विश्वपति वर्मा―
भ्रष्टाचार, गरीबी ,बेरोजगारी का हवाला देकर सत्ता में आने वाली सबका साथ सबका विकास वाली सरकार के पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया ,लगभग पांच साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने वैश्विक स्तर पर काफी लोकप्रियता हासिल की ,घरेलू गैस ,राशन के कालाबाजारी को नियंत्रण करने में सरकार काफी सफल हुई है। फिलहाल इसके अलावां कोई महत्वाकांक्षी योजना जनता के हित मे दिखाई नही दी ,सरकार ने राशन और घरेलू गैस में होने वाली कालाबाजारी रोकने में जंहा नियंत्रण किया है वंही उसने अपने इस योजना से कई हजार करोड़ रुपये को बचाया भी है।
लेकिन जंहा तक मैंने अध्ययन किया वँहा मुझे देखने को मिला कि अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति आज भी उसी लाइन में खड़ा है जंहा से उसने अपने बदलाव के लिए एक बड़ी पार्टी को सत्ता से बाहर कर उम्मीदों के आईने में नई सरकार का गठन किया था।
अब जनता का क्या दोष है कि जिसने देश और व्यक्तिगत विकास के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर उसे पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए चुना था।
आज देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली एक बड़ी आबादी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण योजना से वंचित है ,देखा जाए तो पढ़े लिखे लोग केवल साक्षर होकर स्कूलों से निकल रहे हैं आज के दौर में उन्हें शिक्षित कहना देश को
शर्मिन्दा करना जैसे होगा ।
निम्न आय का व्यक्ति जंहा बैंकों में दो 4 हजार रुपया जमा कर अपने आप को मजबूत मानता था आज बैंकों द्वारा काटी जा रही बेहिसाब कटौती के कारण उसके पैंसे में सेंध लग रहा है ,देखने को मिल रहा है कि साल भर में बैंक सुविधा चार्ज के नाम पर खाताधारकों के मेहनत से कमाई गई रकम में हिस्सा बांट रहे हैं।
कुपोषण खत्म करने के नाम पर देश मे कई प्रकार की योजनाओं को केंद्रीय बजट और विश्वबैंक के मदद से चलाया गया लेकिन स्थानीय जिम्मदारों के चलते आज तक योजना उद्देश्य के प्रति नही पंहुच पाई जिसका परिणाम है कि आज भारत मे 19 करोड़ लोग जंहा कुपोषण के शिकार हैं वंही 46 फीसदी महिलाएं खून की कमी की वजह से 35 वर्ष की उम्र के अंदर कंकाल की तरहं दिखाई दे रही हैं।
अब सवाल यह है कि आखिर भारत की जनता मुद्दे पर बात क्यों नही करती ,क्या वह भेड़ बकरियों की तरहं भीड़ का हिस्सा बनकर रहना पसंद करती है या फिर अपने आजीविका में वृद्धि के लिए मूल समस्याओं को चिन्हित कर सरकार से उसपर समाधान की मांग करेगी।
भ्रष्टाचार, गरीबी ,बेरोजगारी का हवाला देकर सत्ता में आने वाली सबका साथ सबका विकास वाली सरकार के पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया ,लगभग पांच साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने वैश्विक स्तर पर काफी लोकप्रियता हासिल की ,घरेलू गैस ,राशन के कालाबाजारी को नियंत्रण करने में सरकार काफी सफल हुई है। फिलहाल इसके अलावां कोई महत्वाकांक्षी योजना जनता के हित मे दिखाई नही दी ,सरकार ने राशन और घरेलू गैस में होने वाली कालाबाजारी रोकने में जंहा नियंत्रण किया है वंही उसने अपने इस योजना से कई हजार करोड़ रुपये को बचाया भी है।
लेकिन जंहा तक मैंने अध्ययन किया वँहा मुझे देखने को मिला कि अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति आज भी उसी लाइन में खड़ा है जंहा से उसने अपने बदलाव के लिए एक बड़ी पार्टी को सत्ता से बाहर कर उम्मीदों के आईने में नई सरकार का गठन किया था।
अब जनता का क्या दोष है कि जिसने देश और व्यक्तिगत विकास के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर उसे पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए चुना था।
आज देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली एक बड़ी आबादी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण योजना से वंचित है ,देखा जाए तो पढ़े लिखे लोग केवल साक्षर होकर स्कूलों से निकल रहे हैं आज के दौर में उन्हें शिक्षित कहना देश को
शर्मिन्दा करना जैसे होगा ।
निम्न आय का व्यक्ति जंहा बैंकों में दो 4 हजार रुपया जमा कर अपने आप को मजबूत मानता था आज बैंकों द्वारा काटी जा रही बेहिसाब कटौती के कारण उसके पैंसे में सेंध लग रहा है ,देखने को मिल रहा है कि साल भर में बैंक सुविधा चार्ज के नाम पर खाताधारकों के मेहनत से कमाई गई रकम में हिस्सा बांट रहे हैं।
कुपोषण खत्म करने के नाम पर देश मे कई प्रकार की योजनाओं को केंद्रीय बजट और विश्वबैंक के मदद से चलाया गया लेकिन स्थानीय जिम्मदारों के चलते आज तक योजना उद्देश्य के प्रति नही पंहुच पाई जिसका परिणाम है कि आज भारत मे 19 करोड़ लोग जंहा कुपोषण के शिकार हैं वंही 46 फीसदी महिलाएं खून की कमी की वजह से 35 वर्ष की उम्र के अंदर कंकाल की तरहं दिखाई दे रही हैं।
अब सवाल यह है कि आखिर भारत की जनता मुद्दे पर बात क्यों नही करती ,क्या वह भेड़ बकरियों की तरहं भीड़ का हिस्सा बनकर रहना पसंद करती है या फिर अपने आजीविका में वृद्धि के लिए मूल समस्याओं को चिन्हित कर सरकार से उसपर समाधान की मांग करेगी।