विश्वपति वर्मा_
भारतीय को आज नही आदि से ही चुप रहने की आदत है जिसकी वजह से पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी से जूझ रहे हैं । जनवरी 1877 में एक तरफ लार्ड लिटन दिल्ली दरबार का आयोजन कर रहा था जिसमे उसने अकूत दौलत को बर्बाद किया दूसरी तरफ भारत की एक बड़ी आबादी भुखमरी की चपेट में थी जिसके चलते भारत के लाखों लोगों की अकाल मृत्यु हो गई थी।लेकिन लिटन ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत सामाग्री की उपाधि प्रदान करने में लगा था ।
हालांकि लिटन का यह फिजूल खर्ची भारत के बौद्धिक संपदा के लोगों को रास नहीं आई और यही कारण बना कि भारत के लोगों में चेतना आई और उसके राष्ट्रविरोधी नीतियों को दमन करने के लिए भारतीय एक जुट होने लगे तत्पश्चात ऐसे ही हजारों आंदोलन होने के बाद 70 वर्ष बाद जाकर 1947 में भारत गोरे साहबों की गुलामी से मुक्त हुआ ।
लेकिन उसके अगले 70 वर्षों यानी कि 2019 तक के काल खण्डों को उठाकर देखें तो भारत अंग्रेजों से आजाद नही हुआ बल्कि सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।
उदाहरण स्वरूप आप जीवन काल खण्डों के भारतीय शासन व्यवस्था को उठा कर देख लीजिए इनके कार्यकाल समयों में वही कार्य हुआ है जो अंग्रेजी हुकूमत करते आ रही थी ,अपने लोगों को पुरस्कार देने और दरबार लगाकर ऐशो इशरत के सामाग्री ढूढने में वो लोग लगे हुए थे और ये लोग भी वही कर रहे हैं।
जब देश की एक बड़ी आबादी गरीबी ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार, कुपोषण ,अज्ञानता इत्यादि को झेल रही है तब यंहा भूरे साहबों द्वारा महोत्सव करना, मंच लगाकर पदक बांटना,विशेष व्यक्ति मानकर करोड़ो -करोड़ रुपये का चेक बांटना ,सदन चलाने के नाम पर देश के खजाने की बड़ी धनराशि को बर्बाद करना ,वरिष्ठता के आधार पर वीवीआइपी सुबिधाओं के नाम पर देश भर में खजाने से हजारों करोड़ रुपया खर्च करना जैसे सैकड़ों कार्यों की सूची देख लिया जाए तो लगता है कि जब भारत की जनता आज भी अकाल मौत के मुह में समा जा रही है तब यह स्पष्ट होता है कि भारतीयों के जिंदगी सुधारने के लिए कोई आजादी नही ली गई थी बल्कि अपने ऐशो आराम के लिए सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।
भारतीय को आज नही आदि से ही चुप रहने की आदत है जिसकी वजह से पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी से जूझ रहे हैं । जनवरी 1877 में एक तरफ लार्ड लिटन दिल्ली दरबार का आयोजन कर रहा था जिसमे उसने अकूत दौलत को बर्बाद किया दूसरी तरफ भारत की एक बड़ी आबादी भुखमरी की चपेट में थी जिसके चलते भारत के लाखों लोगों की अकाल मृत्यु हो गई थी।लेकिन लिटन ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत सामाग्री की उपाधि प्रदान करने में लगा था ।
हालांकि लिटन का यह फिजूल खर्ची भारत के बौद्धिक संपदा के लोगों को रास नहीं आई और यही कारण बना कि भारत के लोगों में चेतना आई और उसके राष्ट्रविरोधी नीतियों को दमन करने के लिए भारतीय एक जुट होने लगे तत्पश्चात ऐसे ही हजारों आंदोलन होने के बाद 70 वर्ष बाद जाकर 1947 में भारत गोरे साहबों की गुलामी से मुक्त हुआ ।
लेकिन उसके अगले 70 वर्षों यानी कि 2019 तक के काल खण्डों को उठाकर देखें तो भारत अंग्रेजों से आजाद नही हुआ बल्कि सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।
उदाहरण स्वरूप आप जीवन काल खण्डों के भारतीय शासन व्यवस्था को उठा कर देख लीजिए इनके कार्यकाल समयों में वही कार्य हुआ है जो अंग्रेजी हुकूमत करते आ रही थी ,अपने लोगों को पुरस्कार देने और दरबार लगाकर ऐशो इशरत के सामाग्री ढूढने में वो लोग लगे हुए थे और ये लोग भी वही कर रहे हैं।
जब देश की एक बड़ी आबादी गरीबी ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार, कुपोषण ,अज्ञानता इत्यादि को झेल रही है तब यंहा भूरे साहबों द्वारा महोत्सव करना, मंच लगाकर पदक बांटना,विशेष व्यक्ति मानकर करोड़ो -करोड़ रुपये का चेक बांटना ,सदन चलाने के नाम पर देश के खजाने की बड़ी धनराशि को बर्बाद करना ,वरिष्ठता के आधार पर वीवीआइपी सुबिधाओं के नाम पर देश भर में खजाने से हजारों करोड़ रुपया खर्च करना जैसे सैकड़ों कार्यों की सूची देख लिया जाए तो लगता है कि जब भारत की जनता आज भी अकाल मौत के मुह में समा जा रही है तब यह स्पष्ट होता है कि भारतीयों के जिंदगी सुधारने के लिए कोई आजादी नही ली गई थी बल्कि अपने ऐशो आराम के लिए सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।