रविवार, 30 जून 2019

दलित लड़के के साथ भागी लड़की तो परिजनों ने लड़की को बुरी तरहं से पीटा

मध्यप्रदेश के धार जिले के बाग थाने के गांव में एक लड़की की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ है. पुलिस के मुताबिक लड़की की पिटाई उसके ही परिवार के लोगों ने की है . बताया जा रहा है कि पीड़ित लड़की आदिवासी है जो गांव के एक दलित युवक से साथ भाग गई थी. उसके परिजनों को ये नागवार गुजरा. उन्होंने उससे कहा कि उसकी शादी भीलाला समाज के युवक के साथ तय की जाएगी लेकिन उसने इंकार  कर दिया इस लिए उसके ही परिजनों ने उसे जमकर मारा पीटा.मामले में पिटाई के वीडियो के वायरल होने के बाद पुलिस घटनास्थल पर खड़े पिकअप वाहन के नम्बर से आरोपियों तक पहुंची. इस संबंध में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है।

बाग पुलिस थाने के इंस्पेक्टर कमलेश सिंघार ने कहा, 'उन्होंने पीड़ित को गाड़ी में बिठाकर रखा था. उसको गाड़ी से हाथ पकड़कर खींचा. लड़की के भाई महेश, सरदार, डोंगरसिंह, इला, दिलीप और गणपत समेत कुल सात लोग थे.उन लोगों ने कहा कि तू हरिजन समाज के लड़के साथ भाग गई थी इसी बात को लेकर इन लोगों ने एक मत होकर उसे बुरी तरह पीटा. हमने केसरसिंह गांव के पटेल की रिपोर्ट से 7 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

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शनिवार, 29 जून 2019

मठाधीश मीडिया की देन है विधायक आकाश की बल्लेबाजी और विजयवर्गीय की "बत्तमीजी'

विश्वपति वर्मा 
संपादक-तहकीकात समाचार

मीडिया की औकात लोग देख रहे हैं. हमारे लिए तो यह चिंताजनक है लेकिन गोदी और भोगी मीडिया पर नजरें दौड़ाएं तो इसमें गलत क्या है खुद मीडिया समूहों ने अपने जमीर को बेंच कर अपनी औकात को फीका किया है।

टीआरपीकरण और सनसनीखेज बनने के कारण ख़बरों में नमक-मिर्च लगाकर पेश करना मीडिया समूहों और भोगी पत्रकारों की आदत हो गई है. उसे चटखारेदार बनाने के प्रयासों में हम नैतिकता से भटक जाते हैं. टीवी में ब्रेकिंग न्यूज़ की होड़ में यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि सच्चाई क्या है?

 आज प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सामाजिक मीडिया से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि ये वही मठाधीश मीडिया है जो अपनी टीआरपी के चक्कर मे मुद्दे को ताक पर रखने में जरा सा भी गुरेज नहीं करती है।वंही सामाजिक मीडिया के मोबाइल पत्रकार मुद्दे की वीडियो और तस्वीर जारी कर प्रोफेशनल पत्रकारों के अस्तित्व पर सवाल तो खड़ा कर ही देते हैं।

आज समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के बड़े बड़े पत्रकारों की प्रभावशीलता सरकार के सामने घट गई है क्योंकि सरकार में बैठे लोगों को पता है कि इस वर्ग का  धरातल पर व्याप्त समस्याओं और मुद्दों को उठाने की चिंता नही है ,उन्हें तो बस यह दिखाना है जो सीएमओ और पीएमओ का आदेश होता है ।

आप जरा सोचिये की विधायक आकाश विजयवर्गीय की बल्लेबाजी वाला वीडियो मोबाइल पत्रकारों के पास न होता तो क्या चैनलों पर खबरें चल पातीं ..शायद नही क्योंकि इसके अलावां यदि किसी बड़े चैनल के अखबार के कैमरे में यह वीडियो होता तो उस खबर को न चलाने का आदेश मीडिया समूह में पंहुच जाता और न्याय के लिए नगर निगम का अफसर दौड़ दौड़ कर मर जाता।

इस लिए जरूरी है कि पत्रकार मीडिया समूहों के इशारे पर काम न करें बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा और चिकित्सा की बदहाली जैसे मुद्दे पर बेबाकी से आवाज बुलंद करें नही तो विजयवर्गीय जैसे न जाने कितने चिरकुट लोग पत्रकारों की औकात पर सवाल उठाते रहेंगे।


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शुक्रवार, 28 जून 2019

रुधौली पुलिस पर मुकदमा दर्ज करने में मनमानी का आरोप, पीड़ित को थाने से खदेड़ा

रुधौली थाना क्षेत्र के मधवापुर निवासी मनोज कुमार ने पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र सौंप कर स्थानीय पुलिस पर मुकदमा दर्ज करने में मनमानी करने का अरोप लगाया है। पीड़ित का कहना है कि रुधौली पुलिस ने न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए विपक्षियों के साठ-गांठ पर हमारे हमारे तीन भाइयों समेत 4 लोगों पर 6 गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर 2 को जिला जेल भेज दिया गया और दो और लोगों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने फर्जी तरीके से मुकदमा पंजीकृत कर दिया।वंही हमारे तरफ से दिये गए तहरीर में पुलिस ने अभी तक कोई कार्यवाई नही की।
                   प्रतीकात्मक तस्वीर
दरअसल यह मामला जमीन से जुड़ा हुआ है जिसपर पीड़ित के पिता कांशीराम अपने पड़ोसी रामसूरत पर अवैध तरीके से जमीन कब्जा करने के मामले को लेकर न्यायालय की शरण मे चले गए जंहा पर वर्ष 2017 में न्यायालय द्वारा पीड़ित के पक्ष में डिगरी हुआ और विपक्षी को भी आदेश दिया गया कि उक्त जमीन का बिना पैमाइश कराए वह किसी प्रकार का निर्माण नही करेंगे, लेकिन आदेशों को दरकिनार कर विपक्षी द्वारा कई बार जमीन पर निर्माण करने की कोशिश की गई। न्यायालय के आदेश के बाद भी उक्त जमीन पर बिना पैमाइश कराए बिना विपक्षी द्वारा 18 जून को निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया निर्माण कार्य को स्थगित करने को लेकर पीड़ित ने पुलिस को सूचना दिया तो पुलिस ने यह कह कर मना कर दिया कि यह मामला राजस्व का है इसमें हम कुछ नही कर सकते जबकि पीड़ित द्वारा न्यायालय के आदेश का हवाला देकर उक्त जमीन पर निर्माण कार्य को रोकने की बात कही गई लेकिन पुलिस ने सब कुछ दरकिनार कर दिया .पुलिस का सहयोग न मिलने पर ये लोग निर्माण कार्य रोकने के लिए खुद पंहुचे जंहा दोनों पक्षों में मारपीट हो गया और मामला फिर थाने तक पंहुच गया .जंहा कांशीराम द्वारा थाने पर मारपीट की तहरीर दी गई उसके बाद रामसूरत के तरफ से तहरीर पाकर पुलिस मौके पर पंहुच गई और कांशीराम के दो लड़के को पुलिस थाने उठा ले गई।

अब शुरू हुआ पैंसे का खेल

काशीराम ने बताया कि पुलिस ने दो लड़के वीरेंद्र कुमार और सुरेंद्र  कुमार को लॉकअप में डाल दिया उसके बाद यह कहकर 40 हजार रुपये की मांग किया जाने लगा कि तुम लोगों के साथ तुम्हारे 2 और भाइयों मनोज कुमार और बिनोद कुमार पर मारपीट करने का एफआईआर दर्ज हुआ है यदि पैंसा देते हो तो  मामूली विवाद दिखा कर मामले को सुलह करा दिया जाएगा .पैंसे देने में असमर्थता जाहिर करने के बाद रुधौली पुलिस ने दोनों के ऊपर 6 गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया।

पुलिस का एकपक्षीय कार्यवाई

कांशीराम ने बताया कि पुलिस द्वारा ही मेडिकल जांच कराई गई कि दोनों पक्षों के 1-1 लोगों को चोट आई है उसके बाद पुलिस द्वारा केवल हमारे चार लड़कों के ऊपर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया गया वंही हमारे तरफ से पुलिस को दिए गए तहरीर में किसी प्रकार की कोई कार्यवाई अभी तक नही की गई बल्कि पुलिस ने थाने से यह कहकर फिर से खदेड़ दिया कि इसमें तुम्हारी कोई मदद नही हो सकती है।

निर्माण कार्य शुरू

इधर पुलिस ने एक पक्ष के चार लोगों पर मुकदमा दर्ज करके दो को जेल भेज दिया वंही दूसरे पक्ष के लोगों को वरीयता देने का आरोप कांशीराम द्वारा लगाया गया ,उन्होंने बताया कि जब घर के लोग परेशान थे तो उक्त जमीन पर निर्माण कार्य फिर से शुरू कर दिया गया जिसकी सूचना पुलिस को फिर से दी गई तब फिर पुलिस ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के बिना हम निर्माण कार्य पर रोक नही लगा सकते।

SDM के आदेश के बाद रुधौली पुलिस ने कहा गाली देकर न खदेड़ना पड़े उसके पहले थाने से बाहर चले जाओ।

कांशीराम ने तहकीकात समाचार प्रतिनिधि को बताया कि जमीन पर निर्माण कार्य स्थगित करवाने के लिए हम उपजिलाधिकारी रुधौली का आदेश लेकर फिर से थाने पंहुचे और जब SHO को उस आदेश की कांपी को दिखाया तो उनके द्वारा हमे लज्जित किया गया और यह कहा गया कि गाली देकर न खदेड़ना पड़े उसके पहले तत्काल थाने से बाहर चले जाओ।

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गुरुवार, 27 जून 2019

एक बच्ची को मौत के करीब देखकर सहन नहीं कर पाए केविन कार्टर,सैकड़ों मौत पर भारतीय मीडिया समूहों का चल रहा है सियासी भोज

विश्वपति वर्मा–

यह फोटो मार्च 1993 में मशहूर फोटोग्राफर केविन कार्टर ने भुखमरी और कुपोषण से झूझते देश इथोपिया के एक गांव आयोद में खींचा था .यह एक इथोपियाई कुपोषित बच्ची का फोटो है जो कि अपने माता पिता की झोंपड़ी की और रेंग कर जाने का प्रयत्न कर रही है.माता पिता खाना ढूँढने के लिए बाहर गए हुए हैं  वंही भूख ने उस बच्ची को बेदम कर रखा है उसकी ताक में एक गिद्ध बैठा है जो कि उसके मरने का इंतज़ार कर रहा है केविन कार्टर ने काफी देर इस दृश्य को देखा और अपने कैमरे में इस तस्वीर को क़ैद कर लिया उसके बाद उस गिद्ध को वहां से उड़ा दिया । उसके बाद कुछ दिन और वँहा रहकर केविन वापस दक्षिण अफ्रीका चले आये।


वापस आकर केविन कार्टर द्वारा ली गई फोटो पहली बार 26 मार्च 1993 को New York Times(न्यूयॉर्क टाइम्स) में प्रकाशित हुआ था ।यह तस्वीर छपने के बाद  उस वक्त पूरी दुनिया मे इथोपिया की समस्या उजागर हुआ जिसके बाद UN ने उस देश को आर्थिक सहयोग भी दिया वंही कार्टर को इस फोटो के लिए प्रतिष्टित पुलित्जर पुरस्कार मिला।

लेकिन फोटो के प्रकाशित होते ही हज़ारों लाखों लोगों ने केविन कार्टर से इस इथोपियाई बच्ची के बारे में हज़ारों सवाल किये…कईयों ने उस पर यह आरोप भी लगाए कि उसने उस समय फोटो खींचना ज्यादा उचित समझ जब उस रेंगती हुई बच्ची की जान बचाने की जरूरत थी लोग यह नहीं जानते थे कि उस समय इथोपिया में संक्रमित बीमारियाँ फैली थी…और पत्रकारों और फोटोग्राफरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को घायल और दम तोड़ते इथोपियाई लोगों से दूर रहने का आदेश U .N . द्वारा दिया गया था…यही कारण था कि केविन कार्टर उस बच्ची को उठा नही पाए थे बल्कि केविन ने गिद्ध को उड़ा दिया था।


केविन कार्टर उस प्रतिष्टित पुलित्जर पुरस्कार का आनंद बिलकुल नहीं ले पाए…उनको हमेशा उस इथोपियाई बच्ची की याद आती रही…लोगों के सवाल और उलाहने उनको परेशान करते रहे….उनको यह ग्लानी और अपराध बोध सताता रहा कि उन्होंने उस बच्ची को बचाने की पूरी कोशिश नहीं की….और न ही यह देख पाए कि वो जिंदा रही या मर गयी….इसी अपराध बोध और ग्लानी में वो एकाकी हो गए….और इस फोटो के प्रकाशित होने के तीन महीने बाद  उस महान फोटोग्राफर  ने अपने आखिरी ख़त में लिखा था कि वो काफी परेशान हैं. उन्हें लाशें, भुखमरी, घायल बच्चे, दर्द की तस्वीरें रह-रह कर परेशान करतीं हैं. 

इन आखिरी शब्दों को कागज़ पर बयान करके कार्टर इस दुनिया से चले गए।

लेकिन अब 21 वीं सदी के उन महान पत्रकारों और फोटोग्राफी करने वाले पत्रकारों पर सवाल उठता है जो गोरखपुर और बिहार में बच्चों की मौत पर टीआरपी बटोरने में मस्त दिखाई दिए ,क्या उन्हें अपने जमीर से नही पूछना था कि वह उन कुपोषण के कारण बुखार को सहन न कर पाने वाले बच्चों के न्याय के लिए सरकार से कौन सी लड़ाई लड़ी। शायद वें इस बात को भूल गए कि केविन कार्टर जैसे पत्रकार एक बच्चे को मरते हुए देखने भर से ही अपने जीवन को जीने की लालसा खत्म कर दिये वंही सैकड़ों बच्चों की मौत पर शासन-प्रशासन और मीडिया समूहों का 7* होटल में सियासी भोज चल रहा है।

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मंगलवार, 25 जून 2019

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोले पीएम मोदी "जिसका कोई नही होता उसका सरकार होता है"

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति जी ने नए भारत की बात की. पीएम मोदी ने सभी सांसदों को चर्चा को सार्थक बनाने के लिए भी आभार जताया. पीएम मोदी ने कहा कि हम हर बाधा को पार कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि कई दशकों के बाद देश ने एक मजबूत जनादेश दिया है. एक सरकार को दोबारा फिर से लाए हैं. पहले से अधिक शक्ति लेकर लाए हैं. आज के सामान्य वातावरण में भारत जैसे वायब्रेंट डेमोक्रेसी में हर भारतीय के लिए गौरव का विषय है कि हमारा मतदाता कितना जागरूक है. वह अपने से ज्यादा अपने देश को कितना प्यार करता है. इस चुनाव में साफ-साफ नजर आया है. इसलिए देश के मतदाता अनेक-अनेक अभिनंदन के आभारी हैं, अभिनंदन के पात्र हैं. पीएम मोदी ने इस दौरान कहा कि जिसका कोई नहीं होता उसका सरकार होता है.

पीएम मोदी ने कहा कि 2019 का जनादेश पूरी तरह कसौटी पर कसने के बाद, हर तराजू पर तोले जाने के बाद, पल-पल को जनता ने जांचा है और तब जाकर दोबारा मौका दिया है. उन्होंने कहा कि हर किसी के लिए इस विजय को सरकार के पांच साल के कठोर परिश्रम, पूर्ण समर्पण और सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय जैसी नीतियों को लागू करने का सफल प्रयास को लोगों ने फिर से एक बार देश की सेवा करने के लिए दोबारा बिठाया है. जीवन में इससे बड़ा कोई संतोष नहीं होता है, जब जनता आपके काम को अनुमोदित करती है. ये सब चुनाव की जीत और हार का खेल नहीं है, ये जीवन की उस आस्था का खेल है, जहां कमिटमेंट क्या होता है, डेडिकेशन क्या होता है. पीएम मोदी ने कहा कि 2014 में जब देश की जनता ने अवसर दिया. पहली बार मुझे वक्तत्वय देने का मौका मिला था और सहज भाव से मैंने कहा था कि मेरी सरकार गरीबों को समर्पित है.

पीएम मोदी ने कहा कि चर्चा की शुरुआत में पहली बार सदन में आए डॉ. प्रताप सारंगी जी और आदिवासी समाज से आईं हमारी बहन हिना गावित जी ने जिस प्रकार से विषय को प्रस्तुत किया और जिस बारीकी से बातों को रखा, तो मैं समझता हूं कि मैं कुछ भी न बोलूं तो भी चलेगा. उन्होंने कहा कि ये कोई जीत या हार का प्रश्न नहीं है. ये जीवन की उस आस्था का विषय है, जहां कमिटमेंट क्या होता, डेडिकेशन क्या है, जनता के लिए जीना-जूझना-खपना क्या होता है. और जब पांच साल की अविरत तपस्या का संतोष मिलता है तो वो एक अध्यात्म की अनुभूति करता है.

पीएम मोदी ने कहा कि मैं संतोष के साथ कह सकता हूं कि 70 साल से चली आ रही बीमारियों को दूर करने के लिए हमने सही दिशा पकड़ी और काफी कठिनाइयों के बाद भी उसी दिशा में चलते रहे. हम उस मकसद पर चलते रहे और ये देश दूध का दूध पानी का पानी कर सकता है ये सबने देखा. पीएम मोदी ने विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि यहां कहा गया कि हमारी ऊंचाई को कोई कम नहीं कर सकता, ऐसी गलती हम नहीं करते. हम दूसरे की लकीर छोटी करने में विश्वास नहीं करते, हम अपनी लकीर लंबी करने के लिए जिंदगी खपा देते हैं. 

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भ्रष्टाचार, दलित ,पिछड़ों की बात करने पर एक चमकदार नेता बन गया "खलनायक"

आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म दिवस है ,आइये इनके बारे में जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण तथ्य को।

 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भारत के वित्त मंत्री बनने के बाद 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधान मंत्री बने .वीपी सिंह ने राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे कठिन लड़ाई लड़ी, रक्षा सौदों में दलाली के खिलाफ सत्ता से विद्रोह किया, जाति व्यवस्था को सबसे बड़ी चुनौती दी और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ आमरण अनशन किया इसी आमरण अनशन में इनकी किडनी भी खराब हो जो इनके मौत का कारण बना।

आज वी.पी. सिंह न घर के रहे न घाट के उनकी जयंती पर कोई न तो कोई सरकार उन्हें याद करती है और न ही कोई नेता सोशल मीडिया पर बेशक कुछ लोग उनके नाम पर फूलमालाएं चढ़ाते हैं, लेकिन यह भी कोई आम चलन नहीं है.आइये विस्तार से उनके बारे में जानते हैं दिलीप सी मंडल के जरिये।

वी.पी. सिंह का राजनीतिक-सामाजिक जीवन मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है.

पहला दौर एक जमींदार परिवार से निकल कर कांग्रेस की राजनीति में होना और मुख्यमंत्री तथा देश का वित्त मंत्री तथा रक्षा मंत्री बनना है. इसमें से उनका मुख्यमंत्री काल बागियों के खिलाफ अभियान के लिए जाना जाता है, जबकि वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने कॉरपोरेट करप्शन और रक्षा सौदों में दलाली के खिलाफ अभियान चलाया. इसी दौर में वे कांग्रेस से दूर हो गए.
उनके जीवन का दूसरा दौर प्रधानमंत्री के तौर पर रहा, जिस दौरान उनका सबसे प्रमुख और साथ ही सबसे विवादास्पद कदम मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा करना था. प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने बाबा साहेब को भारत रत्न देने से लेकर उनकी जयंती पर छुट्टी देने और ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए स्वर्ण मंदिर जाकर माफी मांगने जैसे कदम उठाए. इस दौरान वे रिलायंस कंपनी के साथ सीधे टकराव में आए और धीरूभाई अंबानी को लार्सन एंड टुब्रो पर नियंत्रण जमाने से रोक दिया. राममंदिर आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने बीजेपी के सामने झुकने से मना कर दिया और इसी वजह से उनकी सरकार गिर गई.

अपनी जीवन के तीसरे अध्याय में वी.पी. सिंह संत की भूमिका में आ गए. वे कविताएं लिखने लगे और पेटिंग्स में हाथ आजमाया. लेकिन इस दौरान भी वे सामाजिक मुद्दों से जुड़े रहे. दिल्ली में झुग्गियों को उजाड़ने की कोशिशों का उन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध किया और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ खड़े रहे.
सवाल उठता है कि वी.पी.सिंह इतिहास के महानायक क्यों नहीं बन पाए? उनसे कहां चूक होगई? बल्कि इस सवाल को यूं भी पूछा जा सकता है कि उन्हें महानायक बनाने से भारतीय इतिहास और समाज कहां और कैसे चूक गया?

विश्वनाथ प्रताप सिंह के समर्थकों और विरोधियों दोनों को उनके बारे में एक बात समझ लेने की जरूरत है, कि सक्रिय राजनीति से अलग होने तक वी.पी. सिंह सबसे पहले नेता थे और हर नेता की तरह उनका लक्ष्य भी सत्ता में और सत्ता के शिखर पर होना था. इसलिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक और प्रधानमंत्री बने रहने के दौरान उनके कार्यों को अराजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जा सकता. सत्ता में बने रहने के लिए जो कुछ करना पड़ता है, चुनाव जीतने के लिए जो भी समीकरण बनाने पड़ते हैं, जो भी इंतजाम करना होता है, उनसे वी.पी. सिंह अलग रहे होंगे, ऐसा मानने का कोई आधार नहीं है.

सांप्रदायिकता को लेकर उनके निजी विचारों में शुचिता का तब कोई मतलब नहीं रह जाता, जब केंद्र में अपनी सरकार वे बीजेपी के समर्थन से चलाते हैं. केंद्र में बीजेपी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होती है, क्योंकि सरकार चलाने के लिए वामपंथी दलों का भी समर्थन जरूरी था, लेकिन राजस्थान में बीजेपी और जनता दल मिलकर सरकार चलाते हैं.

वी. पी. सिंह का नायकत्व यहां है

दरअसल इतिहास और परिस्थितियों ने वी.पी. सिंह से कुछ ऐतिहासिक कार्य करा लिए या वी.पी. सिंह ने कुछ ऐतिहासिक कार्यों को अंजाम दिया, जिसके लिए कोई उन्हें नायक तो कोई उन्हें खलनायक के तौर पर देखता है. मुश्किल यह है कि जो लोग उन्हें नायक के तौर पर देखते हैं, वे लोग छवि निर्माण करने में समक्ष लोग नहीं है. इसलिए उनकी नायक वाली छवि दबी रह जाती है और खलनायक वाली छवि उभर कर सामने आ जाती है क्योंकि छवि निर्माण के काम में सामाजिक तौर पर वही लोग आगे हैं, जो वी.पी. सिंह से नाराज हैं.

वी.पी. सिंह का नायकत्व इस बात में है कि उन्होंने रक्षा सौदों में हमेशा से चली आ रही दलाली और भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया. लेकिन वे इस मुद्दे को किसी तार्किक अंत तक नहीं ले जा पाए. अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने रक्षा सौदों में करप्शन के मामलों की त्वरित जांच के लिए कोई ठोस काम नहीं किया. इसलिए उन पर यह आरोप है कि भ्रष्टाचार का आरोप उन्होंने राजनीतिक फायदे के लिए उछाला था.

वी.पी. सिंह का नायकत्व इस बात में है कि जब बीजेपी ने राममंदिर के नाम पर देश में सांप्रदायिकता भड़काने की मुहिम तेज की तो वे बीजेपी के आगे झुकने की जगह अड़कर खड़े हो गए. इस कारण बीजेपी ने उनकी अल्पमत सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई.

वी.पी. सिंह का नायकत्व इस बात में है कि उन्होंने भारत की तीन हजार से ज्यादा पिछड़ी जातियों को एक वर्ग में समेट दिया. इन जातियों को आरक्षण के साझा हित में बांध दिया. इसी दौरान बीएसपी के नेता कांशीराम मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करवाने के लिए जनांदोलन चला रहे थे. लेकिन राजनीति में उनकी आवाज ने दम पकड़ना शुरू ही किया था. वी.पी. सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करके संविधान के अनुच्छेद 340 को जमीन पर उतार दिया, जो 26, जनवरी 1950 से संविधान की किताब में तो था, और देश की आधी से ज्यादा आबादी के मन में महत्वाकांक्षाएं जगा रहा था, लेकिन जमीन पर लागू नहीं था. इस अनुच्छेद में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किया गया है. मंडल कमीशन का गठन इसी अनुच्छेद के तहत हुआ है.

....और वी. पी. सिंह ‘खलनायक’ बन गए

इस प्रश्न का जवाब इतिहास ही दे सकता है कि कोई और नेता प्रधानमंत्री होता तो क्या उन्हीं स्थितियों में वह मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करता? मेरा मानना है नहीं. यह काम विश्वनाथ प्रताप सिंह ही कर पाए. फिर भी चूंकि इतिहास की जुबां नहीं होती, इसलिए ऐसे सवालों का ऐसा जवाब हम कभी नहीं जान पाएंगे, जो हर किसी को संतुष्ट कर सके. जिस सत्य तक हमारी पहुंच है, वह यही है कि मंडल कमीशन लागू करने का काम वी.पी. सिंह के हाथों हुआ.

मंडल कमीशन लागू होते ही वह बुद्धिजीवी वर्ग जो कांग्रेस विरोध और भ्रष्टाचार विरोध के कारण वी.पी. सिंह का दीवाना था, उसने पलटी मार दी. वी.पी. सिंह अचानक से मीडिया के दुश्मन बन गए. उनके खिलाफ सैकड़ों लेख और समाचार छापे गए और कार्टून बनाए गए.

चूंकि मंडल कमीशन ने समाज को आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधी दो खेमों में बांट दिया था इसलिए पत्रकार, लेखक और बुद्धिजीवी भी दो खेमों में बंट गए. आरक्षण समर्थक बुद्धिजीवियों का कहने को एक खेमा तो था, लेकिन खेमा या तो खाली था, या फिर उसमें दो-चार लोग थे. लेकिन आरक्षण विरोधी बुद्धिजीवियों का खेमा भरा-पूरा था. छवि निर्माण की जंग वी.पी. सिंह बुरी तरह हार गए.

आरक्षण लागू कर भी पिछड़ों के नेता नहीं बन सके वी.पी.

वी.पी. सिंह के साथ एक और समस्या थी. वी.पी. सिंह का उभार ऐसे समय में हो रहा था, जब उत्तर भारत की राजनीति में मझोली जातियां और एक हद तक दलित जातियां अपना हिस्सा तलाशने लगी थीं. वे इस स्थिति से संतुष्ट नहीं थीं कि कोई और उनके हित की बात कर दे. लोहियावाद की राजनीति के कारण पिछड़ी जातियों के कई नेता राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उभर चुके थे.

मध्यवर्ती जातियां, जो ओबीसी में भी शामिल थीं, अपने नेताओं की कीमत पर विश्वनाथ प्रताप सिंह को नेता मानने के लिए तैयार नहीं थी. इस कारण वी.पी. सिंह मंडल कमीशन लागू करने के बावजूद कभी भी पिछड़ी जातियों के नेता नहीं बन पाए. उनके प्रति पिछड़ों की अच्छी भावनाएं थीं, लेकिन अपनी जाति का नेता उन्हें हर हाल में चाहिए था. अगर वी.पी. सिंह ने पिछड़ों का समर्थन पाने के लिए मंडल कमीशन लागू किया, तो यह काम हो नहीं पाया.

इस तरह, हुआ यह कि वी.पी. सिंह अपना सवर्ण मध्यवर्गीय आधार तो गंवा बैठे, लेकिन जिन पिछड़ी जातियों के साथ आने की उम्मीद में उन्होंने यह सब किया, वे अपनी अपनी जातियों के नेताओं के पीछे लाइन में लग गईं. वी.पी. सिंह राजनीतिक तौर पर बेहद अकेले रह गए.

लेकिन, इस वजह से वी.पी. सिंह का महत्व कम नहीं हो जाता. जाने-अनजाने में वी.पी. सिंह ने भारत की राजनीति का चेहरा बदल दिया. मंडल कमीशन के जवाब मे बीजेपी ने राम रथयात्रा निकाल दी. इसके बाद भारतीय राजनीति पहले जैसी नहीं रही.

पिछड़ी जातियों का भारतीय राजनीति में उभार मंडल कमीशन के बाद ज्यादा संगठित तौर पर नजर आने लगा. इसकी वजह से समाज भी बदला. मंडल कमीशन की दूसरी सिफारिश – उच्च शिक्षा में आरक्षण- 2006 में एक और ठाकुर नेता अर्जुन सिंह ने लागू किया. इससे भारतीय कैंपस का चेहरा पहले की तुलना में लोकतांत्रिक बन गया. हर समाज और जाति के लोगों के लिए कैंपस के दरवाजे खुल गए. हालांकि इतिहास अर्जुन सिंह के साथ भी उतना ही निर्मम साबित हुआ. लेकिन वह एक और कहानी है.

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बस्ती/ चारा-पानी की व्यवस्था न होने पर गौशाला में दम तोड़ रहे हैं पशु

रुधौली/बस्ती

खुद सीएम योगी आदित्यनाथ भले ही पशुओं के संरक्षण के लिए गांव -गांव कान्हा गौशाला का निर्माण करा रहे हैं लेकिन धरातल की सच्चाई यह है कि पशुओं के संरक्षण के नाम पर गौशाला के अंदर उनको मौत मिल रही है ,ताजा मामला बस्ती जनपद के रुधौली ब्लॉक के बाघाडीहा ग्राम पंचायत में बने
गौशाला की है जंहा चारा- पानी की सुचारू रूप से व्यवस्था न होने के कारण बेड़े में कैद पशु दम तोड़ रहे हैं।

 ग्राम पंचायत बाघाडीहा के राजस्व गाँव नकथरी में अस्थाई गौवंश आश्रय का निर्माण कराया गया है जंहा पर मौके की पड़ताल करने के बाद पता चला कि गौ-शाला में जरूरी सुबिधाओं के भी लाले पड़ गए हैं जिसकी वजह से आज सुबह एक बछड़े की मौत हो गई

इस मामले में पशु चिकित्सक देवेंद्र कुमार ने बताया कि बछड़े के पेट में कुछ जख्म थे जिसका इलाज चल रहा था लेकिन गौशाला में चारा पानी के अभाव के कारण उसकी मौत हुई है।

नकथरी में स्थित गौशाला में लगभग 31 पशु है लेकिन चारे के अभाव के चलते  चार पशु बीमार पड़ गए हैं जिसमे से एक की मौत भी हो गई है अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चारे और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कराए बगैर ही शासन द्वारा इस तरहं से गौशाला चलाने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को दे दी गई है।

अब इसमें सबसे बड़ा दोषी कौन है यह सवाल लोगों के जेहन में खटक रहा है ,प्रधान कह रहे हैं कि धन नही है ,प्रशासन कह रहा है कि हम मुस्तैदी से लगे हैं, शासन यानी खुद योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि खामियां मिली तो छोड़ेंगे नही।जब कि सब कमियां ही कमियां है।



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गुमशुदा की तलाश है ,कृपया मिलने पर सूचित करें


राजमणि यादव ग्राम खानकोट सेमरी, थाना इटवा जिला सिद्धार्थनगर के निवासी हैं ये 18 जून 2019 को उत्तराखंड के ऋषिकेश से गायब हो गए हैं  जिनका अभी तक कोई सुराग नही पग पाया है।इस वजह से घर परिवार के लोग काफी परेशान हैं यदि इनके मिलने की जानकारी कंही मिलती है तो कृपया सूचित करें।

9918306954 -रामनरेश

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सोमवार, 24 जून 2019

बसपा -सपा गठबंधन का हुआ अंत, मायावती ने किया ऐलान

उत्तर प्रदेश में सत्रहवीं लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने के लिए बनाए गए सपा-बसपा गठबंधन का अंततः अंत हो गया ।बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को इसका ऐलान करते हुए कहा कि बसपा अब आगे के सभी छोटे-बड़े चुनाव अपने बूते पर लडेगी. बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट करते हुए कहा, 'लोकसभा आम चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है. इसलिए पार्टी और मूवमेंट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी.

बता दें कि इसके पहले बसपा सुप्रीमो ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर आरोप लगाया था कि उन्होंने कहा था कि बसपा मुस्लिमों को टिकट न दे।


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लखनऊ की गलियों में इस रूप में दिखाई दिए सदी के महानायक अमिताभ बच्चन

 सदी के महानायक अमिताभ बच्चन लखनऊ में दिखाई दिए जंहा पर वें बच्चों से उलझते नजर आएं फिलहाल ये रियल सीन रील में कैद किया जा रहा था ।शूटिंग में देखने को मिला कि दो बच्चे एक बुजुर्ग व्यक्ति को परेशान कर रहे हैं वंही बुजुर्ग भी बच्चों को डांटते हुए दिखाई दे रहा है यह बुजुर्ग कोई और नही बल्कि खुद अमिताभ बच्चन हैं जो राजधानी में फ़िल्म गुलाबो-सिताबो की शूटिंग में व्यस्त हैं।

शूजीत सरकार निर्देशित फिल्म गुलाबो-सिताबो में महमूदाबाद हाउस के इंडोर शूटिंग में अमिताभ बच्चन, फर्रुख जाफर, नलनीश नील समेत कई लोकल आर्टिस्टों के साथ शूटिंग हुई, जिसमें अमिताभ बच्चन चाय पीते दिखे। वहीं, बकरी और बकरे को भगाते हुए भी सीन फिल्माए गए। इस फिल्म में करीब दर्जनों लोकल कलाकार काम कर रहे हैं।

10 दिन के बाद अभिनेता आयुष्मान खुराना फिल्म से जुड़ेंगे। उसके बाद अमिताभ और आयुष्मान के सीन फिल्माए जाएंगे। पुराने लखनऊ से लेकर गोमतीनगर में कई सीन फिल्माए जाएंगे। करीब दो महीने की शूटिंग में लखनऊ की खूबसूरती दिखाई जाएगी।

इस फिल्म में अर्चना शुक्ला और श्रीप्रकाश बाजपेयी भी अहम किरदार निभा रहे हैं। श्री प्रकाश अमिताभ बच्चन के दोस्त का किरदार निभा रहे हैं, वही अर्चना आयुष्मान खुराना की मां किरदार निभा रही हैं।

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रविवार, 23 जून 2019

हो जाइये सावधान.. बस्ती के पेट्रोलपंप पर चल रहा मिलावटखोरी का खेल ,चलते चलते बन्द हो रही हैं गाड़ियां

विश्वपति वर्मा_

हाल ही में देवरिया के बैतालपुर में डीजल में केरोसिन मिलाकर बेंचे जाने का मामला सामने आने के बाद बस्ती के पेट्रोल और डीजल टंकियों पर भी मिलावटखोरों का कारोबार फलने' फूलने का मामला सामने आ रहा है।

बस्ती जनपद के चोरखरी  निवासी राघव वर्मा ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर बताया कि 23 तारीख को " हर्रैया तहसील के अंतर्गत हसीनाबाद स्थिति हिंदुस्तान पेट्रोलियम के " हमारा पम्प रुद्र मुकुंद" पेट्रोल पम्प पर उन्होंने अपने गाड़ियों में डालने के लिए 7400 रुपये का डीजल खरीदा ,उन्होंने पत्र में जिलाधिकारी को बताया कि जैसे ही तेल को वह ले जाकर अपनी  8 गाड़ियों 6 ट्रैक्टर ,1 जेसीबी मशीन एवं 1 स्कॉर्पियो गाड़ी में डाला उसके तुरन्त बाद सभी गाड़ियां एक -एक करके बुझ बुझ कर खड़ी हो गईं।राघव ने बताया कि सभी गाड़ियों में तेल एक ही पेट्रोलपम्प से लाकर डाला गया और सभी गाड़ियों के इंजन खराब हो गए इससे यह स्पष्ट है कि डीजल में केरोसिन या अन्य किसी तरहं का मिलावटी का कार्य किया गया है ।पीड़ित ने जिलाधिकारी से न्याय की मांग की है।

बताते चलें कि इस वक्त डीजल में केरोसीन मिलाए जाने का मामला कई जगहों से सामने आ चुका है ,बस्ती में सरकारी कोटे की दुकान पर अब केरोसीन की मांग उस तरहं से नही है जैसे पहले होता था  पहले लोग लालटेन, ढिबरी, स्टोव सहित लकड़ी के ईंधन से खाना बनाते वक्त डीजल की जरूरत महसूस करते थे लेकिन अब अत्याधुनिक सुविधाओं और घरों में गैस सिलेंडर की पंहुच होने की वजह से लगभग 60 फीसदी लोग केरोसीन लाना बन्द कर दिए हैं इससे यह स्पष्ट है कि इन बचे हुए केरोसीन को डीजल के साथ खपाया जा रहा है ।

फिलहाल देखना यह होगा कि जिला प्रशासन बस्ती इस मामले को लेकर कितना गंभीरता दिखाती है ,अब इसका इंतजार रहेगा।


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मायावती ने भाई को बनाया पार्टी उपाध्यक्ष, भतीजे आकाश को नेशनल को ऑर्डिनेटर

लखनऊ. बसपा सुप्रीमो मायावती ने रविवार को जोनल कोऑर्डिनेटरों और सांसदों के साथ बैठक की। इसमें मायावती ने छोटे भाई आनंद कुमार को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। वहीं, भतीजे आकाश को नेशनल कोआर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी गई।
बैठक में दानिश अली को लोकसभा में बसपा नेता के तौर पर चुना गया। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामजी गौतम को भी नेशनल कोआर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी गई। वहीं, इससे पहले बैठक में शामिल होने वाले पदाधिकारियों के मोबाइल, बैग, कलम और यहां तक की कार की चाबियां भी बाहर रखवा दी गईं।

उपचुनाव को लेकर हुई चर्चा
बैठक में मौजूद सूत्रों ने बताया कि बैठक में उत्तरप्रदेश की 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भी चर्चा हुई। हालांकि, बताया जा रहा है कि बसपा ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशी पहले ही फाइनल कर चुकी है। फिर भी फीडबैक के आधार पर कुछ सीटों में बदलाव कर अंतिम लिस्ट तैयार की जाएगी। प्रत्याशियों की लिस्ट का आधिकारिक ऐलान भी जल्द किया जाएगा।

कौन हैं आंनद कुमार?
आनंद कुमार मायावती के छोटे भाई हैं। कभी नोएडा में क्लर्क हुआ करते थे। उन पर फर्जी फर्जी कम्पनी बनाकर करोड़ों रुपए लोन लेने और पैसे को रियल स्टेट में निवेश कर मुनाफा कमाने का आरोप है। आनंद कुमार पहली बार तब चर्चा में आए थे जब नोटबंदी के बाद उनके खाते में 1.43 करोड़ रुपए जमा हुए थे। आयकर विभाग और ईडी आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच कर रहा है।

कौन हैं आकाश आनंद?
आकाश आनंद मायावती के भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। लंदन से एमबीए करने वाले आकाश की बीएसपी की राजनीति में 2017 में एंट्री हुई। मायावती ने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद सहारनपुर की रैली में उन्हें लॉन्च किया था। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भी आकाश मायावती के साथ रैलियों और कार्यक्रमों में नजर आए थे।

लोकसभा में बसपा को 10 सीटों पर मिली जीत
लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा और रालोद से गठबंधन किया था। 80 सीटों वाले उप्र में भाजपा और उसके सहयोगी ने 64 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, बसपा 10 और सपा ने 5 सीटें जीतीं। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा का उप्र में खाता भी नहीं खुला था।

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नकाबपोश बदमाशों ने महिला पत्रकार को मारी गोली

दिल्ली के वसुंधरा एन्क्लेव इलाके में एक महिला पत्रकार मिताली चंदोला पर नकाबपोश बदमाशों ने उनकी कार फायरिंग की है जिसमें वह घायल हो गई हैं. फिलहाल वह खतरे से बाहर हैं. मिली जानकारी के मुताबिक मिताली नोएडा में रहती हैं. बीती रात 12.30 बजे वह अपनी कार हुंडई i20  से जा रही थीं तभी मारुति स्विफ्ट कार में सवार बदमाश पीछे से आए और दो गोली दाग दीं जिसमें एक गोली उनके हाथ में लग गई. पीड़िता ने पुलिस को यह भी बताया कि बदमाशों ने भागने से पहले उनकी कार अंडे भी फेंके हैं.


फिलहाल मिताली को धर्मशिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां उनकी हालत खतरे से बाहर है. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि कहीं ये बदमाश वहीं तो नही हैं जो बाइक सवारों पर पहले अंडे फेंकते हैं और फिर उनको लूट लेते हैं. पुलिस इस घटना के पीछे रंजिश होने की बात को भी अस्वीकार नहीं कर रही है क्योंकि मिताली ने यह भी बताया है कि उनके संबंध परिवार के साथ अच्छे नही हैं. 

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शनिवार, 22 जून 2019

तहकीकात समाचार के विज़न पर काम हुआ तो बदल जायेगा प्रदेश के गांवों का हाल

क्या है तहकीकात समाचार
पोर्टल/पत्रिका

स्लोगन
आवाज जन जन की

उप स्लोगन
नैतिकता, प्रमाणिकता ,निष्पक्षता

तहकीकात समाचार पोर्टल है जिसका उद्देश्य भारत के गांवों की वर्तमान स्थिति को चित्रण करना है ।

तहकीकात समाचार भारत के ग्रामीण एवं अन्य पिछड़े क्षेत्रों में समाज के अंतिम पंक्ति में जीवन यापन कर रहे लोगों को  एक मंच प्रदान करने के लिए निर्माण किया गया है ,जिसके माध्यम से समाज के शोषित ,वंचित ,गरीब,पिछड़े लोगों के साथ किसान ,व्यापारी ,प्रतिनिधि ,प्रतिभावान व्यक्तियों एवं विदेश में रह रहे लोगों को ग्राम पंचायत की  कालम के माध्यम से एक साथ जोड़कर उन्हें एक विश्वसनीय मंच प्रदान किया जायेगा एवं उनकी आवाज को बुलंद  किया जायेगा।

तहकीकात समाचार के एडिटर इन चीफ विश्वपति वर्मा (सौरभ)ने देश के प्रतिष्ठित टीवी चैनल एवं पत्र पत्रिकाओं में लिखने के दौरान  देखा कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी भारत के गांवों की हालत में सुधार नही हो रहा है उनके द्वारा  पिछले 9 वर्षों से लम्बे अनुसन्धान के बाद योजनाबद्ध तरीके से  कार्यक्रम तैयार किया गया है जिसका उद्देश्य है कि भारत की जनता में जागरूकता आये और वें अपने दायित्वों एवं कर्तव्यों के प्रति गंभीर हों।


तहकीकात समाचार के संस्थापक द्वारा जो योजना तैयार की गई है उसे आसान बनाने के लिए देश भर के समूर्ण 716 जनपदों को क्रमबद्ध  किया गया है  जिसमे सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश के समस्त 75जनपद को शामिल किया गया है जिसमे प्रदेश भर के 18 मंडल के 822 ब्लाकों के अंतर्गत आने वाले 59 हजार 163 ग्रामपंचायतों को  अलग- अलग कालम बना कर सूचीबद्ध किया गया है  ।

जिसके  माध्यम से डिजिटल क्रांति में हिस्सा लेने वाले लोगों अभियान का हिस्सा बना कर  योजनाबद्ध कार्यक्रमों को साझा  कर पढ़े -लिखे  साथियों एवं  बौद्धिक विचारधारा वाले लोगों  के साथ काम  की शुरुआत कर योजना को सफल बनाया जायेगा।

जरुरत -

आज देश के ग्रामीण क्षेत्रों  में शिक्षा ,चिकित्सा ,सहित रोजगार का नितांत अभाव बना हुआ है जिसकों  देखते हुए सबसे पहले यह जानना होगा की आखिर आजादी के 70 वर्षों बाद तक ऐसी स्थिति का सामना  क्यों करना पड़ रहा है इसमें जो निष्कर्ष सामने आया है उसमे  मिला है की सरकारों द्वारा पिछले वर्षों से क्षेत्र के समग्र एवं समेकित विकास के लिए ऐसा नहीं है कि काम नहीं किया गया है सरकार  द्वारा बहुत सी महत्वाकांक्षी योजनाए  बनाई गईं लेकिन स्थानीय जिम्मेदार एवं कार्यदायी संस्था और  विभागों द्वारा  सभी योजनाओं में खानपूर्ति का काम किया गया जिसके वजह से योजना उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर पाया। इसको देखते हुए टीम प्रतिनिधिमंडल द्वारा ऐसी योजनाएं तैयार की गई हैं जिसके शुरआत होने पर  ग्रामीण क्षेत्रों  में जारी योजनाओं  की शुरुआत एवं क्रियान्यवयन बेहतर तरीके से होने में गति मिलेगी।

कार्यक्रम -

समग्र एवं समेकित विकास  के उद्देश्य से ग्रामीण  क्षेत्रों में  स्थिति / निर्मित..... विद्यालय ,चिकित्सालय ,मैरेज हाल ,मिनी सचिवालय ,सामुदायिक भवन ,पानी की टंकी ,कुंआ ,नलकूप ,चारागाह ,पुराने वृक्ष ,धार्मिक स्थल  एवं धरोहरों  को अपलोड एवं अपडेट करना  शामिल है तथा  गांव के प्रतिभावान बच्चे -बच्चियों ,देश विदेश में रह रहे वरिष्ठ नागरिकों ,पेंशन धारकों , देश के जवानों की प्रोफ़ाइल उनके ग्रामपंचायत के कालम में अपलोड एवं अपडेट की जाएगी जिससे ग्रामपंचायत के किसी भी सार्वजानिक एवं महत्वपूर्ण स्थानों के साथ गांव के वरिष्ठ व्यक्तियों की बेशिक जानकारी देश -विदेश में रह कर आसानी से प्राप्त की जा सकती है ,इसमें सुरक्षा के दृष्टि सार्वजनिक न होने वाले स्थानों या व्यक्तियों के बारे में गोपनीयता रखी जायेगी।

सामाजिक कार्यक्रम

सामाजिक कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्र के गरीब एवं असहाय बच्चों को शैक्षणिक,सामाजिक ,मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए  जागरूकता कार्यशाला की आयोजन प्रत्येक ग्रामपंचायतों  में की जाएगी साथ ही  डिजिटल जागरूकता अभियान के माध्यम से कम्प्यूटर की बेशिक जानकारी , इंटरनेट कनेक्टिविटी ,वेवसाइट एवं एप के बारे में सही जानकारी लोगों तक साझा की जाएगी , पोर्टल के प्रकार ,पोर्टल का मतलब बताकर लोगों में जागरूकता लाना है  जिससे सरकार  द्वारा पोर्टल के माध्यम से जारी योजनाएं  एवं उद्देश्य  को लोग जान सकें।

लक्ष्य
तहकीकात समाचार द्वारा ग्रामपंचायतों  से जुड़कर  स्थानीय जरुरत के हिसाब से योजना बनाने के साथ  मूलभूत आवश्यकताओं और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए गांव की सही जानकारी को शासन -प्रशासन तक पंहुचाना  है जिसका उद्देश्य है की ग्राम स्वराज की अवधारणा को पूरा करने में ग्रामीणों का सहयोग एवं भागीदारी सरकार तक सुनिश्चित हो।

नोट- तहकीकात समाचार की पूरी लिखित योजना टीम प्रतिनिधिमंडल के पास सुरक्षित है ,समझने के दृष्टि से इसमें कुछ विषयों को शामिल किया गया है ,इसके अतरिक्त अन्य जानकारी के लिए टीम प्रतिनिधिमंडल से संपर्क कर सकते है ।

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लो...सरकारी कर्मचारी के हाथ से जूता पहन कर अमर हो गए यूपी के ये मंत्री जी

एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सफाईकर्मीयों का पैर धोकर समता का व्यवहार दिखाने की कोशिश करते हैं दूसरी तरफ से सांसद विधायक सरकारी कर्मचारियों से जूता पहन कर अपने आप को अमर करने की होड़ में लगे हैं ।

जी हां सही सुन रहे हैं आप ,ताजा मामला उत्तर प्रदेश के मंत्री लक्ष्मी नारायण का है जंहा वें एक सरकारी कर्मचारी से जूते पहनते हुए कैमरे में कैद हो गए. यूपी के शाहजहांपुर में शुक्रवार को योग दिवस पर आयोजित एक समारोह का एक वीडियो न्यूज एजेंसी एएनआई ने जारी किया है. वीडियो में लक्ष्मी नारायण को एक सरकारी कर्मचारी द्वारा जूते पहनाते हुए साफ देखा जा सकता है. जो कर्मचारी मंत्री को जूते पहना रहा है, वह शख्स भी स्पॉर्ट्स ड्रेस पहने हुए है. वहीं मंत्री ने पास में खड़े दो लोगों के हाथ पकड़ रखे हैं और सरकारी कर्मचारी उन्हें जूते पहना रहा है.

वीडियो सामने आने के बाद मंत्री लक्ष्मी नारायण ने कहा, 'अगर कोई भैया, भतीजा या परिवार का सदस्य हमें जूते पहना दे तो ये तो हमारा वो देश है, जहां भगवान राम के खड़ाऊ रख कर भरतजी ने 14 साल राज किया था. आपको तो इस बात की तारीफ करनी चाहिए.'

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शुक्रवार, 21 जून 2019

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर 40 हजार लोगों के साथ पीएम मोदी ने रांची में किया "योगा"


आज भारत समेत दुनियाभर में पांचवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस  मनाया जा रहा है. देश में मुख्य आयोजन झारखंड की राजधानी रांची  में हो रहा है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया.NDTV ने लिखा कि इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा, 'योग अनुशासन है, समर्पण हैं, और इसका पालन पूरे जीवन भर करना होता है. योग आयु, रंग, जाति, संप्रदाय, मत, पंथ, अमीरी-गरीबी, प्रांत, सरहद के भेद से परे है. योग सबका है और सब योग के हैं.'

उन्होंने कहा, 'आज के बदलते हुए समय में इलनेस से बचाव के साथ-साथ वेलनेस पर हमारा फोकस होना जरूरी है. यही शक्ति हमें योग से मिलती है, यही भावना योग की है, पुरातन भारतीय दर्शन की है. योग सिर्फ तभी नहीं होता जब हम आधा घंटा जमीन या मैट पर होते हैं.'

पीएम ने कहा, 'अब मुझे आधुनिक योग की यात्रा शहरों से गांवों की तरफ ले जानी है, गरीब और आदिवासी के घर तक ले जानी है. मुझे योग को गरीब और आदिवासी के जीवन का भी अभिन्न हिस्सा बनाना है. क्योंकि ये गरीब ही है जो बीमारी की वजह से सबसे ज्यादा कष्ट पाता है.'
योग दिवस पर देश के सभी स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए. इस वर्ष कार्यक्रम का मुख्य विषय ‘हृदय के लिए योग' निर्धारित है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस  के मुख्य कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गुरुवार की रात विशेष विमान से रांची पहुंचे थे. झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, मुख्यमंत्री रघुवर दास और वरिष्ठ मंत्री सीपी सिंह ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया था. प्रधानमंत्री ने रांची के राजभवन में रात्रि प्रवास किया था. 

आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी नई दिल्ली से विशेष विमान से रात्रि 10 बजकर 20 मिनट पर रांची पहुंचे थे. रांची में आज सुबह धुर्वा स्थित प्रभात तारा मैदान में पीएम मोदी ने चालीस हजार आम लोगों के साथ योग किया.

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गुरुवार, 20 जून 2019

मौत के मातम में "टीआरपी" बटोर रहीं थीं "आजतक" के कार्यकारी संपादक अंजना ओम कश्यप

विश्वपति वर्मा_

बिहार में चमकी बुखार नामक बीमारी के चपेट में आकर  जिस तरहं से बच्चे मरते चले गए वह सचमुच में डराने वाला था लेकिन उससे भी ज्यादा डराने वाली बात टीवी चैनल के पत्रकारों की नैतिकता की पतन का है ।

पत्रकारों ने पत्रकारिता के नैतिकता और स्थापित मानदंडों की परवाह किये बिना अस्पतालों के ICU में जाकर रिपोर्टिंग किया ,अंजना ओम कश्यप जैसी लेडी रिपोर्टरों ने सरकार और विभाग के आला अधिकारियों से सवाल पूछने की बजाय ICU में इलाज कर रहे डॉक्टर को ही घेर लिया, ऐसे त्रासदी के मौके पर इन पत्रकारों के संवेदनशीलता पर सवाल पैदा होता है जिन्होंने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए सभी नियमों और कानूनों को तोड़ दिया।

एक बड़े चैनल में कार्यकारी संपादक होने के बाद भी शायद यह बात अंजना भूल गईं कि 2014 में डाo हर्षबर्धन ने इसी बिहार के मातम वाले क्षेत्रों में ही चिकित्सा सुबिधाओं के नाम पर कई बड़े योजनाओं की घोषणा की थी लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा उनके द्वारा की गई घोषणाओं पर फूटी कौड़ी भी खर्च नही किया गया।

इसलिए बेहतर होता कि अंजना अस्पताल के डॉक्टरों को निशाना बनाने की बजाय सरकार को घेरतीं, आला अधिकारियों से प्रश्न करतीं ,अस्पताल की अव्यवस्थाओं पर सवाल उठातीं लेकिन नही उन्हें तो उस मातम वाले क्षेत्र की त्रासदी को दिखा कर देश भर में वाहवाही लूटना था कि वह कैसे नियमों की सीमा रेखा को लांघ कर ICU में रिपोर्टिंग कर लेती हैं।

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बिहार में 357 मौतों के जिम्मेदार केंद्र के यह मंत्री हैं ,जिन्होंने साल दर साल झूठी घोषणाएं की है

बिहार के मुज़फ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस)/जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) और चमकी बुखार से 100 से अधिक बच्चों की मौत के बाद देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 17 जून को मुज़फ्फरपुर का दौरा किया और कई घोषणाएं कीं.उन्होंने कहा कि मुज़फ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में 100 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू वॉर्ड और वायरोलाजी लैब बनेगा. इसके अलावा जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में 10-10 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू बनेगा. पीएचसी पर सर्वेक्षण के आधार पर डॉक्टरों की तैनाती होगी, सभी पीएचसी पर ग्लूकोमीटर दिया जाएगा, पर्याप्त एम्बुलेंस व दवा की व्यवस्था की जाएगी.डॉ. हर्षवर्धन जब यह घोषणा कर रहे थे, तब कुछ पत्रकारों ने उनकी 2014 में की गई घोषणाओं की ओर ध्यान दिलाया, जिस पर वह असहज हो गए.

 दरअसल, डॉ. हर्षवर्धन पांच वर्ष पूर्व की गई अपनी ही घोषणाओं को फिर से दोहरा रहे थे जो या तो अब तक अमल में ही नहीं आ सकी हैं या आधी-अधूरी हैं.ठीक पांच साल पहले 2014 में भी मुज़फ्फरपुर में इसी तरह एईएस और चमकी बुखार को प्रकोप हुआ था. नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंटोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के आंकड़ों के अनुसार 2014 में बिहार में एईएस से 355 और जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) से 2 लोगों की मौत हुई थी. तब नई-नई बनी मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने 20-22 जून 2014 को मुजफ्फरपुर, पटना का दौरा किया था और तमाम घोषणाएं की थीं.तब उन्होंने कहा था कि एसकेएमसीएच में 100 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू वॉर्ड बनेगा और मुज़फ्फरपुर व आस-पास के प्रभावित जिलों में पीएचसी में 10 बेड के पीडियाट्रिक आईसीयू बनेंगे. एसकेएमसीएच को सुपर स्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड किया जाएगा.गया, भागलपुर, बेतिया, पावापुरी और नालंदा में वायरोलाजिकल डायगनोस्टिक लैबोरेट्री बनेगी. इसके अलावा मुज़फ्फरपुर और गया में मल्टी डिस्पलनरी रिसर्च यूनिट की स्थापना की जाएगी. इन घोषणाओं की जमीनी हकीकत हैरान करने वाली है.एसकेएमसीएच में वायरोलाजी लैब तो बन गया है लेकिन अभी तक संचालित नहीं हो पाया है. एईएस और चमकी बुखार से सर्वाधिक प्रभावित मुज़फ्फरपुर में वायरोलाजी लैब नहीं बन पाया है, तो भागलपुर, बेतिया, पावापुरी और नालंदा में बनने की बात तो दूर की कौड़ी है.

एसकेएमसीएच में 100 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने का काम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है. पीएचसी में पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने का काम भी अभी तक शुरू नहीं हुआ है. इसी तरह मुज़फ्फरपुर और गया में मल्टी डिस्पलनरी रिसर्च यूनिट की भी अब तक स्थापना नहीं हो सकी है.रही बात एसकेएमसीएच में सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक बनाने की तो यह अभी बन ही रहा है. एसकेएमसीएच को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड करने का निर्णय प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के अंतर्गत सात नवंबर 2013 को हुआ था.पीएमएसएसवाई के अंतर्गत तीसरे फेज में एसकेएमसीएच के साथ-साथ देश के 39 मेडिकल कॉलेज को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड करने का निर्णय लिया गया था. इन मेडिकल कॉलेजों में बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर भी शामिल था.

एसकेएमसीएच को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड करने के लिए 150 करोड़ रुपये खर्च होना है जिसमें 120 करोड़ रुपये केंद्र सरकार और 30 करोड़ रुपये प्रदेश सरकार को देना है.किसी मेडिकल कॉलेज को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में विकसित करने का मतलब होता है कि वहां आठ से दस सुपरस्पेशियलिटी विभाग बनेंगे, पीजी की 15 सीट सृजित होंगी और हॉस्पिटल बेड की संख्या 150 से 250 तक बढ़ जाएंगी.

एसकेएमसीएच में 160 बेड का सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक बनना है जिसमें आठ सुपरस्पेशियलिटी विभाग बनेंगे, जिसमें नियो-नेटोलाजी विभाग भी शामिल है. एसकेएमसीएच में यह ब्लॉक अभी बन ही रहा है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने सोमवार को इसका भी निरीक्षण किया.कहा गया कि नवंबर 2019 तक यह बनकर तैयार हो जाएगा. इसके बाद यहां डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती की जाएगी. यदि यह निर्धारित दो वर्ष में बन गया होता तो आज एक-एक बेड पर दो-दो बीमार बच्चों को रखने की जरूरत नहीं होती.एसकेएमसीएच के साथ ही घोषित हुआ यूपी के गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज का सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक कुछ महीनों पहले ही शुरू हुआ है, लेकिन सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी के कारण उसे मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से ही काम चलाया जा रहा है.उच्च स्तर पर घोषणाओं और उनके अमल की कहानी मुज़फ्फरपुर में गोरखपुर की ही तरह है. गोरखपुर में 2017 में ऑक्सीजन कांड के बाद पीआईसीयू की क्षमता 225 से 400 बेड तक बढ़ाई गई.इंसेफेलाइटिस प्रभावित गोरखपुर सहित नौ जिलों के जिला अस्पतालों में 10-10 बेड के पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने की घोषणा अखिलेश सरकार 2012 में की थी जिसे अमल में लाने में ढाई वर्ष से अधिक का समय लगा.

ऑक्सीजन कांड के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में गोरखपुर कमिश्नरी के चार जिलों गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज और देवरिया में आठ प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 3-3 बेड का आईसीयू बनाने की घोषणा की जो दो वर्ष बाद अब तैयार हो पाएं हैं लेकिन वहां डॉक्टरों विशेषकर बाल रोग चिकित्सकों की कमी अब भी बनी हुई है.गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस की भयावहता को देखते हुए यूपीए-2 सरकार में वर्ष 2012 गोरखपुर में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलाजी की तरह रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी ) यूनिट की स्थापना की घोषणा की गई. इसके पहले बीआरडी मेडिकल कॉलेज में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलाजी (एनआईवी) की फील्ड यूनिट काम कर रही थी.विषाणुओं से संबंधित रोगों पर व्यापक स्तर पर रिसर्च की जरूरत को देखते हुए आरएमआरसी को स्थापित करने का निर्णय लिया गया था लेकिन इसकी स्थापना की प्रक्रिया पांच वर्ष तक कछुआ गति से चलती रही और एक रुपया भी केंद्र सरकार ने नहीं दिया.

जब गोरखपुर में 10 अगस्त 2017 को ऑक्सीजन कांड हुआ और 13 अगस्त को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्ढा गोरखपुर आए तो उन्होंने इसके लिए 80 करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा की. इस घोषणा के 11 महीने बाद सितंबर 2018 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इस सेंटर का शिलान्यास हुआ.देखना है कि यह कब तक बन कर तैयार होता है और संचालित होता है. यदि इस संस्थान को प्राथमिकता के आधार पर जल्द स्थापित कर दिया गया होता तो यहां हुए रिसर्च एईएस/जेई को खत्म करने या उस पर अंकुश लगाने में जरूर काम आते.इसी तरह इंसेफेलाइटिस व अन्य बीमारियों से से विकलांग हुए बच्चों व लोगों के इलाज के लिए गोरखपुर में कम्बाइंड रिहैबिलेटेशन सेंटर (सीआरसी) की स्थापना करने की घोषणा की गई.तात्कालिक तौर पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के परिसर के एक भवन में इसे शुरू किया गया और स्पीच थेरेपिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट आदि की तैनाती की गई. कुछ उपकरण भी आए लेकिन एकाएक इसे समेटने का निर्णय ले लिया गया और दो को छोड़कर सभी स्टाफ जो कि संविदा पर थे, हटा दिए गए.इस निर्णय के खिलाफ जब विरोध के स्वर मुखर हुए तो वर्ष 2018 में इसके लिए जमीन ढूंढी गई और सितंबर 2018 में आरएमआरसी के साथ इसका शिलान्यास हुआ. यह सेंटर फिलहाल छोटे स्तर पर गोरखपुर शहर में सीतापुर आंख अस्पताल के परिसर में संचालित हो रहा है.एईएस/जेई के बारे में जब केंद्र-प्रदेश सरकारें और उनके मंत्री बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते हैं तो इन तथ्यों को जरूर ध्यान रखाना चाहिए और उनसे सवाल पूछा जाना चाहिए कि इस बीमारी से जब इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो रही है तो इस बीमारी की रोकथाम के उपायों पर अमल करने में इतनी सुस्ती क्यों है?

गोरखपुर में एईएस/जेई से बच्चों की मौत के मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 जनवरी 2007 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस की स्थिति को नेशनल इमरजेंसी जैसा बताते हुए उसके अनुरूप केंद्र और प्रदेश सरकार को हर कदम उठाने को कहा था.हाईकोर्ट के इस निर्देश के इन 12 वर्षों में सरकारों की कार्य प्रणाली को देखते हुए क्या यह लगता है कि वे हालात को ठीक-ठीक समझ पा रहे हैं और उसके अनुसार कदम उठा पा रहे हैं चाहे वह मुज़फ्फरपुर हो या गोरखपुर?

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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मंगलवार, 18 जून 2019

मोदी और योगी जनता को गाय-भैंस के नाम पर करते हैं गुमराह ,भारत मांस के निर्यात में विश्व में नंबर 1

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मांस निर्यात को लेकर भले ही नरेंद्र मोदी का कलेजा चीख चीख कर पुकार रहा था, लेकिन अब हालत यह है कि भारत मांस निर्यात के मामले में अग्रणी देशों में बना हुआ है.

 वर्ष 2016-17 में मांस निर्यात 17 हज़ार टन बढ़ने के बाद वर्ष 2018-19 में भी भारत से मांस का निर्यात बढ़ा है .गौरतलब है कि प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी मांस निर्यात के लिए यूपीए सरकार की कड़ी आलोचना कर रहे थे. अपनी एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा था, ”…और इसलिए दिल्ली में बैठी हुई सरकार का सपना है कि हम हिंदुस्तान में पिंक रिवोल्यूशन करेंगे और पूरे विश्व में मांस-मटन का एक्सपोर्ट का बिजनेस करेंगे. 

लेकिन स्वयं भाजपा की सरकार में जनवरी 2019 तक मे भारत विश्व का नंबर 1 मांस निर्यातक देश रहा है उम्मीद है कि यह आगे भी रहेगा । भारत का मांस निर्यात वर्ष 2016-17 में बढ़कर 13.53 लाख टन हो गया था जो पूर्व वित्त वर्ष की समान अवधि में 13.36 लाख टन था. 

हालांकि मूल्य के हिसाब से पिछले वित्त वर्ष में निर्यात घटकर 27,184 करोड़ रुपये का रह गया जो वर्ष 2015-16 में 27,528 करोड़ रुपये का हुआ था. अप्रैल मई 2016-17 के दौरान भैंस मांस का निर्यात 55.4 करोड़ रुपये का हुआ था ।

इसके अलावां मोदी सरकार में वार्षिक रिपोर्ट देख सकते हैं कि किस वर्ष में कितना मांस निर्यात हुआ है।

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मोटी तनख़ाह और भत्ता सांसदों ,विधायकों और नेताओं को चाहिए ,किसानों को "मुंगेरीलाल के सपने"

    विश्वपति वर्मा   _
           
अगर देश मे नौकरशाहों एवं राजनेताओं के भत्ते में वृद्धि हुई है तो किसानों के आजीविका में वृद्धि हो इसके लिए समुचित व्यवस्था क्यों नही बनाई जाती?

 बेशक भारत कृषि प्रधान देश है जंहा 70 फीसदी आबादी कृषि आधारित कार्य करके जीवन यापन करती है तथा देश के डाँक्टरों इंजीनियरों ,नेताओं के साथ कारपोरेट घरानों के लोगों को जीवन देती है लेकिन किसानों की समस्याओं पर सुधि लेने वाला कोई नही है ।

भारत के अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार की खेती होती है जिसमे गेंहूँ, धान, गन्ना, कपास, आलू, टमाटर, प्याज ,लहसुन, दाल, चना, सरसो जौ, सोया, इत्यादि प्रकार की खेती  की जाती है और इन्ही किसानों के दम पर पांच सितारा एवं सात सितारा होटलों में लोग अपने आप को देश का वैभवशाली व्यक्ति मानते हैं और इन होटल वालों का भी आय का एक लंबा श्रोत बनता है लेकिन किसानों के आजीविका में वृद्धि होने की बात आती है तो वह सिफर है ।

आजादी के बाद  से  देश मे बदलाव आया ,समय बदला लोग स्वतंत्र हुए सबको अलग अलग जिम्मेदारी मिली साथ ही सरकारी महकमों से लेकर राजनीतिक गलियारों में आय के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई परन्तु किसानों के आजीविका में वृद्धि की बात आती है तो देश में वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोगों द्वारा चुप्पी साध ली जाती है ।

उत्तर प्रदेश में गेंहूँ, धान, गन्ना, आलू ,किसानों द्वारा बोई जाने वाली पहली पसंद है लेकिन लगातार किसान अपने परम्परागत खेती करने से पीछे हट रहे हैं ऐसे ही देश के अन्य हिस्सों के किसानों की समस्या सामने आ रही है ।

एक रिपोर्ट के मुताविक 61 फीसदी किसानों ने कहा कि अगर उन्हें शहरों में नौकरी मिल जाये तो वें खेतीबाड़ी का कार्य छोड़ देंगे क्योंकि खेती से होने वाली आमदनी से उनकी जरूरत पूरी नही होती  इतना ही नही अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्हें खेती से हटकर भी कमाई के रास्ते तलाशने पड़ते हैं  यह सब जानने के बाद यह स्पष्ट होता है कि किसानों की वर्तमान स्थिति बद से बदतर है।

जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों पर गौर करें तो किसानों की संख्या में लगातार कमी आ रही है वर्ष 1991 में देश मे जंहा 11 करोड़ किसान थे वंही 2001 में उनकी संख्या घटकर 10.3 करोड़ राह गई जबकि वर्ष 2011 में यह आंकड़ा 9.58 करोड़ के साथ और भी भयावह रहा है ।

स्थिति यह है  कि हमारा किसान संपूर्ण पूंजी और श्रम का निवेश कर खेतों को लहलहाता  है  पर जब उसे अपने कृषि उत्पादों की उचित कीमत नहीं मिलती तो वह निराश हो जाता है 40% किसानों ने यह माना है कि कृषि बेहद जोखिम भरा एवं जटिल खेती है इसलिए वह कृषिकार्य को छोडना  चाहते हैं सवाल भी है कि आखिर जब किसानो की फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा तो किसान खेती मे काहे के लिए अपना समय एवं जीवन बर्बाद करेंगे ।
 देश में जहां की 70 फीसदी आबादी कृषि पर ही आश्रित है  यदि सरकार द्वारा किसानों को खेती से लाभ दिलाने में दीर्घकालिक उपायों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो इस स्थिति भयानक हो सकती है संभव है कि किसान रोजी रोटी की तलाश में अन्य क्षेत्रों की ओर रुख कर जाएंगे ऐसे में हमें गंभीर खाद्दान्न  के  संकट का सामना करना पड़ सकता है ।

अतः सरकार को यह तय करना होगा कि कृषि आधारित क्षेत्रों में आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उधोग, कृषि सहायक उधोग की योजना बनाया जाए साथ ही यह तय की जाए कि खेती सहकारी संस्था द्वारा कराया जाए और यह प्रावधान किया जाए कि खेती उत्पादों को बड़े बड़े स्टोर एवं शीतगृह  बनाकर सुरक्षित रखा जाए तथा भंडारों एवं स्टोरेजों का पूरा नियंत्रण स्थानीय प्रशासन का हो एवं सरकार द्वारा सहकारी संस्था को ट्रैक्टर, ट्राली, बीज, पानी, पम्प, खाद, दवा आदि संबंधित वस्तुओं की आपूर्ति की जाए तथा श्रमिक किसानों को मनरेगा की दर पर उनके कार्यदिवस पर भुगतान भी किया जाए अगर ऐसा होता है तो वास्तव में किसानों के दिन बदलने लगेंगे एवं सरकार का अच्छे दिन का दावा करने वाला सपना भी साकार हो जाएगा

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पत्रकार के साथ हुए बदसलूकी के खिलाफ बस्ती में "जीपीए"का प्रदर्शन त्वरित कार्यवाही के लिए सौंपा ज्ञापन

 शामली मे हुये पत्रकार उत्पीड़न मामले में आरोपी की गिरफ्तारी न होने से उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के पत्रकारों ने नाराजगी जाहिर करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन सीडीओ को सौंपकर कार्यवाही की मांग किया है। ग्रामीण पत्रकार  की जिला इकाई के आवाह्न पर प्रेस क्लब सभागार में इकट्ठा हुये पत्रकारों ने घटना की घोर निंदा की।

सभी ने कहा आरोपी की गिरफ्तारी नही हुई तो निर्णायक संघर्ष छेड़ा जायेगा। जिलाध्यक्ष अवधेश कुमार त्रिपाठी ने कहा लोकतांत्रिक देश में पत्रकारों पर हमले खराब कानून व्यवस्था को रेखांकित करते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री को स्वयं ऐसी घटनाओं का सज्ञान लेकर त्वरित कार्यवाही का निर्देश देना चाहिये, साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम उठाते हुये सभी पुलिस थानों को निर्देश जारी करना चाहिये जिससे पत्रकार खुद को सुरक्षित महसूस करें और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें।

प्रेस क्लब अध्यक्ष विनोद कुमार उपाध्याय ने घटना को अमानवीय बताते हुये आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग किया। कार्यक्रम का संचालन महामंत्री पंकज त्रिपाठी ने किया। अशोक श्रीवास्तव ने ग्रामीण पत्रकार एसोसियेशन के पदाधिकारियों के समक्ष एक प्रस्ताव रखते हुये कहा कि प्रायः ऐसी घटनाओं में विरोध दर्ज कराने में देरी हो जाती है, ऐसे में तीन या चार सदस्यीय टीम गठित कर देश प्रदेश में होने वाली पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं में संघर्ष की रणनीति तैयार करने हेतु उन्हे अधिकृत किया जाना चाहिये।

प्रेस क्लब से सभी पत्रकार चलकर कलेक्ट्रेट पहुंचे, यहां सीडीओ को ज्ञापन सौंपा गया। इस अवसर पर डा. एसके सिंह, अनल कुमार पाण्डेय, धर्मेन्द्र कुमार मिश्रा, चन्द्रेश दुबे, ब्रह्मदेव पाण्डेय, राजेश सिंह बिसेन, जीशान हैदर रिज़वी, सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी, परशुराम वर्मा, सुरेन्द्र सिंह, सरवर वारसी, महेन्द्र तिवारी, लवकुश सिंह, बीपी लहरी, पारसनाथ मौर्य, राजाराम, अम्बिका तिवारी, इमरान, सत्यदेव, राधेश्याम चौधरी, संजय उपाध्याय, अमित श्रीवास्तव, डीके सिंह, योगेश्वर त्यागी, कृष्ण दत्त द्विवेदी, अजय कुमार पाण्डेय, चन्द्रभूषण सिंह, बीएन मिश्रा, विकास पाण्डेय, शक्तिशण उपाध्याय, डा. बसन्तराम आजाद, शंकर यादव, आदित्य मणि त्रिपाठी, कल्याण चौधरी, दिनेश कुमार पाण्डेय, अवधेश कुमार सिंह, संतोष श्रीवास्तव, राज आर्या, राजन चौधरी, बेचूलाल अग्रहरि, इदगीश सिद्धीकी, महेन्द्र उपाध्याय, अनिल कुमार श्रीवास्तव, बृजकिशोर यादव, प्रशान्त पाण्डेय, दीपक दुबे, मो. असलम शादा, सूर्यनारायण, सचिन शुक्ला आदि मौजूद रहे।

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सोमवार, 17 जून 2019

चमकी बुखार और लू लगने से बिहार में हर 12 वें मिनट में हो रही हैं मौतें

बिहार में इस वक्त लू लगने और चमकी बुखार के साथ अज्ञात बीमारियों से होने वाली मौतों का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है .राज्य में एक तरफ जंहा 100 से ज्यादा बच्चों की मौत बीमारियों कर चलते हुआ है वंही दो दिन में 143 से ज्यादा मौतें लू की वजह से हो गई है जिसमे रविवार को 77 और शनिवार को 66 मौतें शामिल हैं। वंही सोमवार 11 बजे तक बिहार में चमकी बुखार के कारण 111 मौतें हो जाने की बात सामने आई है

औरंगाबाद जिले में दूसरे दिन रविवार को 33 लोगों की जान गई। सबसे ज्यादा 17 मौतें औरंगाबाद सदर अस्पताल में हुई। वहीं, नवादा में 12, पटना में 11, गया में 9, बक्सर में सात और आरा में पांच की लू की वजह से जान चली गई।

देखा जाए तो इस भयानक आपदा से राज्य में हर 12 वें मिटन के पहले 1 बच्चे या व्यक्ति की मौत हुई है। समाचार एजेंसियों के अनुसार अभी भी राज्य में लोगों के मरने की सिलिसिला जारी है जिसके नियंत्रण के लिए राज्य और केंद्र सरकार प्रयास कर रही है।

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रविवार, 16 जून 2019

बांसी में सड़क की पटरी को बेंच कर लोक निर्माण विभाग और नगर पालिका के जिम्मेदार कर रहे मोटी कमाई, यात्रियों के लिए बना मुसीबत

समीक्षात्मक रिपोर्ट 
विश्वपति वर्मा-
उत्तर प्रदेश के मानचित्र पर एक कस्बा है बांसी जो सिद्धार्थनगर जनपद के अंतर्गत आने वाला एक बड़ा बाजार है जिसको नगर पालिका का दर्जा प्राप्त है ।

 मैं पिछले हफ्ते सिद्धार्थ नगर के बांसी नगर पालिका की समस्या को जानने के लिए वँहा पंहुचा था जंहा मैने देखा कि बांसी में एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सड़क के किनारे बने फुटपाथ गायब हो गए हैं .ऐसा नही है कि यह फुटपाथ जमीन में समा गया है या कोई उठा ले गया है यंहा भारी अतिक्रमण की वजह से बाजार के मुख्य मार्ग के दोनों तरफ के फुटपाथ पूर्ण रूप से  कारोबारियों के हवाले हो चुके हैं जिसका परिणाम है कि इस मार्ग से यात्रा करने वाले लोगों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

यंहा के स्थानीय लोगों से बात चीत करने पर पता चला कि सड़क की पटरी को बेंच कर लोक निर्माण विभाग और नगर पालिका के जिम्मेदार मोटी कमाई कर रहे हैं .दरअसल सड़क के बगल बने मकान के मालिकों द्वारा फुटपाथ को दुकानदारों को किराए पर दिया जाता है जंहा 1500 रुपये से लेकर 3 हजार रुपये महीने तक का किराया दुकानदारों द्वारा मकान मालिकों को भुगतान किया जाता है और मकान स्वामी नपा और लोकनिर्माण के जिम्मेदारों से सांठगांठ कर फुटपाथ को बेंच कर अवैध तरीके से यह धंधा काफी दिनों से चमका रहे हैं ।

कस्बे के मुख्य सड़क, बांसी-बस्ती और बांसी-नौगढ़ मार्ग पर सड़क की पटरी पर ठेला, गुमटी, चौकी और फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले लोगों की संख्या देखने के बाद लगता है कि यह सड़क का फुटपाथ नही बल्कि मंडी की आवंटित दुकाने हैं  सड़क से सटाकर ,ठेला, गुमटी, चौकी ,गाड़ी इत्यादि पर सामान बेचने की वजह से हालात यह हो चुके हैं कि आये दिन यंहा सड़क दुर्घटना और जाम की समस्या से लोगों को जूझना पड़ता है।


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शनिवार, 15 जून 2019

फेसबुक पर लाइव के दौरान "बिल्ली" बने पाकिस्तान के मंत्री ,जानें क्यों हुआ ऐसा

NBT
पाकिस्तान में एक मंत्री को उस वक्त हास्यास्पद स्थिति से गुजरना पड़ा जब फेसबुक पर लाइव चल रहे उनके कॉन्फ्रेंस के दौरान गलती से कैट फिल्टर ऐक्टिव हो गया। लाइव कॉन्फ्रेंस के दौरान उनकी सोशल मीडिया टीम से गलती से कैट फिल्टर ऑन हो गया जिसके बाद उनकी शक्ल बिल्ली जैसी दिखने लगी जैसा कि कैट फिल्टर में होता है।

यह घटना खैबर पख्तूनख्वा की है जहां कॉन्फ्रेंस कर रहे सूचना मंत्री शौकत युसुफजई और उनके मंत्रियों की कैट फिल्टर वाली तस्वीर तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस हाल के समय में प्रांतीय असेंबली द्वारा लिए गए फैसले को लेकर हो रही थी।


कैट फिल्टर इन-ऐक्टिव होता इससे पहले ही सोशल मीडिया यूजर्स ने उसका स्नैपशॉट ले लिया और सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। रोशन राय नाम के एक यूजर ने लिखा, 'फिल्टर हटा लो बंदा बिल्ली बना हुआ है।'



मानस नाम के व्यक्ति ने लिखा, 'क्युटेस्ट पॉलिटिशयन' एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, 'खैबर पख्तूनख्वा सरकार के सोशल मीडिया टीम के मुताबिक, हमारी कैबिनेट में एक बिल्ली भी है।'

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