों में रहने वाले कई लोग भी खुद को इस तरह से देख सकते हैं. अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप और उनसे मिलने गईं याज़िदी एक्टिविस्ट नादिया मुराद की बातचीत का वीडियो देखा जा रहा है. आप नादिया की बातों के भाव को समझिए. वो किन हालात में इराक़ से भागी थी. वो जिस याज़िदी समुदाय की है उसकी हज़ारों औरतों और बच्चों पर आईएसआईएस कहर बनकर टूटा था. मार दी गईं थीं. नादिया बच कर निकल भागी और उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला. राष्ट्रपति ट्रंप की प्रतिक्रिया से ज़्यादा आप नादिया की बातों पर ध्यान दें. चेहरे पर भाव को समझें. आपको रिफ्यूज़ी होने के और भी पहलू समझ आएंगे.

नादिया की मां और बहनों को आईसीस ने मार दिया था. 3000 याज़िदी अभी भी लापता बताए जाते हैं. भारत के लाखों लोग दुनिया भर के देशों में रह रहे हैं. वे भी खुद को कभी न कभी रिफ्यूज़ी समझते होंगे. इसलिए रिफ्यूजी को लेकर एक तरह की समझ नहीं बनानी चाहिए कि कोई बोझ ही है. उस पर क्या बोझ है, यह भी समझिए. दुनिया अलग तरह से दिखेगी.

शुक्रवार को लोकसभा में RTI Amendment Act 2019 प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने पेश किया. इसमें सूचना आयुक्तों के संबंध में तीन बातें हैं. पहले 5 साल के लिए मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति होती थी. अब उनका कार्यकाल 5 साल होगा या कितना होगा इसका फैसला सेंटर करेगा. केंद्र राज्यों के लिए भी यह तय करेगा. पहले मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की सेवा की शर्तें चुनाव आयुक्तों के समान होती थीं. अब शर्तें बदली जाएंगी. सरकार ने इस बिल में मकसद यह बताया है कि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है और सूचना आयोग कानूनी संस्था है. दोनों में अंतर होता है. इसे लेकर विपक्ष के सदस्यों ने आरोप लगाया कि सरकार सूचना आयोग के आयुक्तों को कमज़ोर करना चाहती है. सूचना अधिकार कार्यकर्ता इस बिल को लेकर आशंकित हैं. उनके कुछ सवाल हैं. उनका कहना है कि यह संशोधन विधेयक सूचना आयुक्त की स्वायत्ता को कमज़ोर करने के लिए लाया गया है.

आज लोकसभा में मानवाधिकार संरक्षण संशोधन बिल पास हो गया. इस संशोधन के बाद राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार संस्थाओं के चेयरमैन का कार्यकाल 5 साल से घटा कर तीन साल कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस के अलावा चीफ जस्टिस भी आयोग के अध्यक्ष बन सकेंगे. राज्यों में हाईकोर्ट के पूर्व जज को यह मौका मिलेगा. इसी बहस में हिस्सा लेते हुए पूर्व मंत्री और मौजूदा बीजेपी सांसद सतपाल सिंह ने एक बार फिर कहा कि इंसानों की विकास यात्रा बंदरों से शुरू नहीं हुई है. हम ऋषियों की संतान हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत की परंपरा में मानव अधिकार पर ज़ोर नहीं था. संस्कार पर ज़ोर था.

सत्‍यपाल सिंह ने कहा, 'हम ऋषियों की संतान हैं. जो लोग कहते हैं कि हम बंदरों की संतान हैं उनकी भावना को ठेस पहुंचाना नहीं चाहता. जो लोग मानते हैं, मैं यह मानते हैं कि हम ऋषियों की संतान हैं. मैं केवल कहना चाहता हूं कि हमारी संस्कति परंपरा मानव मनुष्य निर्माण पर ज़ोर दिया गया है. मानव अधिकारों पर नहीं, संस्कारौं के बल पर. एक मनुष्य का निर्माण पर ज़ोर दिया गया है. हम सभी प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखें. इसलिए हमारे यहां कभी भी मानव अधिकार की बात नहीं की गई. केवल कर्तव्य की बात की है. ये जो संकल्पना है ये पश्चिमी है. बांट कर खाना सीखे. त्याग करें. ऐसे मानव अधिकारी सीखाने की. हमने सोचा कि मानव ही सृष्टि के अंदर ट्रस्टी है. हज़ारों लाखों का कत्ल करने वाले देशों पर कब्जा करने वाले ही मानव अधिकार की बात करने लगे. अमरीका का इतिहास देखिए. न्यूज़ीलैंड का इतिहास देखिए. धर्म के नाम पर मारा है. वही मानव अधिकार की बात करते हैं. हम अधिकार लेकर क्या करेंगे.'

विज्ञान में एवोल्यूशन की एक प्रक्रिया बताई गई है. डार्विन ने अपनी संकल्पना 1859 में दी थी. माना जाता है कि 40 लाख साल पहले इंसान का उदगम ऑस्ट्रेलोपिथेकस से हुआ. उसके बाद अलग-अलग चरणों में इंसान का विकास होता है. उन सभी चरणों के अलग-अलग नाम हैं. डार्विन ने बेशक इसे विस्तार से बताया था लेकिन इतना भी सरल तरीके से इंसान का उदभव नहीं हुआ था. बाद के वैज्ञानिक शोध में डार्विन की बात मानी गई लेकिन मानव विकास यात्रा की कई जटिल परतें सामने आईं. डार्विन के समय में भी और अभी कई धर्मों के मठ इन सारी बातों को नहीं मानते हैं. थ्‍योरी ऑफ इवोल्यूशन वैज्ञानिक रूप से एक स्थापित सिद्धांत है. सत्यपाल जी का थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन अलग है. आईआईटी और इसरो के वैज्ञानिकों को सत्यपाल सिंह की बात पर राय देनी चाहिए.

जनवरी 2018 में भी सत्यपाल सिंह ने डार्विन को चुनौती दी थी. उस समय वे मानव संसाधन राज्य मंत्री थे. इस बयान के बाद उनके कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बयान दिया था कि इस तरह के बयान नहीं देनी चाहिए. लेकिन सत्यपाल सिंह ने सात महीने बाद एक किताब के लॉन्‍च  में फिर ये बयान दे दिया. उन्होंने कहा था कि जनवरी का बयान लतीफा नहीं था. मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं. मैं विज्ञान समझता हूं. डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से ग़लत हैं. मैं खुद को बंदर की संतान नहीं मानता हूं. किसी ने बंदर को इंसान बनते नहीं देखा है. एक जीवन में कोई यह कैसे देख सकता है. सत्‍यपाल जी रसायन शास्त्र के छात्र रहे हैं. लेकिन उनकी पीएचडी लोकप्रशासन में है. उस समय यह बयान अंतरराष्ट्रीय अखबारों में भी छपा था. भारत में सार्वजनिक रूप से डार्विन के सिद्धांत को चुनौती सत्‍यपाल जी ने ही दी है.

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सोमवार, 29 जुलाई 2019

भ्रष्टाचार से 9 रुपया कमाने के चक्कर मे बस कंडक्टर चंद्रकांत पटेल ने गंवाए 15 लाख

देश भर में हर रोज भ्रष्टाचार के नए नए मामले दर्ज किए जाते हैं जिसमे सुनवाई के दौरान कोई बच जाता है तो कोई फंस जाता है ऐसे ही एक राज्य सड़क परिवहन निगम के अंतर्गत काम करने वाले एक बस कंडक्टर के लिए थोड़ा सा लालच बेहद महंगा साबित हुआ है। एक यात्री को टिकट ना देकर सिर्फ 9 रुपये गलत तरीके से कमाने के कारण कंडक्टर को अपनी सैलरी में करीब 15 लाख रुपये का झटका लगा है।

कंडक्टर चंद्रकांत पटेल के खिलाफ शिकायत मिलने पर गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम ने जांच कमिटी बनाई। कमिटी ने चंद्रकांत को दोषी पाया। इसके बाद निगम ने पटेल को सजा देते हुए उनके मौजूदा वेतनमान को दो स्टेज घटा दिया है। ऐसे में उनका पे- स्केल अब काफी नीचे चला गया है। इतना ही नहीं निगम ने यह भी कहा कि अब वह स्थायी आधार पर एक निर्धारित वेतन पर अपनी बाकी सर्विस पूरी करेंगे।

2003 में सामने आया था यह मामला
बता दें कि 5 जुलाई 2003 को अचानक निरीक्षण के दौरान पटेल की बस में एक यात्री बिना टिकट पाया गया। यात्री ने अधिकारियों को बताया कि उसने कंडक्टर को 9 रुपये दिए थे, लेकिन उन्होंने टिकट नहीं दिया। इसके बाद कंडक्टर पटेल के खिलाफ विभागीय जांच बैठा दी गई।

हाई कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा
करीब एक महीने बाद कंडक्टर को दोषी पाया गया और उसकी सैलरी में कटौती कर दी गई। इसके बाद पटेल पहले औद्योगिक न्यायाधिकरण में गए और फिर हाई कोर्ट गए। पर, दोनों ही जगह उनकी सजा को बरकरार रखा गया और उनकी याचिकाएं खारिज हो गईं।

पहले भी आती रही हैं शिकायतें
दरअसल, हाई कोर्ट में कंडक्टर के वकील ने कहा कि इस मामूली जुर्म के लिए यह बड़ी सजा है। पूरी सर्विस को देखें तो पटेल को करीब 15 लाख रुपये का नुकसान होगा। उधर, गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम के वकील ने हाई कोर्ट को बताया कि इससे पहले भी कंडक्टर पटेल करीब 35 बार लेखा- जोखा में गलती कर चुके हैं। उन्हें कई बार मामूली दंड और चेतावनी देकर छोड़ा चुका है।

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निजीकरण व्यवस्था नहीं बल्कि पुनः रियासतीकरण है

निजीकरण का विरोध करने के लिए सोशल मीडिया पर किया जा रहा अपील ।

मात्र 70 साल में ही बाजी पलट गई। जहाँ से चले थे उसी जगह पहुंच रहे हैं हम। फर्क सिर्फ इतना कि दूसरा रास्ता चुना गया है और इसके परिणाम भी ज्यादा गम्भीर होंगे।

 वैचारिक राजनीति से अलग व्यवसायिक लाभ वाली राजनीति के सिद्धान्त चुन लिए गये है ...!

1947 जब देश आजाद हुआ था। नई नवेली सरकार और उनके मंन्त्री यानी प्रधानमंत्री नेहरू जी और गृहमंत्री सरदार पटेल, देश की रियासतों को आजाद भारत का हिस्सा बनाने के लिए परेशान थे।

 तकरीबन 562 रियासतों को भारत में मिलाने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपना कर अपनी कोशिश जारी रखे हुए थे। क्योंकि देश की सारी संपत्ति इन्हीं रियासतों के पास थी।

 कुछ रियासतों ने नखरे भी दिखाए, मगर कूटनीति और चतुरनीति से इन्हें आजाद भारत का हिस्सा बनाकर भारत के नाम से एक स्वतंत्र  लोकतंत्र की स्थापना की।

और फिर देश की सारी संपत्ति सिमट कर गणतांत्रिक पद्धति वाले संप्रभुता प्राप्त भारत के पास आ गई।

धीरे धीरे रेल, बैंक, कारखानों आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया और एक शक्तिशाली भारत का निर्माण हुआ ।

*मात्र 70 साल बाद समय और विचार ने करवट ली है। फासीवादी ताकतें पूंजीवादी व्यवस्था के कंधे पर सवार हो राजनीतिक परिवर्तन पर उतारू है।*

 *लाभ और मुनाफे की विशुद्ध वैचारिक सोच पर आधारित ये राजनीतिक देश को फिर से 1947 के पीछे ले जाना चाहती है। यानी देश की संपत्ति पुनः रियासतों के पास.......!*

*लेकिन ये नए रजवाड़े होंगे कुछ पूंजीपति घराने और कुछ बड़े बडे राजनेता*

*निजीकरण की आड़ में पुनः देश की सारी संपत्ति देश के चन्द पूंजीपति घरानो को सौंप देने की कुत्सित चाल चली जा रही है। उसके बाद क्या ..?*

*निश्चित ही लोकतंत्र का वजूद खत्म हो जाएगा। देश उन पूंजीपतियों के अधीन होगा जो परिवर्तित रजवाड़े की शक्ल में सामने उभर कर आयेंगे।                                               शायद रजवाड़े से ज्यादा बेरहम और सख्त।*

यानी निजीकरण सिर्फ *देश को 1947 के पहले वाली दौर में ले जाने की सनक मात्र है। जिसके बाद सत्ता के पास सिर्फ लठैती करने का कार्य ही रह जायेगा।*

सोचकर आश्चर्य कीजिये कि 562 रियासतों की संपत्ति मात्र  चन्द पूंजीपति घरानो को सौंप दी जाएगी।

ये मुफ्त इलाज के अस्पताल, धर्मशाला या प्याऊ नहीं बनवाने वाले। जैसा कि रियासतों के दौर में होता था। ये हर कदम पर पैसा उगाही करने वाले अंग्रेज होंगे।

*निजीकरण एक व्यवस्था नहीं बल्कि पुनः रियासतीकरण है।*
           
*कुछ समय बाद नव रियासतीकरण वाले लोग कहेगें कि देश के सरकारी अस्पतालों, स्कूलों, कालेजों से कोई लाभ नहीं है अत: इनको भी निजी हाथों में दे दिया जाय तो जनता का क्या होगा ?*

*अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूलों और हास्पिटलों के लूटतंत्र से संतुष्ट है तो रेलवे को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करें*

*सरकार का कर्तव्य है कि देश हित और लोकतंत्र सुरक्षित रहे।*
*केवल निजीकरण करना ही सरकार का काम क्यों रह गया है ?*

*हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार बनाई है न कि सरकारी संपत्ति मुनाफाखोरों को बेचने के लिए।*

*सरकार घाटे का बहाना बना कर सरकारी संस्थानो को बेच क्यों रही है?* अगर प्रबंधन सही नहीं तो सही करे। भागने से तो काम नही चलेगा।
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*यह एक साजिश के तहत सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है*
*पहले सरकारी संस्थानों को ठीक से काम न करने दो, फिर बदनाम करो, जिससे निजीकरण करने पर कोई बोले नहीं, फिर धीरे से अपने आकाओं को बेच दो*
*जिन्होंने चुनाव के भारी भरकम खर्च की फंडिंग की है।*

*याद रखिये पार्टी फण्ड में गरीब मज़दूर, किसान पैसा नही देता। पूंजीपति देता है। और पूंजीपति दान नहीं देता, निवेश करता है। चुनाव बाद मुनाफे की फसल काटता है।*

*आइए विरोध करें निजीकरण का*।
सरकार को अहसास कराएं कि वह अपनी जिम्मेदारियों से भागे नहीं। सरकारी संपत्तियों को बेचे नहीं। अगर कहीं घाटा है तो प्रबंधन ठीक से करे। वैसे भी सरकार का काम सामाजिक होता है। मुनाफाखोरी नहीं


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रविवार, 28 जुलाई 2019

आरटीआई संशोधन को लेकर आखिर क्यों हो रहा विरोध ,यंहा आसान भाषा मे समझें

विश्वपति वर्मा_

सूचना का अधिकार कानून में हुए संशोधन को लेकर सदन से लेकर सड़क तक चर्चा का माहौल है लेकिन अभी तक पाठक गण ठीक तरीके से यह बात समझ नही पाए हैं कि सत्ताधारी पार्टी ने आखिर ऐसा कौन सा बदलाव कानून में किया है  जिसका विरोध कांग्रेस सहित कई दल के विपक्षी पार्टियां कर रही हैं।आइये हम आपको बताते हैं आसान भाषा मे कि कानून में क्या बदला गया जिसका विरोध किया जा रहा है।

संसद द्वारा 25 जुलाई 2019 को सूचना का अधिकार RTI कानून में संशोधन संबंधी एक विधेयक को मंजूरी दी गई है । इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। जिसको लेकर विपक्ष द्वारा सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार आरटीआई कानून को सरकारी विभाग की तरहं चलाना चाहती है जबकि सूचना का अधिकार कानून को कांग्रेस की सरकार द्वारा 12 अक्टूबर 2005 को एक कानूनी एवं स्वतंत्र संस्था के रूप में  सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू किया गया था।

वंही सरकार ने आरटीआई कानून को कमजोर करने के विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी करने के लिए प्रतिबद्ध है इस लिए इस कानून में संसोधन किया गया है।

 क्या हुआ बदलाव

राइट टू इन्फर्मेशन ऐक्ट (सूचना का अधिकार अधिनियम)2005 के दो सेक्शन में बदलाव हुए हैं. पहला  सेक्शन 13 और दूसरा है सेक्शन 16 .2005 के कानून में सेक्शन 13 में जिक्र था कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच साल या फिर 65 साल की उम्र तक रहेगा या जो भी पहले पूरा होगा।

लेकिन हाल ही में बदले गए कानून के अनुसार  मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का कार्यकाल केंद्र सरकार पर निर्भर करेगा यानि कि जिस तरहं से सीबीआई और चुनाव आयोग पर सरकार का दबाव देखा गया है ठीक उसी तरहं से RTI कानून में भी सरकारी दबाव देखने को मिलेगा जो अभी तक नही था।

 साल 2005 के कानून में सेक्शन 13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की तनख्वाह का जिक्र है. मुख्य सूचना आयुक्त की तनख्वाह मुख्य निर्वाचन आयुक्त की तनख्वाह के बराबर होगा. सूचना आयुक्त की सैलरी निर्वाचन आयुक्त की सैलरी के बराबर होगी.

2019 का संशोधित कानून कहता है कि मुख्य सूचना आयुक्त की सैलरी और सूचना आयुक्त की सैलरी केंद्र सरकार तय करेगी.यानि कि यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अब सरकार अपने पसंदीदा केस में सूचना आयुक्तों का कार्यकाल बढ़ा सकती है और उनकी सैलरी बढ़ा सकती है. लेकिन अगर सरकार को किसी सूचना आयुक्त का कोई आदेश पसंद नहीं आया, तो उसका कार्यकाल खत्म हो सकता है या फिर उसकी सैलरी कम की जा सकती है.

अब आपको समझने के लिए एक बार फिर से बता दें कि जिस तरहं से सीबीआई और चुनाव आयोग को केंद्र के पट्टू की तरहं काम करते हुए देखा गया है ठीक उसी तरहं सूचना का अधिकार कानून में प्रस्तावित संशोधनों से पारदर्शिता पैनल की स्वायत्तता से समझौता होगा, क्योंकि यह उसे कार्यपालिका का अधीनस्थ बना देगा । यानी कि केंद्र सरकार अन्य विभाग की तरहं सूचना का अधिकार कानून पर नियंत्रण चाहती है जो अब हो गया।

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शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

आरक्षण के तहत प्रतिनिधित्व का मौका पाने के लिए सरदार सेना ने सौंपा ज्ञापन

सरदार सेना के जिला अध्यक्ष प्रभाकर वर्मा के नेतृत्व में आज जिलाधिकारी कार्यालय के माध्यम से आरक्षण के साथ हो रहे कुठाराघात को लेकर राज्यपाल को संबोधित 5 बिंदुओं की मांग पर ज्ञापन सौंपा गया

सरदार सेना ने मांग किया कि सम्पूर्ण पिछड़ा वर्ग को आबादी के हिसाब से चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के सभी विभागों में प्रतिनिधित्व दिया जाए साथ ही प्राइवेट सेक्टर में संविदा एवं रिसोर्स की नौकरियों में आबादी के अनुसार आरक्षण का प्रतिनिधित्व दिया जाए एवं  ओबीसी आरक्षण को 27 प्रतिशत से बढ़ाकर 57 प्रतिशत किया जाए ।

न्यायपालिका ,इंजीनियरिंग, मेडिकल ,शिक्षा ,सहित यूपीएससी सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं में पिछड़ों को आबादी के अनुसार आरक्षण दिया जाए इसके अलावां पिछड़ों का जिन विभागों में प्रतिनिधित्व का हनन हुआ है उसमें बैकलॉग भर्ती कर प्रतिनिधित्व का मौका दिया जाए एवं हाल ही में उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा एवं यूजीसी नेट में हुए अन्याय को लेकर संशोधित परिणाम बना कर पिछड़ों को न्याय दिया जाए।

इस मौके पर प्रदेश महासचिव बृजेश पटेल ,विकास चौधरी, संदीप पटेल ,चुनचुन पटेल, रामजीत पटेल, अनिल चौधरी,राकेश पटेल,बेंचुराम चौधरी ,डॉक्टर सतीश ,रामदीन चौधरी ,सुरेंद्र चौधरी ,रमेश प्रधान ,पिंटू प्रधान,कल्पनाथ चौधरी , के साथ कई दर्जन सरदार सेना के पदाधिकारी एवं सदस्यगण उपस्थित रहें।

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जातिवादी टिप्पणी से परेशान होकर डॉo पायल तड़वी ने की थी आत्महत्या

महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाली दलित डॉक्टर पायल तडवी मामले की जांच के दौरान पुलिस को कम से कम तीन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने अपने बयान में बताया है कि उन पर जातिवादी टिप्पणियां की जाती थीं.

 द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ गाइनो विभाग के एक हेल्पर ने अपने बयान में कहा है कि दिसंबर 2018 में डॉक्टर हेमा आहूजा, अंकिता खंडेलवाल और भक्ति मेहारे ने तडवी से कहा था, "ये काम कौन करेगा, ये तेरा काम नहीं है तो किसका काम है? तू छोटी जात हो के हमारी बराबरी करेगी क्या?"

एक अन्य बयान में एक चश्मदीद ने कहा है कि अभियुक्त डॉक्टरों ने पायल से कहा था, "ऐ आदिवासी, तू इधर क्यूं आई है? तू डिलीवरी करने के लायक नहीं है, तू हमारी बराबरी करती है..."

पायल तडवी ने 22 मई को टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज के अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. पुलिस ने इस मामले में तीन महिला डॉक्टरों को आत्महत्या के लिए उकसाने और जातिवाती भेदभाव के आरोप में गिरफ़्तार किया है.

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गुरुवार, 25 जुलाई 2019

रेप का बदला लेने के लिए 22 लोगों को मौत के घाट उतारने वाली फूलनदेवी डकैत से बनी थीं सांसद

विश्वपति वर्मा _

कैत से सांसद बनने वाली फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 में हुआ था। 25 जुलाई यानि आज  उनका  पुण्यतिथि है। फूलन देवी को 25 जुलाई 2001 के दिन शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर उनकी हत्या कर दी। हत्या के बाद राणा ने यह दावा किया था कि यह 1981 में सवर्णों की हत्या का बदला है। 

अस्सी के दशक में फूलन देवी का नाम चंबल घाटी में किसी शेर की आवाज की तरहं गूंजती थी । कहते हैं फूलन देवी का जितना ज्यादा निशाना अचूक था उससे भी ज्यादा कठोर था उनका दिल। लोगों के मुताबिक  हालात ने ही फूलन देवी को इतना कठोर बना दिया कि जब उन्होंने बहमई में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें जरा भी मलाल नहीं हुआ था।

फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा में 10 अगस्त 1963 में हुआ था। जन्म से ही फूलन जाति-भेदभाव की शिकार हुई है। महज 11 साल की उम्र में फूलन का विवाह एक मल्लाह के घर हुआ था। ये बाल विवाह तो था लेकिन सिर्फ फूलन के लिए, क्योंकि उसके पति एक अधेड़ उम्र का व्यकित था। फूलन की शादी के पीछे का मकसद था कि वह गांव से बाहर चली जाए। फूलन के पति का नाम पुट्टी लाल से करवा दी। शादी के बाद से फूलन के साथ दूराचार होने लगा। उसके अधेड़ उम्र का पति उसे काफी ज्यादा परेशान करता था। जिसके बाद फूलन फिर से घर भागकर आ गई।

ससुराल से भागकर आने के बाद फूलन अपने पिता के साथ मजदूरी के काम में हाथ बटाने लगी। इसी दौरान फूलन के साथ गांव के कुछ ठाकुरों ने मिलकर गैंगरेप किया। इस घटना को लेकर फूलन इंसाफ के लिए दर-दर भटकती रही। इसके बाद फूलन को पूरे गांव में एक बार नंगा कर घुमाया गया था। इसके बाद कहीं से न्याय न मिलने के बाद फूलन देवी ने हथियार उठाने का फैसला किया और वो डकैत बन गई।

हथियार उठाने के बाद फूलन सबसे पहले अपने पति के गांव पहुंची। जहां उन्होंने पूरे गांव वालों के सामने लोगों को घर से बाहर निकाल कर, सबके सामने  चाकू मार दिया और सड़क किनारे अधमरे हाल में छोड़ कर चली गई। जाते-जाते इस गांव में फूलन देवी ऐलान करके के गई, '' आज के बाद कोई भी बूढ़ा किसी जवान लड़की से शादी नहीं करेगा।''

इसके बाद फूलन ने अपने साथ हुए रेप का बदला लेने की ठानी। फूलन ने 1981 में 22 स्वर्ण जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा कराकर गोलियों से भून डाला। इस घटना के बाद पूरे चंबल में फूलन का खौफ फैल गया। सरकार ने फूलन को पकड़ने का आदेश दिया लेकिन यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस फूलन को पकड़ने में नाकाम रही।

फूलन के डाकूओं के गिरोह में एक ऐसा वक्त आया, जब इसमें फूट पड़ गई। दरअसल इनके गिरोह का मुखिया बाबू गुज्जर की धोखे से हत्या के बाद विक्रम मल्लाह नाम के शख्स ने खुद को गिरोह का मुखिया घोषित कर दिया। इसके बाद विक्रम मल्लाह के दो खास आदमी जेल से भागे दो भाई श्री राम तथा लाला राम गिरोह में शामिल हुए। बाद में उन्होंने विक्रम मल्लाह को भी मार गिराया और फूलन को बंदी बनाकर अपने गाँव बेहमई ले गए।

जहां इन्होंने बारी-बारी से कई दिनों तक फूलन को बंधक बनाकर रेप किया। कुछ हफ्तों बाद जब इसकी जानकारी फूलन के कुछ साथियों के मिली तो वह उसे वहां छुड़ा कर ले गए। वहां से निकलने के बाद फूलन ने हार नहीं मानी और उन्होंने फूलन ने अपने साथी मान सिंह मल्लाह की सहायता से अपने पुराने मल्लाह साथियों को इकट्ठा कर के गिरोह का पुनः गठन किया और खुद उसकी सरदार बनी। इसके बाद  14 फरवरी 1981 को फूलन ने 22 ठाकुरों की हत्या कर इसका बदला लिया था। इस कांड के बाद फूलन ‘बैंडिट क्वीन’ के नाम से मशहूर हो गई थी।

22 लोगों की हत्या के बाद पुलिस उनके पीछे पड़ गई थी लेकिन फूलन देवी किसी के हाथ नहीं आ पाई थी। लूट पाट करना, अमीरों के बच्चों को फिरौती के लिए अगवा करना, राजनीतिक रैलियों के लूटना फूलन के गिरोह का मुख्य काम था। कुछ सालों के बाद फूलन ने आत्म समर्पण के लिए तैयार हुई। फूलन जानती थी कि यूपी पुलिस उनकी जान के पीछे पड़े हैं, इसीलिए अपनी पहली शर्त के तहत उन्होंने मध्यप्रदेश पुलिस के सामने ही आत्मसमर्पण करने की बात कही।

फूलन की दूसरी शर्त थी कि उनके गैंग के किसी साथी को मौत की सजा नहीं दी जाएगी। फूलन की तीसरी शर्त थी उसने उस जमीन को वापस करने के लिए कहा, जो उसके पिता से हड़प ली गई थी। साथ ही उसने अपने भाई को पुलिस में नौकरी देने की मांग की।  फूलन की दूसरी मांग को छोड़कर पुलिस ने उसकी बाकी सभी शर्तें मान लीं। फूलन ने 13 फरवरी 1983 को भिंड में आत्मसमर्पण किया। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले थे और उस समय उनकी एक झलक पाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जमा थी।

11 साल तक फूलन देवी को बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा। इसके बाद 1994 में आई समाजवादी सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया। इसके दो साल बाद ही फूलन को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला और वो 1996 में मिर्जापुर सीट से जीतकर सांसद बनी और दिल्ली पहुंच गई। फूलन 1998 का लोकसभा चुनाव हार गईं थी लेकिन अगले ही साल हुए 13वीं लोकसभा के चुनाव में वे फिर जीत गईं। 25 जुलाई 2001 को उनकी हत्या कर दी गई।

1994 में उनके जीवन पर शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' नाम से फिल्म बनाई। इस फिल्म को भारत से ज्यादा यूरोप में लोकप्रियता मिली। फिल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर भारत में काफी विवादों में रही। फिल्म में फूलन देवी को एक ऐसी बहादुर महिला के रूप में पेश किया गया जिसने समाज की गलत प्रथाओं के खिलाफ पुरजोर संघर्ष किया।

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लोकसभा में मोटर वाहन संशोधन विधेयक पास ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर लगेगा भारी जुर्माना


मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पास हो गया है.  इस विधेयक में यातायात नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है. विधेयक इससे पहले राज्य सभा में लंबित था और 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह निरस्त हो गया था. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस बिल की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए संसद में बताया कि विधेयक के माध्यम से राज्यों के अधिकार में कोई दखल देने का कोई इरादा नहीं है, इसके प्रावधानों को लागू करना राज्यों की मर्जी पर निर्भर है और केंद्र की कोशिश राज्यों से सहयोग करने, परिवहन व्यवस्था में बदलाव लाने और दुर्घटनाओं को कम करने की है. 

विधेयक में सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में काफी सख्त प्रावधान रखे गये हैं. किशोर नाबालिगों द्वारा वाहन चलाना, बिना लाइसेंस, खतरनाक ढंग से वाहन चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, निर्धारित सीमा से तेज गाड़ी चलाना और निर्धारित मानकों से अधिक लोगों को बिठाकर अथवा अधिक माल लादकर गाड़ी चलाने जैसे नियमों के उल्लंघन पर कड़े जुर्माने का प्रावधान किया गया है. 

मोटर वाहन संशोधन बिल 2019 के मुताबिक  तेज़ रफ़्तार गाड़ी चलाने पर जुर्माना 500 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये कर दिया गया है. सीट बेल्ट और हेलमेट न पहनने पर पहले 100 रुपये जुर्माना देना होता था जिसे अब बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया गया है. मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाने पर अब 1000 रु के बजाय 5000 रु जुर्माना होगा. शराब पीकर गाड़ी चलाने पर जुर्माना 2000 रुपए से बढ़ाकर 10 हज़ार रुपए कर दिया गया है. बिना लाइसेंस गाड़ी चलाने पर जुर्माना 500 रु से बढ़ाकर 5000 रुपए कर दिया गया है. बिना इंश्योरेंस के गाड़ी चलाने पर जुर्माना 1000 रु से बढ़ाकर 2000 रु कर दिया गया है. बिल के तहत सड़क दुर्घटना में अगर किसी की मौत होती है तो न्यूनतम मुआवज़ा 25 हज़ार के बजाय अब दो लाख रुपए होगा. सड़क दुर्घटना में किसी को गंभीर रूप से घायल करने पर न्यूनतम मुआवज़ा साढ़े बारह हज़ार से बढ़कर अब 50 हज़ार होगा. वहीं अगर नाबालिग गाड़ी चलाते हुए पकड़ा जाता है तो उसके माता-पिता और गाड़ी के मालिक को दोषी माना जाएगा और गाड़ी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जाएगा. अगर नाबालिग ड्राइवर की गाड़ी से किसी की मौत हो जाती है तो उसके माता-पिता को सज़ा होगी. 

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बुधवार, 24 जुलाई 2019

आरटीआई कानून को लेकर मोदी सरकार ने किया जनता के साथ धोखा -अन्ना हजारे

लोकसभा द्वारा सूचना के अधिकार कानून में संशोधन पारित करने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने केंद्र सरकार पर इस कदम के जरिये भारतीय नागरिकों से धोखा करने का आरोप लगाया.

 सोमवार को लोकसभा ने आरटीआई कानून में संशोधन किया जिसके तहत इस विधेयक में उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे.


NDTV ने लिखा ;हजारे ने कहा, ‘‘भारत को आरटीआई कानून 2005 में मिला था लेकिन आरटीआई कानून में इस संशोधन से सरकार इस देश के लोगों के साथ धोखा कर रही है.'' 82 वर्षीय हजारे ने कहा कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है लेकिन यदि देश के लोग आरटीआई कानून की शुचिता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरें तो वह उनका साथ देने के लिए तैयार हैं. 

हजारे अहमदनगर जिला स्थित अपने गांव रालेगांव सिद्धि में बोल रहे थे. हजारे के आंदोलन के चलते महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र सूचना का अधिकार कानून बनाया था जिसे सूचना के अधिकार कानून 2005 का आधार माना जाता है.

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मंगलवार, 23 जुलाई 2019

ये आकाशवाणी है अब आप कनकलता से समाचार सुनेंगे

विश्वपति वर्मा_

नमस्कार ,आकाशवाणी से प्रस्तुत है समाचार प्रभात

समाचार संध्या के साथ मैं चंद्रिका जोशी

अब आप लवलीन निगम से समाचार सुनेंगे

जी हां...ऐसे ही आवाज को आपने भी सुना होगा क्योंकि ये आपके लोकप्रिय रेडियो आकाशवाणी के समाचार वाचक की आवाज है ।

बचपन मे जब मैं पिता जी के पास बैठता था तब वें सुबह 8 बजे और संध्या 8:45 बजे की समाचार सुनते थे तब मैं भी उनके साथ 14 मिनट 56 सेकेंड से लेकर 15 मिनट की समाचार को सुनता था ।


2017 में आकाशवाणी से रिटायर हुए अखिल मित्तल की आवाज जैसे ही रेडियो पर आती थी ऐसा लगता था जैसे आसमान खुद गरज रहा हो,बताते हैं कि एक जमाने मे देवकीनंदन पाण्डेय और अमीन सयानी को जो लोग सुनते थे वो इनकी आवाज के दीवाने हो जाते थे ।

हरि सिंधु, सरिता बरारा ,विमलेन्दु कुमार पाण्डेय यूनुस खान, कमल शर्मा ,अमरकांत दुबे जैसे कई वाचक आज भी करोड़ो श्रोताओं के दीवाने हैं भले ही अब वें रेडियो सेट पर नही आते हैं ।कनकलता, ममता किरण,लवलीन निगम,मुकेश कुमार ,चंद्रिका जोशी जैसे समाचार वाचक रेडियो के चाहने वालों की जिंदगी में आज भी ताजगी घोल रहे हैं।

92 साल का हुआ आकाशवाणी

 आकाशवाणी की स्थापना 1927 में 23 जुलाई के दिन की गई थी और उस समय इस सेवा का नाम भारतीय प्रसारण सेवा (इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन) रखा गया था। देश में रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुंबई और कोलकाता में सन 1927 में दो निजी ट्रांसमीटरों से की गई। 1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ और 1957 में इसका नाम बदल कर आकाशवाणी रखा गया। प्रसार भारती (ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के नाम से भी जानते हैं) भारत की एक सार्वजनिक प्रसारण संस्था है। इसमें मुख्य रूप से दूरदर्शन एवं आकाशवाणी शामिल हैं। सरकारी प्रसारण संस्थाओं को स्वायत्तता देने के इरादे से 23 नवंबर 1997 को प्रसार भारती का गठन किया गया, जो देश की एक सार्वजनिक प्रसारण संस्था है और इसमें मुख्य रूप से दूरदर्शन और आकाशवाणी को शामिल किया गया है।

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सोमवार, 22 जुलाई 2019

विधायक ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया स्कूल चलो अभियान रैली,शिक्षक संघ ने भेंट किया स्मृति चिन्ह

 ब्लॉक संसाधन केंद्र सल्टौआ में सर्व शिक्षा अभियान के तहत खंड शिक्षा अधिकारी अनिल कुमार मिश्रा के नेतृत्व में ब्लॉक स्तर पर स्कूल चलो अभियान रैली निकाली गई रैली को मुख्य अतिथि रुधौली के विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

इस मौके पर विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने कहा कि सरकार के मंशा के अनरूप 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को स्कूल पंहुचाना है इसके लिए रैली निकाल कर जागरूकता अभियान चलाने के साथ उन बच्चों से सीधा जुड़ना होगा जो स्कूल आना चाहते हैं लेकिन विद्यालयों में सरकार की तरफ से उपलब्ध सेवाओं के बारे में नही जानते ,विधायक ने कहा कि हमारी प्राथमिकता है कि असहाय वर्ग के साथ सभी बच्चे स्कूल पंहुचें।

 इस दौरान प्राथमिक शिक्षक संघ जिला इकाई द्वारा ब्लॉक अध्यक्ष राम भरत वर्मा के नेतृत्व में संगठन के पदाधिकारियों ने मुख्य अतिथि एवं खंड शिक्षा अधिकारी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।

रैली में क्षेत्र के दर्जनों स्कूलों के बच्चों के साथ कस्तूरबा बालिका विद्यालय के बच्चियों ने प्रतिभाग किया .कार्यक्रम के समापन के बाद कस्तूरबा की बालिकाओं को खण्ड शिक्षा अधिकारी अनिल कुमार मिश्रा एवं  ब्लाक अध्यक्ष राम भरत वर्मा द्वारा स्कूल बैग वितरित कर बच्चियों के मनोबल को बढ़ाया गया।

इस मौके पर विजय प्रकाश चौधरी, राम प्रकाश शुक्ला, रमेश चौधरी, बब्बन पाण्डेय , भास्कर दुबे,  चंद्रशेखर पाण्डेय,सौरभ पद्माकर, अरुण कुमार शुक्ला ,संदेश रंजन एवं वार्डन ऋतु गुप्ता मौजूद रहीं।

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रविवार को आकाशीय बिजली गिरने और शर्पदंश की चपेट में आने से प्रदेश में 34 लोगों की मौत

उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली गिरने से 32 लोगों की मौत हो गई. जबकि घटना में कुछ लोगों के घायल होने की भी सूचना है. अभी तक मिली जानकारी के अनुसार रविवार को आकाशीय बिजली गिरने से सात-सात लोगों की मौत कानपुर और फतेहपुर में हुई है, जबकि झांसी में पांच, जलौन में चार, हमीरपुर में तीन, गाजिपुर में दो और जौनपुर, प्रतापढ़, कानपुर देहात और चित्रकूट में एक-एक की मौत हुई है. घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस ने घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती करा दिया है.मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने मारे गये लोगों के परिजनों को चार-चार लाख रुपए की राहत राशि तत्काल देने का निर्देश दिया है.
                 प्रतीकात्मक तस्वीर

NDTV के अनुसार प्रदेश के राहत आयुक्‍त कार्यालय से प्राप्‍त रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 24 घंटे के दौरान आकाशीय बिजली और सर्पदंश की घटनाओं में 34 लोग मारे गये हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभिन्न जनपदों में आकाशीय बिजली की चपेट में आने से लोगों की मौत पर गहरा शोक व्यक्त किया है. उन्होंने इस आपदा में मारे गये लोगों की आत्मा की शान्ति की कामना करते हुए उनके परिजनों के प्रति संवेदनाएं भी व्यक्त की. राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री ने सम्बन्धित जिलाधिकारियों को प्राकृतिक आपदाओं में मारे गये लोगों के परिजनों को चार-चार लाख रुपए की राहत राशि तत्काल वितरित करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने इन घटनाओं में घायल लोगों की समुचित चिकित्सा व्यवस्था किए जाने के भी निर्देश दिये हैं और यह भी कहा है कि राहत कार्यों में किसी भी प्रकार की ढिलाई बरदाश्‍त नहीं होगी. उन्होंने कहा कि संकट की इस घड़ी में राज्य सरकार पीड़ितों के साथ है और उनकी हर सम्भव मदद के लिए तत्पर है.

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शनिवार, 20 जुलाई 2019

4 करोड़ 92 लाख की लागत से सुधरेगी हथियागढ़ -गौरा मार्ग, सदर विधायक ने उठाई आवाज

कई वर्षो उबड़ खाबड़ रास्तों पर यात्रा कर रहे लोगों के लिए एक राहत भरी खबर है क्योंकि पॉलिटेक्निक चौराहे से गौरा जाने वाली सड़क का निर्माण एवं चौड़ीकरण जल्द ही शुरू होने वाला है।

इस सड़क के निर्माण के लिए क्षेत्रीय विधायक दयाराम चौधरी ने 4 जून को प्राक्कलन समिति की बैठक में यह बात रखी थी कि इस मार्ग को लोकनिर्माण विभाग में हस्तांतरित किया जाए .विधायक द्वारा प्रस्ताव रखे जाने के बाद समिति ने इस मार्ग को लोकनिर्माण विभाग में हस्तांतरित करने का निर्णय लिया ताकि क्षेत्रीय लोगों और यात्रियों की समस्या का समाधान हो सके।

 इस मार्ग के निर्माण और चौड़ीकरण के  लिए निर्माण विभाग ने 2.40 किलोमीटर सड़क के लिए 4 करोड़ 92 लाख 55 हजार रुपये के धनराशि की स्वीकृत दे दी है जिससे अब जल्द ही इस बदहाल सड़क का कायाकल्प होने वाला है।

दरअसल बस्ती के हथियागढ़ क्षेत्र में आने वाली यह सड़क जिला पंचायत के लिस्ट में थी जिसपर कई वर्षों से किसी प्रकार का कोई सुद्धिकरण एवं निर्माण का कार्य नही हुआ था जिसका परिणाम था कि सड़कों पर बड़े बड़े गड्ढे हो गए थे जिसकी वजह से आये दिन यात्रियों के लिए यह सड़क मुसीबत बनकर खड़ी थी।



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शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

प्रणब मुखर्जी का बड़ा बयान: आसमान से नहीं उतरेगी 50 खरब डॉलर की इकोनॉमी

नई दिल्ली :
NDTV

पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि आधुनिक भारत की नींव उन संस्थापकों ने रखी थी, जिनका योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में मज़बूत भरोसा था, जैसा आजकल नहीं है, जब योजना आयोग को खत्म कर दिया गया है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मावलंकर हॉल स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, "जो लोग 55 साल के कांग्रेस शासन की आलोचना करते हैं, वे यह बात नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि आज़ादी के वक्त भारत कहां था, और हम कितना आगे आ चुके हैं... हां, अन्य लोगों ने भी योगदान दिया, लेकिन आधुनिक भारत की नींव हमारे उन संस्थापकों ने रखी थी, जिन्हें योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में मज़बूती से भरोसा था, जबकि आज ऐसा नहीं है, जब योजना आयोग को ही खत्म कर दिया गया है..."

डॉ प्रणब मुखर्जी ने कहा, "जो 50-55 साल के कांग्रेस शासन की आलोचना करते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि हमने कहां से शुरू किया था, और कहां जाकर छोड़ा था... अगर भारत की अर्थव्यवस्था को 50 खरब अमेरिकी डॉलर तक ले जाना है, तो हमने 18 खरब डॉलर की मज़बूत नींव छोड़ी थी, जो लगभग शून्य से शुरू हुई थी..."


उन्होंने कहा कि भारत को भविष्य में 50 खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बना पाने की नींव पिछली सरकारों ने रखी थी, जिनमें जवाहरलाल नेहरू, डॉ मनमोहन सिंह और पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकारें भी शामिल थीं.

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गुरुवार, 18 जुलाई 2019

क्या आप भी करते हैं अनचाहे एप का इस्तेमाल ,तो हो जाइये सावधान

नॉलेज डेस्क_
विश्वपति वर्मा

आज कल देखने को मिलता है कि हम हम जाने अनजाने में अनचाहे एप को अपने स्मार्टफोन में डाउनलोड कर लेते हैं हम इस बात का अंदाजा नही रहता है कि हम जो एप डाउनलोड कर रहे हैं उसका क्या परिणाम हो सकता है।इसी तरहं आजकल सोशल मीडिया पर इन दिनों फेसऐप (FaceApp) काफी वायरल है। बहुत सारे यूजर्स इस ऐप का इस्तेमाल से अपने बुढ़ापे की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजंस (AI) की मदद से किसी व्यक्ति को जवान या बूढ़ा दिखा सकता है। यहां तक इस ऐप से जेंडर भी चेंज किया जा सकता है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह रशियन ऐप आपकी तस्वीरों के साथ क्या कर सकता है। यानी जब आप अपनी तस्वीर फेसऐप के सर्वर पर सबमिट कर देते हैं तब आपके फोटोज के साथ क्या होता है।

क्या है ऐप की पॉलिसी
अगर इस ऐप के टर्म्स और कंडीशंस की बात की जाए तो यह ऐप कहता है, 'आप फेसऐप को अपने कंटेंट का अपरिवर्तनीय, नॉनएक्सक्लूसिव, रॉयल्टी फ्री, वर्ल्डवाइड, फुलीपेड, ट्रांसफरेबल सब लाइसेंस देते हैं जिसका इस्तेमाल यूजर कंटेंट को रिप्रड्यूस, मोडिफाई, अडैप्ट, पब्लिश, ट्रांसलेट करने के लिए किया जा सकता है।'


ऐसी इस्तेमाल हो सकता है आपका डेटा
इसका मतलब यह है कि भविष्य में आपके फोटोज का इस्तेमाल सार्वजनिक रूप से किया जा सकता है। ऐप की पॉलिसी से साफ होता है कि आपके डेटा का इस्तेमाल आपकी लाइकनेस के आधार पर टेलिमार्केटिंग, ऐड्स और मार्केटिंग के दूसरे प्रारूपों के लिए किया जा सकता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि यह ऐप एक रशियन डिवैलपर ने बनाया है।

सिलेब्स भी कर रहे इस्तेमाल

फेसऐप को 2017 में लॉन्च किया गया था और अब यह अपने ओल्ड फिल्टर की वजह से वायरल हो गया है। ढेर सारे यूजर्स और सिलेब्स ने भी अपनी फोटो पर ओल्ड फिल्टर लगाकर सोशल मीडिया पर बुढ़ापे की तस्वीर शेयर कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर फिल्म स्टार से लेकर क्रिकेट्स, फुटबॉलर्स और कई अन्य सिलेब्रिटीज की तस्वीरे सोशल मीडिया पर वायरल हैं।

फेसऐप आर्टिफिशल इंटेलिजेंस या एआई की मदद से फोटो पर फिल्टर लगाता है और इसे रशियन डिवेलपर्स ने तैयार किया है। न्यूरल नेटवर्क्स की मदद से यह सेल्फी में अलग-अलग तरह के फिल्टर लगा सकता है और तस्वीरें एडिट करता है। इस ऐप का ओल्ड फिल्टर जहां वायरल हो गया है, वहीं इसमें स्माइल ऐड करने या कम उम्र का दिखने जैसा फिल्टर भी दिए गए हैं। इसमें दिए एक फिल्टर की मदद से जेंडर चेंज करके भी देखा जा सकता है।

किसी भी अनचाहे एप से बाहर निकलने का तरीका


यदि आपने गलती से या शौक से किसी एप में लॉगिन कर दिया है तो परेशान होने की जरूरत नही है ,आप सबसे पहले अपने फोन की सेटिंग में जाइये वँहा आपको Permissions का विकल्प मिलेगा यंहा पर जब आप क्लिक करेंगे तो आपके सामने चार विकल्प आएगा जिसमे फिर आपको Permissions पर क्लिक करना होगा इसके बाद आपको पता चल जाएगा कि आपने किस एप को आपने क्या क्या देखने के लिए अधिकार दिया हुआ है .वँहा से आप रिमूव भी हो सकते हैं।

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27 साल जेल में रहने के बाद तय किया राष्ट्रपति बनने का सफर,

आज नेल्सन मंडेला का जन्मदिन है जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में उन्होंने 27 साल जेल में काट दिए लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी .27 साल जेल की चहारदीवारी में कैद रहने के बाद नेल्सन मंडेला आगे चलकर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने।

 रंगभेद को मिटाने में मंडेला के योगदान का इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके सम्मान में साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनके जन्मदिन 18 जुलाई को 'मंडेला दिवस' के रूप में घोषित कर दिया। इसमें और भी खास बात यह है कि उनके जीवत रहते ही इसकी घोषणा हुई।

अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया
नेल्सन मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका में बासा नदी के किनारे ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। उन्हें लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। मंडेला 10 मई 1994 से 14 जून 1999 तक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। वे अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। उनकी सरकार ने सालों से चली आ रही रंगभेद की नीति को खत्म करने और इसे अफ्रीका की धरती से बाहर करने के लिए भरपूर काम किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया।

रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण नेल्सन मंडेला को तत्कालीन सरकार ने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप की जेल में डाल दिया था। यहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा। जिस सेल में वो रहते थे वह 8 फीट गुणा 7 फीट का था। यहां उन्हें एक खास-फूस की एक चटाई दी गई थी। इस पर वह सोते थे। साल 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। 

मंडेला पर गांधी का प्रभाव
नेल्सन मंडेला को अफ्रीका का गांधी भी कहा जाता है। उन्हें यह नाम ऐसे ही नहीं दिया गया। उन्होंने गांधी के विचारों से ही प्रभावित होकर मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी। उन्हें इस मुहिम में ऐसी सफलता मिली कि वे अफ्रीका के गांधी कहे जाने लगे। यह भी रोचक बात है कि दक्षिण अफ्रीका ने ही राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनाया।अफ्रीका में रंगभेद के कारण उन्हें ट्रेन की फर्स्ट क्लास बोगी से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद गांधीजी ने देश लौटकर अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई और उन्हें देश से बाहर करके ही दम लिया।
'भारत रत्न' से सम्मानित  
नेल्सन मंडेला ने जिस तरह से देश में रंगभेद के खिलाफ अपना अभियान चलाया उसने दुनियाभर को अपनी ओर आकर्षित किया। यही कारण रहा कि भारत सरकार ने 1990 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इसके बाद बड़ी बीमारी के चलते 3 दिसंबर, 2013 को 95 वर्ष की उम्र में नेल्सन मंडेला का निधन हो गया।

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बुधवार, 17 जुलाई 2019

प्रशासन के गलती की सजा मिल रही प्रधानों को, ग्राम पंचायतों का खाता सीज करने का मामला

विश्वपति वर्मा-

जनपद के सल्टौआ ब्लॉक के 83 ग्राम पंचायतों का खाता सीज कर प्रथम खाते से धन निकासी पर रोक लगा दिया गया है।इसकी वजह  गांवों में बने शौचालयों के निर्माण का फोटोग्राफ व यूनिकोडिग के साथ जियो टैग व वित्तीय मासिक योजना पूर्ण न होना बताई गई है।

तत्कालीन जिलाधिकारी डॉo राजशेखर ने 83 ग्राम पंचायतों के खाते को सीज करने का निर्देश एडीओ पंचायत को देकर उसी रात शासन के आदेश पर विदा हो गए वंही अपने मातहतों के निर्देशों का पालन करते हुए एडीओ पंचायत गिरीश सिंह राठौर ने बैंकों और सचिवों को निर्देशित कर दिया कि किसी भी हालत में ग्राम निधि के पैंसे की निकासी न हो पाए।

इस पूरे मामले की हम समीक्षा कर रहे थे तो हमने पाया कि इसमें प्रधान तो मोहरा बना दिये गए असली गलती तो प्रशासन की है जिसमे सबसे बड़ी गलती खुद डीएम राजशेखर ने कर दिया।

दरअसल केंद्र सरकार द्वारा जब पूरे देश के गांवों में शौचालय बनवाने का जोर दिया जा रहा था तब बस्ती में शौचालय का निर्माण काफी धीमी गति से चल रही थी लेकिन लोकसभा चुनाव के मध्यनजर देखते हुए शासन ने अपने सभी कारिंदों को निर्देशित कर दिया था कि चुनाव के पहले स्वच्छ भारत मिशन के तहत 100 फीसदी घरों में शौचालय का निर्माण पूरा होना चाहिए ।

किस जिला अधिकारी की हैंशियत है कि वह सरकार के आदेशों का पालन न करे .हर हाल में जिलाधिकारी को सरकार के आदेशों का पालन करना ही है भले ही सरकारी आंकड़ों में झूठी रिपोर्ट दिखा कर यह बता दिया जाए कि योजना पर काम कर दिया गया है।

बस यही सबसे बड़ी गलती डीएम राजशेखर ने भी कर दिया कि उन्होंने बस्ती में शौचालय के आंकड़े को पूरा करने के लिए तमाम प्रकार के कायदे कानून का मौखिक रूप से निर्माण किया लेकिन धरातल पर शौचालय निर्माण और जियो टैग का काम पूरा नही हो पाया।इस बात की जानकारी खुद डीएम राजशेखर को थी कि धरातल पर शौचालय का काम पूरा नही हो पा रहा है लेकिन शासन के आदेशों पर कोरम पूरा करने के लिए डीएम राजशेखर ने पंचायती राज के जिम्मेदारों को निर्देशित कर दिया कि वेबसाइट और रिपोर्ट में 99 फीसदी  से अधिक शौचालय का निर्माण दिखाया जाए ।लेकिन सच्चाई तो यह है कि जब शौचालय का निर्माण हुआ ही नही है तो फोटोग्राफ और यूनिकोडिंग का कार्य कैसे दिखाई देगा।

इस पूरे मामले में हमने पाया कि इसमें प्रधानों की कोई गलती नही है हर प्रधान यह चाहता था कि शौचालय का काम पूरा हो जाये लेकिन जब गांव की जनता इसमे रुचि नही ले रही थी तो आखिर यह काम कैसे पूरा हो दूसरी तरफ जनता की भी बहुत बड़ी गलती नही थी सरकार के तरफ से 12000  रुपये का सहयोग मिल रहा था जो लोग आर्थिक रूप से ज्यादा परेशान नही थे वह लोग तो 12 हजार लेकर शौचालय बनवा लिए लेकिन जो बेहद गरीब और असहाय परिवार के लोग थे वह 12 हजार में शौचालय कैसे बनवाते लिहाजा आज भी 40 फीसदी से अधिक घरों में शौचालय निर्माण का काम पूरा नही हो पाया है।

रही बात वित्तीय मासिक योजना को पूरा न करने की तो इसमे  सबसे बड़ा दोषी खण्ड विकास अधिकारी है आखिर वह किस बात के लिए ब्लॉक का मुखिया होता है क्या उसे अपने ब्लॉक के ग्राम पंचायतों की संचालित व्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत नही है ,क्या उसने इस मामले में कभी ग्राम विकास एवं पंचायत अधिकारी या लेखा जोखा तैयार करने वाले को तलब किया ?शायद नही यदि ऐसा किया गया होता तो आज यह स्थिति नही आती ,सरकारी वेबसाइट प्रिया सॉफ्ट पर सल्टौआ ही नही पूरे जिले भर में लगभग 312 ग्राम पंचायतों का विवरण अभी तक पोर्टल पर दर्ज नही किया गया है अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसमें बड़ी गलती किसकी है ,देखा जाए तो इसमे पूरी गलती प्रशासन की है जिसे ग्राम पंचायत के विकास कार्यों एवं फीडिंग पर ध्यान देना था लेकिन अधिकारियों कर्मचारियों ने आज तक इसे गंभीरता से लिया ही नही .अब आप अपने आप से विचार कीजिये कि इस पूरे मामले में दोषी कौन है जिसका ठीकरा प्रधानों के सिर पर फोड़ दिया गया है ।

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सोमवार, 15 जुलाई 2019

विश्वकप के फाइनल मुकाबले में दोनों टीमों का रन हुआ बराबर, तो सुपर ओवर में इंग्लैंड को मिला जीत

खेल डेस्क. इंग्लैंड ने न्यूजीलैंड को हराकर वर्ल्ड कप 2019 को जीत लिया। मैच में न्यूजीलैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 50 ओवर में 8 विकेट पर 241 रन बनाए थे। इंग्लैंड की टीम भी 50 ओवर में 241 रन ही बना सकी। इसके बाद हुए सुपर ओवर में भी दोनों टीमों ने 15-15 रन बना दिए। जिसके बाद मैच में ज्यादा बाउंड्री लगाने के कारणसे इंग्लैंड को विजेता घोषित कर दिया गया। मैच के बाद हुई अवॉर्ड सेरेमनी के दौरान विजेता टीम के कप्तान इयॉन मॉर्गन ने सुपरओवर खेलने वाले बल्लेबाजों को जीत का श्रेय दिया। तो वहीं न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियम्सन ने आखिरी ओवर में बेन स्टोक्स के बैट से लगकर ओवर-थ्रो पर गए चार रन को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए क्रिकेट में ऐसी घटना दोबारा नहीं होने की बात कही। उधर स्टोक्स ने भी इस घटना को लेकर कहा कि उन्हें जिंदगी भर इसका अफसोस रहेगा।
स्टोक्स ने कहा, 'मेरे पास शब्द नहीं हैं। पिछले चार सालों के दौरान हमने जितनी भी कड़ी मेहनत की और इतने जबरदस्त मैच के साथ उसे हकीकत में उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। हमारा समर्थन करने के लिए सबको धन्यवाद। जोस के साथ साझेदारी के दौरान हम लगातार बात कर रहे थेऔर इस दौरान रन रेट को भी संभाल रखा था। आखिरी ओवर में जब बॉल बल्ले से लगकर चौके के लिए चली गई थी, तब मैंने विलियम्सन से इसके लिए माफी भी मांगी थी। मैंने उनसे कहा था मैं इसके लिए जिंदगीभर माफी मांगता रहूंगा।'

न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियम्सन ने कहा, 'हम 10-20 रन और बनाना चाहते थे, लेकिन विश्व कप के फाइनल में इतना स्कोर भी अच्छा रहता है। हमारे गेंदबाजों ने बल्लेबाजों पर काफी दबाव बनाया। जिसके चलते मैच आखिरी बॉल तक चला गया और इसके बाद अगले छोटे से मैच की आखिरी बॉल तक भी गया। कुल मिलाकर ये बेहद शानदार मैच था। ये शर्मनाक बात थी कि उस वक्त बॉल बेन स्टोक्स के बैट से टकरा गई थी, लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि इतने नाजुक मौके पर ऐसा नहीं होना चाहिए था और आगे कभी ऐसा मौका नहीं आएगा। दुर्भाग्य से इस तरह की चीजें अक्सर होती रहती हैं। ये हमारे खेल का हिस्सा बन चुकी हैं। उम्मीद करूंगा कि आगे कभी ऐसा मौका नहीं आएगा।'


इंग्लैंड के कप्तान इयॉन मॉर्गन ने कहा, 'खेल में काफी कुछ था, मैं केन और उनकी टीम के साथ सहानुभूति प्रकट करना चाहूंगा। उन्होंने जिस तरह से आखिरी वक्त खेल दिखाया वो प्रेरणा लेने लायक है। ये बेहद कठिन मैच था। विकेट पर रन बनाने में सबको दिक्कत हो रही थी। हमने कई विकेट गंवा दिए, लेकिन बटलर और स्टोक्स ने शानदार साझेदारी की। तब मुझे लग रहा था कि वे हमें संकट से निकाल देंगे और ऐसा ही हुआ। मैच के दौरान हम सबकी हालत खराब थी। मुश्किल हालातों में लियम प्लंकेट मुझे शांत कर रहा था। ये अच्छा संकेत नहीं है। हमारे कुछ खिलाड़ी और सपोर्ट स्टाफ के कुछ सदस्य ना केवल हमारी टीम में बल्कि दुनिया में सबसे अच्छे हैं। उन्होंने हमें शांत रखने में सच में काफी मदद की। पूरा श्रेय सुपर ओवर खेलने वाले दोनों लड़कों (बेन स्टोक्स और जोस बटलर) को जाता है।वहीं आर्चर भी हर बार एक नए सुधार के साथ सामने आते हैं।'

विलियम्सन और स्टोक्स नेजिस घटना का जिक्र किया वो आखिरी ओवर की चौथी बॉल परहुई थी, जब इंग्लैंड को जीत के लिए 3 बॉल पर 9 रन बनाने थे। इसी वक्त बेन स्टोक्स ने मिड विकेट की ओर शॉट खेला और तेजी से एक रन लेने के बाद दूसरारन पूरा करने के लिए स्ट्राइक एंड की तरफडाइव लगा दी। तभीगुप्टिलका थ्रो आकर उनके बैट पर लग गया और बॉल बाउंड्री पार चली गई। इससे इंग्लैंड को बिना कुछ किए चार अतिरिक्त रन मिल गए थे। जो कि मैच का टर्निंग प्वाइंट बन गया।

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रविवार, 14 जुलाई 2019

बस्ती/यूपी पुलिस ने पेश किया मानवता का मिसाल, बीमार बुजुर्ग को अस्पताल में भर्ती कर कराया इलाज

 बस्ती। शनिवार को एक पुलिसकर्मी ने ऐसी मिसाल पेश की है जो दूसरों के लिये प्रेरणास्रोत से कम नही है। बस्ती के दक्षिण दरवाजा चौकी से 200 मीटर आगे सदर अस्पताल रोड के पास एक बुजुर्ग जिनकी उम्र करीब 78 वर्ष थी जो काफी बुखार से पीड़ित थे। कुछ भी बताने में सक्षम नहीं थे। काफी लोगो ने उन्हे घेर रखा था। पास से जा रहे टी0एस0आई0 कामेश्वर सिंह ने देखा कि बुजुर्ग काफी बीमार है।

लोगो द्वारा पूछने पर बताया गया कि एक व्यक्ति मोटरसाइकिल से उन्हे छोड़ कर चला गया है। टी0एस0आई0 कामेश्वर सिंह ने मानवीय संवेदना दिखाते हुए तुरंत बीमार बुजुर्ग को अपनी गाड़ी से ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया। उनका उपचार शुरू हुआ।

होश में आने पर बुजुर्ग ने अपना नाम केशव प्रसाद शुक्ला निवासी चैनपुरवा थाना पुरानी बस्ती जनपद बस्ती बताया। टी0एस0आई0 ने बुजुर्ग के परिजनों को सूचित कर अस्पताल बुलाया जहाँ उनका दवा इलाज चल रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब लोग किसी को यूं ही तड़पता छोड़कर चले जाते हैं, कहीं मानवीय संवेदनायें जाग न जायें इसलिये प्रायः लोग ऐसे मामलों में नजरे चुराते देखे जा सकते हैं। लेकिन टीएसआई ने जो मिसाल पेश की वह महकमे के लिये गौरव की बात है।

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शनिवार, 13 जुलाई 2019

दलित लड़के से शादी करने वाली विधायक की बेटी मीडिया में आने के बाद बोली"अब मैं सुरक्षित हूँ"

यूपी के बरेली से बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी मिश्रा  का वीडियो वायरल होने के बाद यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है. वायरल वीडियो में विधायक की बेटी ने दावा किया था कि दलित लड़के के साथ शादी करने की वजह से उनके पिता ने उनके पीछे गुंडे भेजे और अब उनकी जान को खतरा है. हालांकि अब साक्षी मिश्रा का कहना है कि पुलिस द्वारा दिए गए सुरक्षा के वादे के बाद वह सुरक्षित महसूस कर रही हैं. साक्षी और उनके पति अजितेश ने मीडिया से कहा, 'मैं मीडिया के सामने नहीं आना चाहती थी लेकिन अपने पिता का बयान देखने के बाद मुझे मीडिया के सामने आना पड़ा. लोग इसे सियासी दबाव के रूप में देख रहे हैं लेकिन मुझे सियासत नहीं करनी है भविष्य में.'

साक्षी ने कहा, 'मैं अब सुरक्षित महसूस कर रही हूं. जब हम पहले एसएसपी से मिले थे तब उन्होंने सही तरीके से कोई जवाब नहीं दिया था लेकिन जब हम मीडिया के पास गए तो उन्होंने हमें सुरक्षा देने का वादा किया. अब हम डरे हुए नहीं हैं और सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.'

23 साल की साक्षी ने 29 साल के व्यापारी अजितेश से बीते गुरुवार को इलाहाबाद के एक मंदिर में शादी की थी. इस मामले के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद विधायक पिता ने दावा किया था कि उन्हें लड़के की जाति से कोई आपत्ति नहीं थी बल्कि दोनों के बीच उम्र के अंतर और लड़के का कम कमाना आपत्ति की वजह थी.


लेकिन विधायक की बेटी ने अपने पिता के दावे को खारिज कर दिया था. साक्षी ने कहा था, 'मैं उस घर में रह चुकी हूं और जानती हूं कि वे जाति व्यवस्था में विश्वास रखते हैं. मुझे पता है कि अगर मैं उन्हें बताती कि मैं दूसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहती हूं तो वह इसकी इजाजत कभी नहीं देते.' 

वहीं अब साक्षी और उनके पति ने कहा कि वह सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. अजितेश ने शुक्रवार को कहा था, 'मैं पीएम मोदी से अपील करता हूं कि उन्हें विधायक राजेश मिश्रा से मीटिंग के लिए बात करना चाहिए और उनकी सोच को बदलना चाहिए.' 

साक्षी ने बताया, 'हम इलाहाबाद में एक होटल में रुके थे और सोमवार की सुबह मैं सो रही थी. उस वक्त अजितेश रिसेप्शन पर मौजूद आदमी के साथ बैठे थे. उस वक्त 2 लोग वहां आए जिन्हें अजितेश ने पहचान लिया. ये लोग मेरे पापा के दोस्त थे. इन लोगों ने कहा कि वो चंडीगढ़ से आए हैं और उन्हें होटल के मालिक कृष्णा से मिलना है. अजितेश ने मुझे फौरन कमरे में आकर उठाया और हम पीछे के रास्ते वहां से निकल गए. फिर हम मध्य प्रदेश चले गए.' 

साक्षी ने बताया, 'वो लोग मेरे शहर के थे और मैंने उन्हें पहचान लिया था. उन लोगों की मजबूरी थी कि वो मेरे साथ दूसरे शहर में कुछ नहीं कर सकते थे. अब हमें मीडिया के सामने आने के बाद सुरक्षित महसूस हो रहा है.'

साक्षी ने बताया, 'हम एमपी से इलाहाबाद आए और वकील से बात की. वकील ने कहा कि हम सुरक्षित नहीं हैं जिसके बाद हम फिर एमपी चले गए. मैंने बरेली के एसएसपी को कॉल किया लेकिन उन्होंने अच्छे से जवाब नहीं दिया और कहा कि जब तक कोर्ट का ऑर्डर नहीं आता, तब तक मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता.' 
श्रोत-एनडीटीवी

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गुरुवार, 11 जुलाई 2019

दलित लड़के से शादी करने वाली विधायक की बेटी के वायरल वीडियो के बाद ,पापा ने दिया यह जवाब

यूपी के बरेली जिले की चैनपुर सीट से बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल की बेटी साक्षी का एक वीडियो वायरल हुआ है. साक्षी ने दलित युवक अजितेश कुमार के साथ वैदिक हिन्दू रीति रिवाज से शादी की. जिसके बाद उसने पुलिस से गुहार लगाते हुए कहा है कि उसे और उसके पति को पिता से जान का खतरा है, इसलिए उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए. इस मामले में साक्षी के पिता राजेश मिश्रा ने मीडिया के सामने व प्रेस रिलीज जारी किया है. उनका कहना है कि बेटी बालिग है और उसको निर्णय लेने का अधिकार है, उन्होंने किसी को कोई जान से मारने की धमकी नहीं दी है.

मेरे खिलाफ मीडिया में जो चल रहा है यह सब गलत है बेटी बालिग है, उसको निर्णय लेने का अधिकार है, मैंने किसी को कोई जान से मारने की धमकी नहीं दी है, न ही मेरे किसी आदमी ने दी है, न ही मेरे परिवार के किसी व्यक्ति ने दी है.
मैं व मेरा परिवार अपने काम में व्यस्त हैं, मैं अपनी विधानसभा में जनता का कार्य कर रहा हूं व पार्टी (भाजपा) का सदस्यता चला रहा हूं. मेरी तरफ से किसी कोई खतरा नहीं है.''

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बुधवार, 10 जुलाई 2019

आरटीआई की जरूरत नही-एक क्लिक में पाएं अपने ग्राम पंचायत में खर्च हुए धन का ब्यौरा

विश्वपति वर्मा_

कई बार देखने को मिला है कि लोग अपने ग्राम पंचायत में आय व्यय की जानकारी के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं लेकिन फिर भी उन्हें सही जानकारी नही मिल पाती है .तो आइए हम आपको तहकीकात समाचार (tahkikatsamachar) के माध्यम से बताते हैं कि बहुत ही आसान तरीके से कि अपने ग्राम पंचायत का हिसाब किताब आप कैसे पा सकते हैं।

ई पंचायत प्रोग्रेस रिपोर्ट से मिलेगा आपको जानकारी

ग्राम पंचायत में आय व्यय की जानकारी लेने के लिए आप सबसे पहले गूगल पर ई पंचायत सर्च करना है, आप चाहें तो नीचे दिए गए लिंक से भी आप वँहा पंहुच सकते हैं👇

https://reportingonline.gov.in/workWiseProcess.htm

ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करने के बाद आपके सामने पंचायती राज विभाग का पोर्टल खुलेगा जो इस तरहं से होगा

यह पेज खुलने के बाद सबसे पहले आपको उस वर्ष का चयन करना है जिस वर्ष का आय व्यय आप चाहते हैं, उसके बाद आपको अपने राज्य का नाम भरना होगा

फिर आपको लोकल बॉडी के कॉलम पर टिक करना है

अब आपको उस इकाई का चयन करना है जिसकी जानकारी आप चाहते हैं ,उदाहरण स्वरूप ग्राम पंचायत के लिए gram panchayat भरना होगा

अब आपको अपने जिले का नाम भरना होगा

उसके बाद आपको अपने ब्लॉक।का नाम।भरना होगा

नीचे की पट्टी एक्टिविटी नेम  का कालम आप छोड़ दीजिए।

उसके बाद ब्लैक पट्टी पर लिखा कैप्चा नीचे के खाली स्थान पर भरिये ।

Get Report पर क्लिक करते ही आपके सामने आपके ग्राम पंचायत की पूरी जानकारी खुल जायेगी।

यदि आपके ग्राम पंचायत के कालम में आय व्यय की जानकारी दर्ज नही है तो आप इसकी शिकायत मुख्यमंत्री पोर्टल पर कर सकते हैं जिससे तत्काल प्रभाव से सम्बंधित ग्राम सचिव का वेतन तब तक रोक दिया जाता है जब तक सम्पूर्ण जानकारी अपडेट न करवा दी जाए।

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बजट में भी छल्ला-छल्ला ,आर्थिक सर्वे और बजट के अध्ययन में 1 लाख 70 हजार करोड़ का हिसाब गायब

रवीश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार_

श्रीनिवासन जैन ने एक रिपोर्ट की है. बजट से 1 लाख 70 हज़ार करोड़ का हिसाब ग़ायब है. प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन रॉय ने आर्थिक सर्वे और बजट का अध्ययन किया. उन्होंने देखा कि आर्थिक सर्वे में सरकार की कमाई कुछ है और बजट में सरकार की कमाई कुछ है. दोनों में अंतर है. बजट में राजस्व वसूली सर्वे से एक प्रतिशत ज्यादा है. यह राशि 1 लाख 70 हज़ार करोड़ की है, क्या इतनी बड़ी राशि की बजट में चूक हो सकती है.

पहले रिवाइज्ड एस्टिमेट को समझिए. इसमें सरकार अनुमान बताती है कि उसकी कमाई कितनी हो सकती है. आर्थिक सर्वे प्रोविज़नल एक्चुअल का इस्तेमाल करता है. मतलब बताता है कि वास्तव में कितनी कमाई हुई. ये ज़्यादा सही आंकड़ा होता है. 2018-19 के बजट में रिवाइज्ड एस्टिमेट 17.3 लाख करोड़ का है. जबकि आर्थिक सर्वे में सरकार की वास्वतिक कमाई 15.6 लाख करोड़ की है. तो 1 लाख 70 हज़ार करोड़ कहां गए?

सरकार की कमाई के हिसाब में अंतर है यानी गड़बड़ी प्रतीत होती है. दूसरी तरफ सरकार के ख़र्चे में भी कमियां पकड़ में आई हैं. बजट में 2018-19 के लिए 24.6 लाख करोड़ का खर्च बताया गया है, जबकि आर्थिक सर्वे में सरकार ने मात्र 23.1 लाख करोड़ खर्च किया है. तो सवाल है कि डेढ़ लाख करोड़ का हिसाब कैसे कम हो गया? श्रीनिवासन जैन ने अपने सवाल वित्त मंत्रालय को भेजे हैं, मगर जवाब नहीं आया है. रथिन राय ने बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में इस पर विस्तार से लिखा है. रथिन राय का कहना है कि अगर आर्थिक सर्वे का डेटा सही है तो स्थिति गंभीर है. 2014-15 से लेकर अब तक केंद्र सरकार का 1.1 प्रतिशत छोटा हो गया है.

श्रीनिवासन जैन ने भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग के पूर्व प्रमुख प्रणब सेन से बात की. प्रणब सेना पिछले साल इस्तीफा दे दिया था. उनका कहना है कि अगर ऐसी गलती या चूक किसी कंपनी में हुई होती तो उस कंपनी का मुख्य वित्तीय अधिकारी बर्खास्त कर दिया जाता. कमाई का अनुमान जो बताया जाता है अगर उससे कम कमाई हो और सरकार उसे हाईलाइट न करे तो यह चिन्ता की बात है. सवालों के जवाब मिल सकते थे, लेकिन वित्त मंत्रालय से एक ख़बर है. 'द प्रिंट' नामक वेबसाइट की खबर है, रिपोर्ट का मुखड़ा है, बजट हो गया, लेकिन निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगाई. जिनके पास पत्र सूचना कार्यालय की मान्यता है वैसे पत्रकार भी तभी प्रवेश कर सकेंगे जब अधिकारी से समय लिया गया होगा.

रेम्या नायर ने यह रिपोर्ट सूत्रों के हवाले से लिखी है. वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि ऐसा कोई औपचारिक आदेश जारी नहीं हुआ है. रेम्या ने लिखा है कि पहली बार है जब ऐसी बंदिश लगी है. जिनके पास PIB कार्ड होता है वे विदेश और रक्षा मंत्रालय को छोड़कर बाकी सभी मंत्रालयों में बिना रोक-टोक आ-जा सकते हैं. वित्त मंत्रालय में सिर्फ बजट से दो महीने पहले ऐसी रोक लगती है, मगर बजट के बाद भी यह बंदिश नहीं हटाई गई है. इस ख़बर को कुछ और वेबसाइट ने भी रिपोर्ट किया है.

तो जो बजट के हिसाब में 1 लाख 70 हज़ार करोड़ की कमी के सवाल का जवाब कैसे मिलेगा? सरकार दो दस्तावेंजों में अलग-अलग कमाई कैसे बता सकती है. बजट को लाल कपड़े में लाया गया था. एक व्यापारी ने कहा कि हम अपने बहीखाते में कम से कम सही सही लिखते हैं, क्योंकि वो हमारा होता है. तो फिर वित्त मंत्रालय को इस प्रश्न का जवाब नहीं देना चाहिए. क्या मुख्य आर्थिक सलाहकार को नहीं बताना चाहिए कि 1 लाख 70 हज़ार करोड़ का हिसाब कहां गया?

इन लोगों को तो आप रोज़ ही देखते होंगे. अपने अपने शहर की सड़कों पर. गाड़ियों के पीछे भारत की पूरी जातिप्रथा जीवित अवस्था में नामांकित गतिशील नज़र आती है. अभी-अभी गुर्जर की कार निकली नहीं कि बगल से ब्राह्मण की कार आ गई. समझ नहीं आता है कि क्या किसी न्यूट्रल को इन दोनों में से किसी एक को चुनना होगा या दोनों से संभल कर रहना होगा. कारों पर ब्राह्मण, राजपूत, अहीर, यादव, ख़ान, ठाकुर, लिखा देखकर यकीन होता है कि जाति प्रथा एक गतिशील प्रथा है. मेरी राय में मारुति और महिंद्रा को अपने ब्रांड का नाम लिखने की जगह ख़ाली छोड़ देनी चाहिए ताकि लोग अपनी जाति, गोत्र का नाम लिख सकें. आइये इसका विश्लेषण करते हैं. कारणों को गेस करते हैं. क्या वजह होती होगी कारों पर गुर्जर लिखने की, जाट लिखने की या ब्राह्मण लिखने की. क्या कार चोरी करने वाला गिरोह अपने लीडर की जाति का कार नहीं चुराता होगा या खास जाति की कार इसलिए छोड़ देते होंगे कि आस-पास के इलाके में उनका वर्चस्व है. कहीं पकड़ में आ गए तो अंतर्ध्यान कर दिए जाएंगे. या फिर जाति का नाम लिखने से उस जाति के ट्रैफिक पुलिस की मेहरबानी मिल जाएगी. कुछ तो होता है या फिर लोग अपनी मासूमियत में लिख जाते होंगे कि फलां की कार है. उस जाति के लोग में गौरव भाव जागता होगा कि हमारी बिरादरी वाले ने कार खरीदी है. हमें भी कार खरीदनी चाहिए. राजधानी दिल्ली में हर कार की जाति होती है. प्रेस वालों की भी जाति ही होती है, जिसे देखो अपनी कार के शीशे पर प्रेस लिख लेता है. लिखने वाले तो जज भी लिख देते हैं. ब्लॉक प्रमुख, प्रधान और विधायक, सांसद तो मान्य प्रथा है. लोगों की कार लोगों की पहचान है. इन सब लोगों ने अपनी कार पर भारतीय क्यों नहीं लिखा, पता नहीं. भारतीय तो सब है हीं, भारतीय के भीतर जाति सुप्रीम है. ऐसा प्रतीत होता है.


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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

गाय माता ,दुर्गा माता ,भारत माता तो बहाना है,देश मे ढाई करोड़ लड़कियां वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं इसको छिपाना है

विश्वपति वर्मा_

धरती माता, गाय माता ,भारत माता जैसे न जाने कितनी माताओं को इस देश के लोगों को गुमराह करने के लिए पैदा कर दिया गया है ,लेकिन ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग ढाई करोड़ करोड़ महिलाएं और लड़कियां वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं लेकिन इसपर बात नही होती,रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकांश सेक्स वर्कर 16 साल से कम उम्र में ही इस धंधे में उतर गई यानि कि स्पष्ट है कि उन्हें मजबूरियों ने इस धंधे में उतरने के लिए विवश किया है।
      इलाहाबाद के मीरगंज रेडलाइट एरिया की एक तस्वीर

जाहिर सी बात है कि इतनी बड़ी आबादी में अधिकांश निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार की बच्चियां शामिल हैं ऐसा नही है कि उच्च वर्ग की लड़कियां इस माहौल में नही हैं बल्कि शर्त यह है कि उन्हें वेश्या नही बोला जायेगा सनी लियोनी के नाम पर उन्हें सेलिब्रिटीज बोला जाएगा।और फिर वही लोग आपके घरों में इस्तेमाल क्या होगा उसे टीवी पर आकर बताएंगी फिर वह भी आपकी फैन हो जाएंगी ।और इसी तरीके से बड़े बड़े सपने देखकर लड़कियां घर से निकल जाती हैं लेकिन सारे सपनों का संसार वंही खत्म हो जाता है जब वें रेड लाइट एरिया के कोठे पर बिक जाती हैं।

लेकिन देश के जिम्मेदार लोगों ने कभी इस बात की गंभीरता नही लिया कि आखिर इतनी बड़ी आबादी वेश्यावृत्ति जैसे धंधे में लिप्त है तो आखिर इसका कारण क्या हो सकता है?क्या वह किसी की बहन -बेटी और मां नही हैं जिनकी रक्षा-सुरक्षा और रोजगार की बात की जाए? भारत मे अक्सर देखने को मिलता है कभी गाय माता कभी दुर्गा माता तो कभी भारत माता के नाम पर दंगे होते रहते हैं यह दंगा होने का कारण यह है कि लोगों को लगता है की किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा माता के ऊपर ठेस पंहुचाया गया है लेकिन कभी इस बात पर दंगा होते नही देखा गया कि देश के शहरों को "रेड लाइट एरिया" से मुक्त किया जाए ,आप सोचिये जिस देश मे ढाई करोड़ महिलाएं सेक्स रैकेट का हिस्सा बन चुकी हैं वह देश के ढाई करोड़ परिवारों से आती होंगी लेकिन देश की इतनी बड़ी आबादी ने कभी इसपर आवाज नही उठाई न ही इतनी बड़ी आबादी ने कभी हक अधिकार और रोजगार की मांग करने के लिए आगे आई.आएंगे भी कैसे इन्हें गाय माता, भारत माता और दुर्गा माता की समस्या सबसे बड़ी लगती है .जब आप विश्व के अन्य देशों के बारे में अध्ययन करेंगे तो आपको पता चलेगा कि जापान के लोग अपने देश को कभी जापान माता नही बोलते, अमेरिका ने अपने देश को कभी अमेरिका माता नही बोला ,ऐसे ही दुनिया में सैकड़ों देश है लेकिन उनके नागरिक अपने देश को माता नही बोलते लेकिन यंहा भारत मे हर वह चीज सबकी माता हो जाती है जिसके पिता का पता ही नही है।लेकिन जिसके बारे में सबकुछ पता है उसपर कभी आवाज नही उठती।

इस लिए इतनी बड़ी समस्या पर विचार करने की जरूरत है ,व्यवस्था में बदलाव की मांग करने की जरूरत है,सरकार से लड़ाई की जरूरत है ,भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए भारत मे ग्लैमर वर्ल्ड पर पाबंदी की जरूरत है ।

और इसके लिए सबसे बड़ी जरूरत यह है कि लोग  बेबुनियाद मुद्दे पर बात करना बंद करें, भारत माता, गाय माता, दुर्गा माता, धरती माता कंही भी खतरे में नही हैं खतरे में हैं तो आपकी बहन बेटियां इस लिए सबसे पहले मुद्दे पर बात करने की जरूरत है ,यदि इस बात को दरकिनार किया गया तो वर्तमान में ढाई करोड़ की संख्या में जो लड़कियां वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं आने वाले दिनों में यह संख्या 5 -10 करोड़ भी हो सकता है ,सोचो ये लड़कियां आयेंगी कंहा से।

लेबल:

रोडवेज के जिम्मेदारों की "गलती" और बस्ती के ड्राइवर की "झपकी" से उजड़ गए 29 परिवार

विश्वपति वर्मा_
   लखनऊ

 सोमवार को एक्सप्रेस-वे पर हुई रोड़वेज बस की दुर्घटना की जानकारी मिली तो हर जगह हाहाकार मच गया वंही यात्रियों के परिजनों को जानकारी मिली तो हर घर मे कोहराम मच। बस में ड्राइवर कंडक्टर के साथ 52 लोग सवार थे। परिवहन निगम के अधिकारियों ने बताया कि इस दुर्घटना में 29 लोगों की मौत हो गई जबकि 23 लोग गंभीर रूप से घायल हैं।सभी घायलों का इलाज आगरा के निजी नर्सिंग होम में चल रहा है।

रोड़वेज के जिम्मेदार रुट न बदलते तो बच जाती जान

जानकारी के अनुसार रात दस बजे इस बस को आलमबाग से पैसेंजर्स को लेकर गाजीपुर जाना था। दस बजे तक बस में गाजीपुर के लिए मात्र दो पैसेंजर्स ही मिले जबकि दिल्ली के लिए बड़ी संख्या में पैसेंजर्स यहां बस का इंतजार कर रहे थे। ऐसे में अधिकारियों ने बस ड्राइवर को गाजीपुर की जगह दिल्ली जाने का आदेश दिया। तीन दिन बाद छुट्टी से लौटा ड्राइवर सवा दस बजे दिल्ली के लिए रवाना हो गया।

ड्राइवर ने कहा रुट की जानकारी नही

अधिकारियों के अनुसार इस बस का रूटीन ड्राइवर विपिन कुमार छुट्टी पर था इसलिए कृपा शंकर चौधरी को बस को लेकर भेजा गया। गाजीपुर रूट पर चलने वाले इस बस ड्राइवर को दिल्ली के रास्तों की सही जानकारी नहीं थी। इस एक्सीडेंट से पहले कृपा शंकर चौधरी के नाम कोई एक्सीडेंट नहीं दर्ज है। ड्राइविंग के समय कृपा शंकर ना नशे में थे और ना ही वह मोबाइल पर बात कर रहे थे। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि सुबह तड़के साढ़े चार से पांच के बीच ड्राइवर को झपकी आई और इसी दौरान बस अनियंत्रित होकर एत्मादपुर के निकट रोड साइड रेलिंग तोड़ते हुए झरना नाले में जा गिरी।

नियमों से खेल रहे अफसर

रोडवेज के अधिकारी कमाई के चलते ड्राइवर्स और कंडक्टर्स की डयूटी से खिलवाड़ कर रहे हैं। नियमानुसार 400 किमी से अधिक का सफर होने पर बस में दो चालक भेजे जाएंगे। ऐसे में दिल्ली जाने वाली सभी बसों में सभी बसों में दो ड्राइवर्स भेजे जाने चाहिए लेकिन अधिकारी एक ड्राइवर के भरोसे ही दिल्ली के लिए बसें रवाना कर देते हैं। जबकि लखनऊ से दिल्ली की दूरी तकरीबन 600 किमी है।

रोडवेज में नियमों को देखें तो  रेग्यूलर ड्राइवर्स और कंडक्टर्स को रोजाना आठ घंटे बस संचालन के साथ महीने में केवल 25 दिन ड्यूटी करनी होती है यदि ड्राइवर चाहे तो 12 घण्टा आराम करने के बाद फिर से ड्यूटी ज्वाइन कर सकता है वंही संविदा ड्राइवर्स और कंडक्टर्स को हर माह तय किलोमीटर और 22 दिन की ड्यूटी पर फिक्स वेतन देने का नियम है साथ ही  संविदा ड्राइवर्स को 22 दिन की ड्यूटी में 5000 किलोमीटर का सफर तय करना होता है वंही संविदा कंडक्टर को 24 दिन की ड्यूटी में 6000 किलोमीटर का सफर पूरा करना होता है।

बसों की फिटनेस का नियम

रोडवेज की बसों में दो तरह से फिटनेस की जाती है। आरटीओ कार्यालय के यातायात पथ निरीक्षक सर्वेश चतुर्वेदी के अनुसार नए वाहनों का शुरूआत में दो वर्ष बाद फिटनेस परखी जाती है। इसके बाद हर साल फिटनेस कराना अनिवार्य होता है। फिटनेस के लिए आने वाली बसों में ब्रेक, हेडलाइट, रेफ्रो रिफ्लेक्टर टेप, वाइपर, फ्यूल टैंक के साथ ही बस की बॉडी की जांच की जाती है। जिस जनरथ बस का एक्सीडेंट हुआ वह दो साल पुरानी हो चुकी थी। बीते एक अप्रैल को ही इस बस को फिटनेस दी गई थी और 31 मार्च 2021 तक यह फिटनेस वैध थी।

बस्ती जनपद के रुधौली नगरपंचायत का रहने वाला था ड्राइवर

जिस बस का एक्सीडेंट हुआ उसको कृपा शंकर चौधरी चला रहे थे  कृपा शंकर बस्ती जिले के ग्राम गिधार, पोस्ट भितेहरा के रहने वाले थे ,50 वर्षीय मृतक ड्राइवर को 2005 में रोडवेज मे रेग्यूलर ड्राइवर के रूप में नौकरी मिली थी।इनकी पत्नी सुशीला देवी लक्ष्मी देवी इंटर कालेज में प्रधानाचार्य हैं परिवार में 20 वर्षीय बेटा संतोष एवं 19 वर्षीय एक बेटी पूजा है।

मृतक आश्रितों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये यात्री राहत कोष से दिया जाएगा। बस में सफर करने वाले पैसेंजर्स को वयस्क टिकट धारी को पांच लाख और आधा टिकट धारक बच्चा यात्री को ढाई लाख रुपये यात्री राहत योजना से दिया जाएगा। वहीं गंभीर रूप से घायलों को ढाई लाख रुपए दिए जाएंगे।

राजेश वर्मा
मुख्य प्रधान प्रबंधक संचालन

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