गुरुवार, 31 जनवरी 2019

पिछले 45 साल में 2017-18 में सबसे ज्यादा रही बेरोजगारी, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

रवीश कुमार_

2017-18 के लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की तरफ से कराये जाने वाले श्रम शक्ति सर्वे के नतीजों को सरकार दबा रही है. इस साल पिछले 45 साल में बेरोज़गारी की दर सबसे अधिक रही है. दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) ने सर्वे को मंज़ूर कर सरकार के पास भेज दिया लेकिन सरकार उस पर बैठ गई. यही आरोप लगाते हुए आयोग के प्रभारी प्रमुख मोहनन और एक सदस्य जेवी मीनाक्षी ने इस्तीफ़ा दे दिया.

बिज़नेस स्टैंडर्ड के सोमेश झा ने इस रिपोर्ट की बातें सामने ला दी है. एक रिपोर्टर का यही काम होता है. जो सरकार छिपाए उसे बाहर ला दे. अब सोचिए अगर सरकार खुद यह रिपोर्ट जारी करे कि 2017-18 में बेरोज़गारी की दर 6.1 हो गई थी जो 45 साल में सबसे अधिक है तो उसकी नाकामियों का ढोल फट जाएगा. इतनी बेरोज़गारी तो 1972-73 में थी. शहरों में तो बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत हो गई थी और काम न मिलने के कारण लोग घरों में बैठने लगे थे.

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इंकॉनमी (CMIE) के महेश व्यास तो पिछले तीन साल से बेरोज़गारी के आंकड़े सामने ला रहे हैं. उनके कारण जब बेरोज़गारी के आंकड़ों पर बात होने लगी तो सरकार ने लेबर रिपोर्ट जारी करनी बंद कर दी. उन्होंने पिछले महीने के प्राइम टाइम में बताया था कि बेरोज़गारी की दर नौ प्रतिशत से भी ज़्यादा है जो कि अति है.

आप इंटरनेट पर रोज़गार और रोज़गार के आंकड़ों से संबंधित ख़बरों को सर्च करें. आपको पता चलेगा कि लोगों में उम्मीद पैदा करते रहने के लिए ख़बरें पैदा की जाती रही हैं. बाद में उन ख़बरों का कोई अता-पता नहीं मिलता है. जैसे फ़रवरी 2018 में सरकार अपने मंत्रालयों से कहती है कि अपने सेक्टर में पैदा हुए रोज़गार की सूची बनाएं. एक साल बाद वो सूची कहां हैं.

पिछले साल टी सी ए अनंत की अध्यक्षता में एक नया पैनल बना था. उसे बताना था कि रोज़गार के विश्वसनीय आंकड़े जमा करने के लिए क्या किया जाए. इसके नाम पहले जो लेबर रिपोर्ट जारी होती थी, वह बंद कर दी गई. जुलाई 2018 इस पैनल को अपनी रिपोर्ट देनी थी मगर उसने छह महीने का विस्तार मांग लिया.

इसीलिए बेहतर आंकड़े की व्यवस्था के नाम पर उन्होंने पुरानी रिपोर्ट बंद कर दी क्योंकि उसके कारण सवाल उठने लगते थे. अब जब राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट आई है तो उसे दबाया जा रहा है. सोचिए सरकार चाहती है कि आप उसका मूल्‍यांकन सिर्फ झूठ, धार्मिक और भावुक बातों पर करें.

सरकार की आर्थिक नीतियां फ़ेल हो चुकी हैं इसलिए भाषण को आकर्षक बनाए रखने के लिए अमरीकी मॉडल की तरह स्टेडियम को सजाया जा रहा है. अच्छी लाइटिंग के ज़रिए प्रधानमंत्री को फिर से महान उपदेशक की तरह पेश किया जा रहा है. उन्होंने शिक्षा और रोज़गार को अपने एजेंडे और भाषणों से ग़ायब कर दिया है. उन्हें पता है कि अब काम करने का मौक़ा भी चला गया.


इसलिए उन्होंने एक तरह प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ सा दिया है. भारत के प्रधानमंत्री सौ सौ रैलियां कर रहा हैं लेकिन एक में भी शिक्षा और रोज़गार पर बात नहीं कर रहे हैं. मैंने इतना नौजवान विरोधी प्रधानमंत्री नहीं देखा. सरकारी ख़र्चे पर होने वाली इन सौ रैलियों के कारण प्रधानमंत्री बीस दिन के बराबर काम नहीं करेंगे. इसे अगर बारह-बारह घंटे में बांटे तो चालीस दिन के बराबर काम नहीं करेंगे. वे दिन रात कैमरे की नज़र में रहते हैं. आप ही सोचिए वे काम कब करते हैं?

न्यूज़ चैनलों के ज़रिए धार्मिक मसलों का बवंडर पैदा किया जा रहा है ताकि लोगों के सवाल बदल जाएं. वे नौकरी छोड़ कर सेना की बहादुरी और मंदिर की बात करने लग जाएं. हमारी सेना तो हमेशा से ही बहादुर रही है. सारी दुनिया लोहा मानती है. प्रधानमंत्री क्यों बार बार सेना-सेना कर रहे हैं? क्या सैनिक के बच्चे को शिक्षा और रोज़गार नहीं चाहिए? उन्हें पता है कि धार्मिक कट्टरता ही बचा सकती है. इसलिए एक तरफ अर्ध कुंभ को कुंभ बताकर माहौल बनवाया जा रहा है तो दूसरी तरह रोज़गार के सवाल ग़ायब करने के लिए अनाप-शनाप मुद्दे पैदा किए जा रहे हैं.

हे भारत के बेरोज़गार नौजवानों ईश्वर तुम्हारा भला करे! मगर वो भी नहीं करेगा क्योंकि उसका भी इस्तमाल चुनाव में होने लगा है. तुम्हारी नियति पर किसी ने कील ठीक दी है. हर बार नाम बताने की ज़रूरत नहीं है.

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आरटीआई लगाने की जरूरत नही ,घर बैठे देखें ग्राम पंचायत में आय-व्यय का विवरण

विश्वपति वर्मा_

आपके ग्राम पंचायत में किये जाने वाली कार्यों की पूरी पारदर्शिता हो इसके लिए सरकार द्वारा कई ऑनलाइन पोर्टल बनाये  गए हैं जंहा से आप ग्राम पंचायत में खर्च होने वाले 14वें वित्त ,मनरेगा ,आवास ,शौचालय आदि के धनराशि की जानकारी हासिल कर सकते हैं।

आज आपको हम ग्राम पंचायत में 14 वें वित्त से खर्च होने वाले धनराशि के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

किसी ग्राम पंचायत के खर्चे की जानकारी के लिए सबसे पहले इस लिंक पर क्लिक करें 

http://reportingonline.gov.in/distWiseExecOfPlan.htm


पोर्टल के इस तरहं से खुलने पर आपको कालम में वह वर्ष डालना होगा जिस वर्ष में खर्च की जानकारी आप चाहते हैं

उसके बाद आपसे यह पूछा जाएगा कि आप किस प्रदेश के बारे में जानकारी हासिल करना चाहते हैं।

उदाहरण स्वरूप आप उत्तर प्रदेश का चयन करते हैं ,उसके बाद आपको Local body पर क्लिक करना होगा ।

अब आपके सामने सभी इकाइयों का नाम आ जायेगा ,उदाहरण स्वरूप आप ग्राम पंचायत की जानकारी चाहते हैं तो आप कॉलम में दिए गए नाम से तीसरे नम्बर पर ग्राम पंचायत पर क्लिक करें

उसके बाद आपको जिला पंचायत का चयन करना है तो उसमें आप उस जिले का नाम डालेंगे जिस जिले की जानकारी आपको चाहिए।उदाहरण स्वरूप आप बस्ती के लिए जानकारी चाहते हैं तो आप बस्ती का चयन कीजिये ।

अब क्षेत्र पंचायत में आपको अपने ब्लॉक का नाम डालना होगा मान लीजिए आप सल्टौआ ब्लॉक की जानकारी चाहते हैं तो आप उसका चयन कीजिये ।

अब आपको उस ग्राम पंचायत का नाम डालना होगा जिस ग्राम पंचायत की जानकारी आप चाहते हैं ।

इसके बाद आपको एक कालम और भरना है ,जिसमे आपके सामने एक बॉक्स आएगा उसमे उसके ऊपर काले रंग की पट्टी में दिए गए शब्दों को भरना है ।

इतना करने के बाद आप Get Report पर क्लिक करना है आपके सामने ग्राम पंचायत के खर्च का विवरण आ जायेगा।

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आपके ग्राम पंचायत में कितना पैंसा हुआ खर्च ,जानें आसान चरणों मे

विश्वपति वर्मा_

कभी कभी आप परेशान होते हैं जब आप अपने ग्राम पंचायत में खर्च हुए पैंसे का विवरण नही जान पाते आप जिस वेबसाइट पर जाते हैं वँहा आपको केवल कार्ययोजना का विवरण ही मिलता है जिसके चलते आरटीआई एवं अन्य माध्यम की वजह से आपका काफी समय नुकसान हो जाता है ,आइये हम आपको हम आसान चरणों में बताते हैं कि भारत सरकार ने आपके ग्राम पंचायत में किस मद के लिए कितना बजट दिया है। जिसे आप अपने मोबाइल पर घर बैठे एक क्लिक में जान सकते हैं ।

इतना ही नहीं, अगर आपको निर्माण कार्य में कोई अनियमितता नजर आती है तो आप जनसुनवाई में सीधे शिकायत कर सकते हैं। भारत सरकार ने गाँव-गाँव में विकास कार्य को पारदर्शी बनाने के लिए इस सुविधा की शुरुआत की है। आप इन तरीकों को अपना कर अपने प्रधान, जिला पंचायत पर भी नजर रख सकते हैं। 

ऐसे मिलेगी जानकारी

अपनी ग्राम पंचायत के विकास कार्यों को लेकर जानकारी के लिए आपको वेबसाइट http://planningonline.gov.in/ReportData.do?ReportMethod=getAnnualPlanReport पर क्लिक करना होगा।

ऐसी खुलेगी वेबसाइट

Plan Year : (वित्तीय वर्ष)- विकल्प में तय करें कि आपको किस साल की जानकारी लेनी है। जैसे 2017-2018, 2016-2017 या 2015-2016। उदाहरण के तौर पर 2017-2018 चुनते हैं, तो अगला विकल्प राज्य का सामने आएगा।
State: (राज्य) आपको जिस राज्य के बारे में जानकारी चाहिए, उदाहरण के तौर पर जैसे हम राजस्थान राज्य के बारे में जानकारी चाहिए तो राजस्थान पर क्लिक करते हैं।
Plan Unit : इसके बाद आपको Plan Unit का विकल्प आता है, इसमें आपको ग्राम पंचायत, ब्लॉक और जिला पंचायत का विकल्प दिया जाता है, जिसमें आप अपना विकल्प चुन सकते हैं। उदाहरणस्वरूप हम ग्राम पंचायत चुनते हैं।
District Panchayat: (जिला पंचायत) इस विकल्प में आपको अपने जिला पंचायत के बारे में जानकारी देनी होगी। जैसे हमने चित्तौड़गढ़ के रूप में जानकारी चाहिए तो चित्तौड़गढ़ का चयन करें।
Block Panchayat:(क्षेत्र पंचायत) इसमें आपको ब्लॉक पंचायत के बारे में जानकारी देनी होगी। जैसे यदि हम आगे चित्तौड़गढ़ क्लिक करते हैं।
Village Panchayat: (ग्राम पंचायत) इसमें आप अपने गाँव की जानकारी देंगे, जैसे यदि द्योढ़ी विकल्प चुनते हैं तो वेबसाइट में यह तस्वीर आपके सामने होगी।
Get Report: (रिपोर्ट देखिए) सभी विकल्प पूरे भरने के बाद गेट रिपोर्ट में क्लिक करते ही आपके सामने पूरी पंचायत की रिपोर्ट सामने आ जाएगी। आप देख सकेंगे कि ग्राम पंचायत में किस कार्य के लिए कितना बजट पास किया गया। इतना ही नहीं, निर्माण कार्य की लागत का ब्यौरा दिया गया होता है। इस रिपोर्ट में कहां-कहां काम और क्या करवाया गया है, पूरी जानकारी आपको यहां मिलेगी। अगर वेबसाइट में काम किया गया है और जमीनी स्तर पर काम पूरा नहीं होता है तो आप जनसुनवाई में इसकी शिकायत कर सकते हैं।


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बुधवार, 30 जनवरी 2019

लखनऊ से चोरी हुई 8 मोटरसाइकिल बस्ती में बरामद


बस्ती ।  बस्ती पुलिस को वाहन चोरों के 2 सदस्यों को गिरफ्तार करने में सफलता मिली है।  थानाध्यक्ष वाल्टरगंज यशवंत सिंह व संयुक्त टीम द्वारा मुखबिर की सूचना पर चोरी की 8 मोटरसाइकिल के साथ 02 अभियुक्तों को देर रात टिनिच मोड़ पर चेकिंग के दौरान गिरफ्तार किया गया ।

पूछताछ में अभियुक्तो द्वारा बताया गया कि यह मोटरसाइकिल चोरी की है जिसे दिनांक 24.04.18 को भैसा मऊ पुलिया लखनऊ से चोरी किये है व हम लोग लखनऊ से 07 अन्य  मो0सा0 विभिन्न स्थानों से चोरी किये है। जो टिनिच रोड अटरा पुल के पास झड़ी में चुरा कर रखे है जो नेपाल बेचने की बात करके आ रहे थे। पकडे गए अभियुक्तों की निशानदेही पर 07 अन्य चोरी की मोटरसाइकिलों को बरामद किया गया उपरोक्त अभियुक्तों के विरुद्ध गभीरअभियोग पंजीकृत किया गया |

बरामद किए गए गाड़ी

1. वाहन न0 UP 32 HF 8040 मोटरसाइकिल 

2. वाहन न0 UP.32.JH 6723 यमहा FZS

3. वाहन नं0 UP 51 AQ 1378  पल्सर 

4. वाहन नं0 UP 32 JV 5516 रॉयल इनफिल्ड 

5. वाहन नं0 वाहन नं0 UP 32 KB RTR

6. वाहन नं0 UP 32 EM 0737 पल्सर

7. TVS RTR  बिना नंबर की

8. वाहन नं0 UP 32 JS 9322 सुजुकी विक्सा

बड़ी सफलता को हासिल करने वाले टीम में विक्रम सिंह प्रभारी स्वाट टीम,  यशवंत सिंह थानाध्यक्ष वाल्टरगंज ,जितेन्द्र सिंह ,छोटेलाल,  सुरेन्द्र ,आदित्य पाण्डेय , अजय दुबे,  अरुणेश यादव , अमित पाठक स्वाट टीम बस्ती विजय गुप्ता, रामभवन चौरसिया ,दुर्गविजय, एवं चंद्रपति यादव शामिल थे।
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ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को भारत के गांवों से हुआ प्यार

विश्वपति वर्मा(सौरभ)

105 वर्ष बाद अपने पूर्वजों के जन्मभूमि को खोजने आये ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को  भारत के गांवों से प्यार हो गया जिससे अब वें भारत के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों के शिक्षा एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए उत्साहित हैं।

बता दें कि भारतीय मूल के विनय चन्द्र जी के परदादा 1914 में अंग्रेजों के साथ फिजी चले गए थे जंहा पर उनकी तीन पीढ़ियों ने फिजी में अपना व्यवसाय कर लिया वंही एक और पीढ़ी ने ऑस्ट्रेलिया में अपना कारोबार कर लिया जिसमे विनय चन्द्र भी शामिल हैं ।


दिसम्बर 2018 में अपने पूर्वजों के जन्मस्थान को तलाशने विनय चंद्र भारत की यात्रा पर थे ,उनकी जानकारी के अनुसार उनके पूर्वज बस्ती जनपद के धनघटा थाने के करमा गांव के निवासी थे जो अब संतकबीर नगर जनपद का हिस्सा है ,करमा गांव पँहुचने के बाद विनय चन्द्र ने पूरे गांव का भ्रमण किया हालांकि इस गांव से इसके पूर्वज थे इसकी ठोस जानकारी नही मिल पाई लेकिन वापस ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले उन्होंने भारत के गांवों में घूमने के साथ वें दिल्ली, लखनऊ ,आगरा ,मुंबई ,जयपुर ,अयोध्या, सहित कई शहरों को उन्होंने करीब से देखा ,जंहा पर उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर अध्ययन किया।

विनय चन्द्र ने बताया कि भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत खराब है जिसकी वजह से यंहा के नागरिक में जागरूकता का बड़ा अभाव है जिसके कारण यंहा के लोग अपने ही लोगों के बीच मे ठगे जाते हैं ।

इस स्थिति को देखते हुए विनय चन्द्र लड़कियों के शिक्षा पर अपना योगदान भी दे रहे हैं ,जंहा पाठ्य सामग्री के साथ तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने पर उनकी मंशा है।


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सोमवार, 28 जनवरी 2019

ग्रामीण क्षेत्र से निकलकर सूर्यदीप ने बस्ती का नाम किया रोशन

बस्ती जिले के उकड़ा ग्राम निवासी  सूर्यदीप पाठक ने सीए परीक्षा में जिले का नाम रोशन किया है ,जिससे क्षेत्र के लोगों में खुशी का माहौल है ।

 इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने बुधवार को सीए 2018 के अंतिम नतीजे जारी कर दिए। बस्ती जनपद के सोनहा थानांतर्गत के उकड़ा निवासी सूर्यदीप पाठक ने देश की मुश्किल माने जाने वाली परीक्षा  457 अंक के साथ 57.13 प्रतिशत से उत्तीर्ण की।

सूर्यदीप ने बताया कि सीए की तैयारी करते समय मेरे मेरी माता जी  बड़े भैया कुलदीप पाठक,बहन मंजुला पाठक एवं गुरुजनों सहित पूरे परिवार ने काफी प्रोत्साहित किया और हिम्मत बढ़ाई, उसी का नतीजा है की मुझे अपने परिवार और अपने जनपद का नाम रोशन करने में सफलता मिली है।
 उनके बड़े भाई कुलदीप पाठक  ने बताया कि सूर्यदीप की पहले से ही पढ़ने में रुचि थी और वह चाहता था कि वह सीए बने। और उसने अपना सपना सच कर दिखाया ।

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बस्ती-एनआरएचएम कर्मचारियों का हड़ताल जारी ,डॉ स्मिता को नेतृत्व का कमान

विश्वपति वर्मा_

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मचारियों का हड़ताल लगातार जारी है जिसकी वजह से जिले भर के स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य सेवाओं के संचालन पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

 उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा संघ बस्ती के आह्वान पर आज मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय पर संविदा कर्मचारियों ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन  करते हुए हड़ताल को जारी रखने की चेतावनी दिया ।

 हड़ताल के दौरान संविदा कर्मचारियों ने नेतृत्व के दम पर प्रदर्शन को धार बनाने के लिए अपने नेता का चयन किया जिसमे डॉ स्मिता सिंह को सर्वसम्मति से जिला अध्यक्ष घोषित किया गया।

जिला अध्यक्ष बनने के बाद डॉo स्मिता सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग में संविदा कर्मचारियों का बहुत बड़ा योगदान है जिसमे आशाएं भी शामिल हैं लेकिन संविदा कर्मचारियों और आशा के प्रति सरकार का व्यवहार ठीक नही है ,उन्होंने कहा कि ज्ञापन के माध्यम से मुख्यमंत्री को सौंपे गए चार बिंदुओं पर यदि समाधान नही होता है तो हम लोग पूर्ण रूप से हड़ताल पर बैठ जाएंगे जिससे प्रदेश के स्वास्थ्य सेवा पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।

इस मौके पर डॉ० नीरज त्रिपाठी ,डॉo अफजल हुसैन, डॉo गिरजेश आर्या,डॉo नीरज यादव ,डॉo बिनोद शर्मा ,डॉo अजय ,डॉo विकास, डॉo संजय श्रीवास्तव ,डॉo प्रवीण,संगीता, विवेक यादव, आलोक वर्मा, राजेश चौहान, उमेश ,कमल ,अमित, शिवभूषण श्रीवास्तव ,सरिता, सुनीता, सुमन, पूनम ,कुo इंद्रेश चौधरी के साथ काफी संविदा कर्मचारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया।

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भयंकर रोगों से ग्रसित 70 साल का बूढा गणतंत्र हुआ बीमार ,लोकतंत्र के खम्भे ही उठायेंगे जनाजा

ग्राउंड जीरो से विश्वपति वर्मा की रिपोर्ट - 
भारत गावों का देश है भारत के ग्रामीण इलाकों में देश की बहुसंख्यक आबादी निवास करती है ,गावों में बसने वाले लोगों के लिए सरकार  द्वारा 26 जनवरी 1950 के बाद से यानी  कि पिछले 70 वर्षों से शिक्षा ,चिकित्सा ,आवास ,पेय जल ,बिजली ,सड़क जैसी इत्यादि  मूलभूत सुबिधाओं को पंहुचाने की जिम्मेदारी ली गई है लेकिन वर्तमान समय में भारत के गावों में पंहुचने के बाद देखने को मिलता है कि सरकार की  ठोस नीति और ईमानदार नियति न होने की वजह से बहुसंख्य आबादी शोषित और वंचित है। 

बदलते भारत के असली रूप को जानने के लिए जब हम बस्ती जनपद के गौर ब्लॉक अंतर्गत तरैनी गांव में पंहुचे तो गेंहू  की फसल में खाद डालने जा रहे हरिहर निषाद से हमारी मुलाकात हुई। गांव की वर्तमान हालात पर मैने उनसे चर्चा किया तो उन्होंने बताया की गांव में जो बदलाव हुआ है उसे 70 वर्ष के  समय के आधार पर देखें तो वह पर्याप्त नहीं है ,हरिहर ने बताया की हमारे गांव में अधिकांश लोग अशिक्षित हैं ,यंहा पर कोई रोजगार भी नहीं है ,मनरेगा योजना का अधिकांश कार्य ठेके -पट्टे पर हो जाता है ,  गांव के अधिकतर लोग गाय -भैंस ,बकरी पाल कर अपना जीविको पार्जन कर रहे हैं। 


इसी गांव में झोपडी में रहने वाली किरन देवी के घर जब हम पंहुचे तब उन्होंने   बताया की कई बार हमने आवास के लिए आवेदन किया लेकिन अभी तक हमे योजना का लाभ नहीं मिला ,किरन ने बताया की हम लोग मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए रोजगार मुहैया कराये ताकि  अपना घर हम स्वयं बना सकें , किरन अपने दो बच्चों के साथ इस झोपडी में रहती हैं। 



 गांव में मीडिया के लोग आये हैं यह सुनकर  गांव की एक  वृद्ध महिला भागती हुई किरन के घर आ गईं जिनका नाम रमपाती है, रमपाती  से हमारी मुलाकात हुई जिनके पति की मृत्यु 20 वर्ष पहले हो चुकी है , बुजुर्ग महिला की आँखों में देखने के बाद ऐसा लग रहा था कि  लोकतंत्र में बीमार पड़े सरकारी मशीनरियों से उनका उम्मीद खत्म हो चुका है ,रमपाती ने बताया की हमने सैकड़ों बार प्रधान और जिम्मेदार लोगों से पेंशन लगाने के लिए गुहार लगाई ,कई बार अपने कागजात लोगों को दिए लेकिन आज तक हम नहीं जान पाये की सरकार की पेंशन योजना कैसी होती है , महिला ने  कहा की हमे नहीं लगता कि देश के गरीब वर्ग के लिए कोई ईमानदारी से काम कर रहा है। 

गौर ब्लॉक के गोनहा गांव में जब हम लोगों की सामाजिक ,मानसिक एवं आर्थिक उन्नति की समीक्षा कर रहे थे तब गांव के रहने वाले रामसुरेश से हमारी मुलाकात हुई ,रामसुरेश ने बताया की सरकार की योजनाओं की पंहुच सबसे पहले सम्पन्न घरों में होती है ,उन्होंने बताया की शौचालय ,पेंशन एवं चिकित्सा  सुबिधाओं को जन जन तक पंहुचाने के लिए सरकार बड़े -बड़े दावे तो कर रही है लेकिन धरातल पर तस्वीर की दूसरी पहलू में भ्रष्टाचार के दाग लगे हुए हैं ,रामसुरेश काफी दिनों से घर में शौचालय बनवाने के लिए सरकारी अनुदान की मांग कर  रहे हैं लेकिन उन्हें यह बताकर वंचित कर  दिया जाता है कि तुम्हारा नाम बेशलाइन सूची में  नहीं है। 

इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की अपनी अपनी समस्याएं हैं ,जंहा पर सामाजिक समरसता लाने के लिए अनेकों प्रकार की योजनाओं को संचालित किया जा रहा है लेकिन स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की निरंकुशता के  चलते 70वें गणतंत्र के समाप्ति के बाद भी उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई है। अगर समय रहते इस गणतंत्र की लोकलज्जा को नहीं बचाया गया ,तो बीमार पड़े इस तंत्र की सामाजिक मौत होना निश्चित है जिसमे लोकतंत्र के चारों खम्भे ही उसका जनाजा उठायेंगे ,क्योंकि प्रथम जिम्मेदार और वारिस यही लोग हैं। 

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रविवार, 27 जनवरी 2019

बस्ती- अपना दल ने मनाया कर्पूरी ठाकुर की 95वीं जयंती


अपना दल के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं द्वारा  रविवार को बभनान स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क में महान स्वतंत्रा संग्राम सेनानी व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर  की 95 वी जयंती समारोह धूमधाम से मनाया।

 इस अवसर पर उपस्थित कार्यकर्ताओं ने जननायक के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।

जयंती समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि कर्पूरी ठाकुर विचार मंच के संयोजक राम तौल शांत ने कहा कि राजनीति सत्ता का सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि जन सेवा का माध्यम है जननायक कर्पूरी ठाकुर ने इस संकल्पना को स्वयं के त्यागपूर्ण जीवन से साकार किया था ,वह राजनीतिक ऋषि थे ,समाज के उपेक्षित, पीड़ित ,गरीब व मजलूमों के लिए उनका जीवन समर्पित था ,आज के नेताओं को कर्पूरी ठाकुर जैसे महापुरुष के जीवन से सीख लेकर राष्ट व समाज हित को सर्वोपरि मानकर कार्य करना चाहिए।
   विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय नाई महासभा के मंडल अध्यक्ष माननीय परसुराम ठाकुर ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन के तहत कर्पूरी जी 26 महीने जेल में बिताया ,देश आजाद होने के बाद उन्हें बिहार का प्रथम उपमुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला ,बाद में जब कर्पूरी जी को बिहार का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला तो उन्होंने सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया।
 कार्यक्रम में उपस्थित कार्यकर्ताओं ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता बिधान सभा कप्तानगंज क्षेत्र के विधानसभा अध्यक्ष राजमणि पटेल व संचालन प्रदेश कोषाध्यक्ष राम सिंह पटेल ने किया।
इस अवसर पर चौधरी झिनकान पटेल ,अरबिंद सोनकर, अभिमनयू पटेल ,राकेश वर्मा, संत राम पटेल, राधेश्याम कमलापुरी, जग राम गोंड़,ओम प्रकाश तिवारी ,राम प्रकाश पटेल, इंद्रजीत प्रजापति, डॉ. पंचम वर्मा, डॉ वीके कटियार, राम राज जयसवाल, रामपाल वर्मा, शब्बीर अली, उदय प्रताप यादव, राधेश्याम शर्मा, श्याम सुंदर यादव आदि मौजूद रहे।

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सबसे ज्यादा विटामिन पैंसे में होता है

अशोक कुमार चौधरी_

गण पर हावी तंत्र तो कैसा गणतंत्र ? इस तंत्र को देखकर ऐसा ही लगता है कि पैसों से ज्यादा विटामिन कहीं और नहीं है। भ्रष्टाचार का विषाणु हमारे समाज और तंत्र में इस कदर घुल गया है कि इसे अलग कर पाना लगभग असंभव प्रतीत होता है। चाहे वे सरकारी कार्यालय हों या गैर सरकारी संस्थान, बिना सुविधा शुल्क वसूली के कोई कार्य करा पाना नामुमकिन है। आज के समय में घूसखोरी एवं दलाली करने में किसी को कोई शर्म महसूस नहीं होती। काम करने के लिए सरकारी कार्यालय में सरकारी कर्मचारी या तो खुलेआम सुविधा शुल्क की मांग करते हैं, अन्यथा उन्होंने अपने दलाल तैनात कर रखे हैं, जो आम जन से वसूली कर उन तक पहुंचाने का काम करते हैं। ये कर्मचारी बेहिचक रिश्वतखोरी कर आम जनता का शोषण करने में जरा भी भय नहीं महसूस करते, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि फंस जाने पर वे रिश्वत देकर अपनी नौकरी का बचाव कर सकने में सक्षम हैं। इस कदर व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए हमारे उच्चाधिकारी एवं शासन व्यवस्था ही दोषी है। यदि सक्षम अधिकारी ईमानदारी और निष्ठा के साथ काम करते, तो उनके अधीनस्थ कभी भी भ्रष्ट नहीं हो सकते थे।

यू तो इन्सान को जीने के लिये दो रोटी और तन पर एक कपडा बहुत है मगर जिस रफ्तार से विदेशो में देश के कुछ बडे नेताओ के काले धन के मामले सामने आ रहे है और देश में एक घोर भ्रष्ट संस्कृति पनप रही है वो राजतंत्र, पुलिसतंत्र और न्यायतंत्र का निकम्मापन है। हम लोग तीस सालो से गंगा में प्रदूषण की चर्चा कर रहे है। लेकिन देश में भ्रष्टाचार का प्रदूषण तो आज दिमाग को चकराने वाला है। दो दशर्क पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गॉधी जी ने खुद स्वीकार किया था कि “सरकार द्वारा चलाई गई तमाम विकास योजनाओ के प्रत्येक एक रूपये में से केवल 15 पैसे जरूरतमंदो तक पहॅुचते है’’। आज मनरेगा, गरीबो को सस्ता आनाज, वृद्वा व विधवा पैंशन आादि तमाम सरकारी योजनाओ में हमारे राजनेता और नौकरशाहो की पोल खुलने के बाद हमे इस बात का अहसास हो रहा है। वास्तव में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉधी जी ने उस वक्त कितनी साफ सुथरी बात कही थी। आज देश में हुए तमाम घोटालो में प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह द्वारा खुद को ईमानदार साबित कर के सिर्फ पट्टी धोने की कोशिश की जा रही है जख्म पर मरहम या चीरा नही लगाया जा रहा है। कुछ मंत्रियो द्वारा सरकार में फैले भ्रष्टाचार के कारण सरकार को विकास के साथ साथ आम आदमी और कमर तोड मंहगाई पर नियंत्रण का भी ख्याल नही रहा। सरकार कार्यवाही के नाम पर सिर्फ लीपापोती करने में लगी है।इतना सब कुछ होने के बाद नेता लोग जनता को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं

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शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

क्या मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को नही पता है धरातल की सच्चाई

विश्वपति वर्मा_

देश में आम चुनाव आने वाला है ,सत्ताधारियों के अपने -अपने दावे हैं लेकिन धरातल पर आम आदमी सरकारी सिस्टम से हताश हो चुका है ,वह जगह- जगह भ्रष्टाचार के दलदल में फंस रहा है ,सरकारी योजनाओं की पंहुच उनसे दूर है ,अपात्रों को योजनाओं का लाभ मिल रहा है क्या जिम्मेदार  सच्चाई से वें रूबरू नही हैं?

घूसखोरी और कमीशनखोरी के कारण सड़कें बार-बार टूट रही हैं ,सरकारी स्कूल और हॉस्पिटल बदहाल हैं, प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटल जनता को लूट रहे हैं, पंचायत के पैंसों में बंदरबांट जारी है ,तहसील पर जाने वाला हर व्यक्ति ठगा जा रहा है ,पुलिस की कार्यशैली किसी से छिपी नही है ,अधिकारी कर्मचारी बिना घूस लिए कोई काम कर नही रहे हैं,अवैध खनन और सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा जारी है, नकली आधार कार्ड और फर्जी राशन कार्ड बन रहे हैं, बेकसूर जेल जा रहे हैं और अपराधी जमानत पर छूट रहे हैं. जमाखोरी, मिलावटखोरी, कालाबाजारी, टैक्सचोरी, मानव तस्करी तथा न्याय में देरी और अदालत के गलत फैसले देने वाले मामले सामने आ रहे हैं ,अलगाववाद, कट्टरवाद, नक्सलवाद, अवैध घुसपैठ और पत्थरबाजी पर कोई नियंत्रण नही है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन  इंडेक्स में भारत कभी भी शीर्ष 20 देशों में शामिल नहीं हो पाया ।

उसके बाद भी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और क्षेत्रीय दलों के पार्टी नेता और जनप्रतिनिधियों में राष्ट्रवाद का खुमार चढ़ा है ।

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गुरुवार, 24 जनवरी 2019

भ्रष्टाचार जस का तस आखिर चुनाव में लड़ाई किस बात की



भ्रष्टाचार  से लड़ाई के मामले में भारत शीर्ष 20 देशों में भी शामिल नहीं हो पाया है. इसे लेकर बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. उपाध्याय ने कहा है कि देश में जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई है, चारों तरफ समस्याएं ही समस्याएं हैं. जिस ईज ऑफ डूइंग को लेकर बातें होती हैं, उसका आम जनता को कोई आमूलचूल लाभ नहीं होने वाला. भ्रष्टाचार कम होने पर ही आम जनता को लाभ हो सकता है. ईज ऑफ डूइंग की रैकिंग अच्छी होने से व्यापारियों को कारोबार में भले कुछ सहूलियत हो जाए, मगर ज्यादा लाभ नहीं होने वाला. क्योंकि उन्हें अपने काम के लिए पहले की तरह तमाम कामों के लिए सुविधा शुल्क देने पड़ते हैं. लिहाजा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से ही व्यापारियों से लेकर आम जनता को लाभ हो सकता है. बीजेपी नेता अश्निनी उपाध्याय का पढ़िए इन बिंदुओं पर पत्र.



1.घूसखोरी और कमीशनखोरी के कारण सड़कें बार-बार टूट रही हैं, सरकारी स्कूल और हॉस्पिटल बदहाल हैं, प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटल जनता को लूट रहे हैं, अवैध खनन और सरकारी जमीनों पर अवैध कब्ज़ा जारी है, नकली आधार कार्ड और फर्जी राशन कार्ड बन रहे हैं, बेकसूर जेल जा रहे हैं और अपराधी जमानत पर छूट रहे हैं. जमाखोरी, मिलावटखोरी, कालाबाजारी, टैक्सचोरी, मानव तस्करी तथा न्याय में देरी और अदालत के गलत फैसलों का मूल कारण भी घूसखोरी है. अलगाववाद, कट्टरवाद, नक्सलवाद, अवैध घुसपैठ और पत्थरबाजी का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है. यदि ध्यान से देखें तो हमारी 50% समस्याओं का मूल कारण भ्रष्टाचार है लेकिन आजतक किसी भी भ्रष्टाचारी की 100% संपत्ति जब्त कर उसे आजीवन कारावास की सजा नहीं दी गयी .

2.ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत कभी भी शीर्ष 20 देशों में शामिल नहीं हो पाया . यदि पिछले 20 साल की रैंकिंग देखें तो 1998 में हम 66वें स्थान पर, 1999 में 72वें स्थान पर, 2000 में 69वें स्थान पर, 2001 और 2002 में 71वें स्थान पर, 2003 में 83वें स्थान पर, 2004 में 90वें स्थान पर, 2005 में 88वें स्थान पर, 2006 में 70वें स्थान पर, 2007 में 72वें स्थान पर, 2008 में 85वें स्थान पर, 2009 में 84वें स्थान पर, 2010 में 87वें स्थान पर, 2011 में 95वें स्थान पर, 2012 में 94वें स्थान पर, 2013 में 87वें स्थान पर, 2014 में 85वें स्थान पर, 2015 में 76वें स्थान पर, 2016 में 79वें स्थान पर और 2017 में 81वें स्थान पर थे . इससे स्पस्ट है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आयी है .

3.ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम 103वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 133वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में 93वें स्थान पर, यूथ डेवलपमेंट इंडेक्स में 134वें , होमलेस इंडेक्स में 8वें, न्यूनतम वेतन में 124वें स्थान पर, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 43वें स्थान पर, फाइनेंसियल डेवलपमेंट इंडेक्स में 51वें स्थान पर, रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में 66वें स्थान पर, एनवायरमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर, आत्महत्या के मामले में 43वें स्थान पर तथा जीडीपी पर कैपिटा में हम 139वें स्थान पर हैं. अंतराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की इस दयनीय स्थिति का मुख्य कारण भी भ्रष्टाचार है. रोटी कपड़ा मकान की समस्या, गरीबी भुखमरी कुपोषण की समस्या तथा वायु प्रदूषण जल प्रदूषण मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की समस्या का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है और हमारे भ्रष्टाचार-विरोधी कानून बहुत ही घटिया और कमजोर हैं .


4.हमारे पास पुलिस है, क्राइम ब्रांच है, सीबीआई है, ईडी है और इनकम टैक्स विभाग भी है फिर भी 2004-14 में 12 लाख करोड़ रुपये और पिछले 70 साल में 50 लाख करोड़ रूपये का घोटाला हो गया . देश का एक भी थाना, तहसील या जिला भ्रष्टाचार-मुक्त नहीं है और आगे भी ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई देती है . केंद्र और राज्य सरकार का एक भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है जिसके बारे में गारंटी के साथ यह कहा जा सके कि वह भ्रष्टाचार से मुक्त है और अब तो सुप्रीम के जज भी सार्वजनिक रूप से न्यायपालिका में भ्रष्टाचार स्वीकार करते है . संसद में उड़ती हुई नोटों की गड्डियां और पैसा लेकर विधान सभा में सवाल पूंछने का मामला भी सबके सामने है, अर्थात भारतीय लोकतंत्र का कोई भी स्तम्भ भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है .

5.हमारे भ्रष्टाचार-विरोधी कानून अमेरिका की तुलना में बहुत कमजोर हैं . 1988 में बनाया गया प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट और बेनामी एक्ट तथा 2002 में बनाया गया मनी लांड्रिंग एक्ट सहित किसी भी कानून में 100% संपत्ति जब्त करने और आजीवन कारावास देने का प्रावधान नहीं है. अंग्रेजों की ओर से 1860 में बनाई गयी भारतीय दंड संहिता, 1861 में बनाया गया पुलिस एक्ट, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट, 1882 में बनाया गया प्रॉपर्टी ट्रांसफर एक्ट, 1897 में बनाया गया जनरल क्लॉज़ एक्ट तथा 1908 में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड आज भी लागू है. इसलिए आपसे निवेदन है कि 25 साल से अधिक पुराने सभी कानूनों को रिव्यु करने; अपराधियों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट अनिवार्य करने तथा घूसखोरों, जमाखोरों, मिलावटखोरों, टैक्सचोरों, मानव तस्करों, नशे के सौदागरों, हवाला कारोबारियों तथा कालाधन, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति रखने वालों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए संबंधित मंत्रालयों को कानून बनाने का निर्देश दें.

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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मचारियों का हड़ताल जारी


विश्वपति वर्मा_

चार सूत्रीय मांगों को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन  के संविदा कर्मचारियों का आज दूसरे दिन भी हड़ताल जारी रहा ।संविदा कर्मचारियों ने आज  प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सल्टौआ में सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को न माने जाने तक विरोध प्रदर्शन को जारी रखने का ऐलान किया।  

 मांगों को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मचारियों  द्वारा जारी इस हड़ताल से स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा कार्य प्रभावित हो रहा है।

ये हैं मांगे 

सामान्य कार्य का सामान्य वेतन के साथ वेतन में व्याप्त विसंगतियों को दूर किया जाए ,जिसमे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए  निर्देश को लागू किया जाए।आउटसोर्सिंग पर रोकथाम लगाया जाए ।जनपद में तैनात संविदा कर्मचारियों को राज्य स्वास्थ्य समिति के माध्यम से समायोजित कर उन्हें कर्मचारी का दर्जा प्रदन करते हुए ठेकेदारी प्रथा को खत्म किया जाए।
रिक्त पदों का चयन करते हुए प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में  संविदा कर्मियों का स्थायी समायोजन किया जाए जिससे विभागीय कार्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके ।
इसके अलावां मांग पत्र में कहा गया कि " आशा "राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एवं सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं जिसको ध्यान में देते हुए आशा को न्यूनतम दस हजार रुपये का मानदेय सुनिश्चित किया जाए।

हड़ताल में डॉo अजय कुमार, सर्वजीत चौरसिया, मनोज कुमार, राजेश चौहान, शशिप्रभा ,अर्चना, विजय कुमार चौधरी, डॉ oप्रदीप शुक्ला,डॉo दीपिका सचान, डॉ o विकास गौड़, डॉo अनीता गौड़,डॉ o पूनम दूवे, संतोष कुमार, सुनीता, सरिता, सरोज. एस लाल ,गरिमा श्रीवास्त ,ज्योति प्रजापति, कुसुम ,सुधा गौड़ ,ऊषा वर्मा, अनुपम दूवे एवं विजय कुमार के साथ आदि लोग शामिल रहे।

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मलाईदार जगहों पर "एंट्री" पाने के लिए हो रहा गठबंधन बनाम महागठबंधन का खेल

विश्वपति वर्मा _ 

हमे नही लगता कि इस महागठबंधन से देश के वंचित तबके को कोई फायदा होने वाला है ।पूर्व के कैलेंडर पर नजर दौड़ाए तो साफ दिखाई देता है कि इस महागठबंधन में अधिकांश वही लोग शामिल हैं जिन्होंने अपने अपने प्रदेशों में नाकामियों की बीज बोई है।

सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री एवं सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश की बात करें तो यंहा की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव केंद्र की कांग्रेस सरकार में भागीदारी रहे हैं ।लेकिन इन लोगों ने गरीब पिछड़े  असहाय लोगों की कौन सी लड़ाई लड़ी है यह बात आज तक समझ मे नही आई ।

आज भी प्रदेश का एक बड़ा तबका अशिक्षित और वंचित है जिसमे से अधिकांश वर्ग दलितों और अति पिछड़ी जातियों की है आखिर इन लोगों ने जाती धर्म की राजनीति करने के बाद भी बहुसंख्यक दबी कुचली आबादी को समाज की मूलधारा में लाने का काम क्यों नही किया।

कमोबेश... देखा जाए तो सपा, बसपा ,भाजपा और कांग्रेस के साथ अन्य प्रदेशों की राजनीतिक पार्टियों के नेता एक ही बिरादरी के लोग हैं जो अपनी दुकान चलाने के लिए हिन्दू ,मुस्लिम, ,गाय, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की दुहाई देते रहते हैं और यह जाति अमीरों की है जो सत्ता के सफेद पोशाक में जनता के साथ बर्बरता करते हैं।

लेकिन जब सत्ता ही न रहे तो वें जनता के साथ क्या करेंगे।फिलहाल  मलाईदार जगहों पर उनकी "एंट्री" बंद न हो जाये इसके लिए गठबंधन, महागठबंधन ,जनता से झूठ ,फर्जी घोषणा पत्र आदि को चुनावी माहौल में लाकर जनता के साथ धोखा करते  करते रहते हैं जिसका परिणाम है कि एक बड़ी जाति समूह के लोग आजादी के 72 वर्षों बाद भी दलिद्रता की जिंदगी जी रहे हैं और वह जाति गरीबों की है।

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सोमवार, 21 जनवरी 2019

कैबिनेट मीटिंग पहली बार लखनऊ से बाहर, 29 को कुंभ स्नान के बाद योगी आदित्यनाथ की टीम करेगी बैठक*

*कैबिनेट मीटिंग पहली बार लखनऊ से बाहर, 29 को कुंभ स्नान के बाद योगी आदित्यनाथ की टीम करेगी बैठक* 




योगी आदित्यनाथ सरकार प्रयागराज में भव्य कुंभ के आयोजन के साथ एक और इतिहास बनाने जा रही है। यह पहला मौका होगा जब उत्तर प्रदेश कैबिनेट की बैठक संगम तट पर बसे टेंट सिटी में होगी।...


 उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार नया प्रयोग करने में हिचक नहीं रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ की टीम अब लखनऊ से बाहर कैबिनेट की बैठक करेगी। यह बैठक 29 जनवरी को कुंभ नगरी प्रयागराज में होगी। बैठक से पहले कैबिनेट के सभी मंत्री संगम में स्नान भी करेंगे।

योगी आदित्यनाथ सरकार प्रयागराज में भव्य कुंभ के आयोजन के साथ एक और इतिहास बनाने जा रही है। यह पहला मौका होगा जब उत्तर प्रदेश कैबिनेट की बैठक संगम तट पर बसे टेंट सिटी में होगी। योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के साथ ही यह बात उठी थी कि प्रयागराज में भी कैबिनेट की बैठकें होंगी लेकिन, ऐसा हो नहीं सका। प्रयागराज कुंभ के आकर्षण ने इस बहुप्रतीक्षित बैठक की राह आसान की है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने तय किया है कि कुंभ में कैबिनेट की अगली बैठक होगी। यह पहला मौका होगा जब कैबिनेट की बैठक राजधानी से बाहर होगी।

भगवान में आस्था रखने वालों के लिए सरकार कैबिनेट की बैठक वहां करेगी। इस बैठक से पूरी दुनिया में एक धार्मिक संदेश जाएगा। उन्होंने कहा कि कैबिनेट की बैठक कुंभ में किए जाने को लेकर फैसला पिछले कैबिनेट बैठक में ही ले लिया गया था। 29 जनवरी को गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती संगम के पावन तट पर होने वाली यह कैबिनेट की बैठक वास्तव में इतिहास दर्ज करेगी। लगभग चार दर्जन मंत्रियों का भारी भरकम जमावड़ा, अधिकारियों की फौज और उनकी सुरक्षा में लगे सुरक्षाबलों की टीम संगम तट पर वे कौन से निर्णय लेगी जो इतिहास में दर्ज हो जाएंगे। इस बैठक में धर्म और कुंभ से जुड़े प्रस्तावों पर मुहर लग सकती है।

यह 56 वर्ष बाद पहली बार होगा जब कैबिनेट की बैठक लखनऊ से बाहर होगी। इससे पहले 1962 में नैनीताल में कैबिनेट बैठक आयोजित की गई थी। इससे पहले किसी भी सरकार ने आज तक कुंभ में कैबिनेट बैठक का आयोजन नहीं किया है। बैठक के पहले योगी कैबिनेट के मंत्री सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ संगम तट पर स्नान भी करेंगे। यहां स्नान करने के बाद वे सभी कैबिनेट की बैठक में शामिल होंगे।

कैबिनेट की बैठक अमूमन लखनऊ में मंगलवार को होती है। मंगलवार को मकर संक्रांति पर्व होने और मुख्यमंत्री व गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में होने की वजह से पिछली कैबिनेट की बैठक स्थगित कर दी गई थी। यह बैठक शुक्रवार को संपन्न हुई। आने वाले मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी में प्रवासी भारतीय दिवस में आ रहे हैं।

मुख्यमंत्री समेत कई मंत्री उस दिन वाराणसी में मौजूद रहेंगे। ऐसे में अगले मंगलवार को भी कैबिनेट की बैठक नहीं होगी। कुंभ के टेंट सिटी में कैबिनेट की अगली बैठक किये जाने की चर्चा हुई। उसके महत्व पर बल दिया गया। कुंभ में कैबिनेट की बैठक में लिये गये फैसलों पर पूरे देश-दुनिया की नजर रहेगी। संकेत मिल रहे हैं कि कुंभ में होने वाली बैठक में जनहित के महत्वपूर्ण मामलों से लेकर आस्था, धर्म और संस्कृति से जुड़े प्रस्ताव आ सकते हैं। सरकार ऐसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव तैयार कर रही है, जिसका प्रभाव दूरगामी हो और लंबे समय तक चर्चा बनी रहे। संकेत मिल रहे हैं कि 29 को प्रयागराज के कुंभ में कैबिनेट की बैठक हो सकती है।

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एनएचएम संविदा कर्मचारियों का हड़ताल ,चार मांगों पर सौंपा ज्ञापन

विश्वपति वर्मा_

अपनी मांगों को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मचारियों ने आज दिन भर हड़ताल रखा जिससे स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी कई कार्य प्रभावित रहा

बस्ती जनपद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सल्टौआ से जुड़े संविदा कर्मचारियों ने आज दिन में स्वास्थ्य केंद्र भर इकठ्ठा होकर मुख्यमंत्री को संबोधित चार सूत्रीय मांगों को प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉo सचिन कुमार को सौंपा ।

इन मांगों पर सौंपा ज्ञापन

सामान्य कार्य का सामान्य वेतन के साथ वेतन में व्याप्त विसंगतियों को दूर किया जाए ,जिसमे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए  निर्देश को लागू किया जाए।आउटसोर्सिंग पर रोकथाम लगाया जाए ।जनपद में तैनात संविदा कर्मचारियों को राज्य स्वास्थ्य समिति के माध्यम से समायोजित कर उन्हें कर्मचारी का दर्जा प्रदन करते हुए ठेकेदारी प्रथा को खत्म किया जाए।
रिक्त पदों का चयन करते हुए प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में  संविदा कर्मियों का स्थायी समायोजन किया जाए जिससे विभागीय कार्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके ।
इसके अलावां मांग पत्र में कहा गया कि " आशा "राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एवं सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं जिसको ध्यान में देते हुए आशा को न्यूनतम दस हजार रुपये का मानदेय सुनिश्चित किया जाए।

डॉo अजय कुमार, सर्वजीत चौरसिया, मनोज कुमार, राजेश चौहान, शशिप्रभा ,अर्चना, विजय कुमार चौधरी, डॉ oप्रदीप शुक्ला,डॉo दीपिका सचान, डॉ o विकास गौड़, डॉo अनीता गौड़,डॉ o पूनम दूवे, संतोष कुमार, सुनीता, सरिता, सरोज. एस लाल ,गरिमा श्रीवास्त ,ज्योति प्रजापति, कुसुम ,सुधा गौड़ ,ऊषा वर्मा, अनुपम दूवे एवं विजय कुमार हड़ताल में शामिल रहे।

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रविवार, 20 जनवरी 2019

क्या देश के प्रधानमंत्री को शर्म नही आती

विश्वपति वर्मा_

भारत मे अनेको अनेक भ्रष्टाचार हुए ,घूसखोरी ,दलाली मक्कारी ,बेरोजगारी भी बढ़ी ।लेकिन इतना ध्यान देना होगा कि भारत ने एम्स, कालेज ,सड़क ,बिजली, मनरेगा, दूरसंचार ,पेय जल ,पोलियो पर नियंत्रण,गरीबों को आवास ,पिछड़े एवं दलितों को मूलधारा में लाने के लिए शिक्षा, वजीफा, इत्यादि की व्यवस्था भी की है ।

और यह पूरा काम मोदी सरकार ने नही बल्कि पूर्ववर्ती सरकारों ने किया है ।

वर्तमान की मोदी सरकार को भ्रष्टाचार ,बेरोजगारी ,कुपोषण जैसे भयंकर समस्या से निपटना था लेकिन भारतीय जनता पार्टी एवं उनके शीर्ष नेताओं ने बेबुनियाद मुद्दे पर पांच साल के कार्यकाल को पूरा कर दिया।

उसके बाद भी पीएमओ आफिस के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से पोस्ट किया जाता है कि हमने भारत की बेबशी पर कई फिल्में देखी हैं ,जिसमे खुद पीएम मोदी का नाम संबोधित रहता है।

भाई देश ने इतना सब कुछ दिया है लेकिन अपने निजी स्वार्थ के चलते भारत की छवि पर सवाल न उठाओ ।

यदि भारत की स्थिति बदतर हुई है तो नेताओं की बिरादरी ही इसमे शामिल है ,पहले उस समस्या को खत्म करो।

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आखिर भारत मे बदहाल शिक्षा व्यवस्था चुनावी मुद्दा क्यों नही -पढ़ें शर्मनाक आंकड़ा

विश्वपति वर्मा_

किसी देश का विकास शिक्षा के विकास के बगैर संभव नहीं है लेकिन भारत मे शिक्षा की दयनीय हालत पर सरकार गंभीर नहीं है जिसका नतीजा है कि देश की प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पूर्ण रूप से ध्वस्त है। 

देश में प्राथमिक शिक्षा का हाल यह है कि आज भी पांचवीं कक्षा के करीब आधे बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ तक ठीक से नहीं पढ़ सकते। जबकि आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चे दो अंकों के बीच भाग नहीं दे पाते। गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ के वार्षिक सर्वेक्षण ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (असर) - 2018 से यह जानकारी मिली है। हाल ही में जारी यह रिपोर्ट देश के 596 जिलों के 17,730 गांव के पांच लाख 46 हजार 527 छात्रों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है।

इसके मुताबिक चार बच्चों में से एक बच्चा साधारण- सा पाठ पढ़े बिना ही आठवीं कक्षा तक पहुंच जाता है। देशभर में कक्षा तीन के कुल 20.9 फीसदी छात्रों को ही जोड़-घटाना ठीक से आता है। स्कूलों में कंप्यूटर के प्रयोग में लगातार कमी आ रही है। 2010 में 8.6 फीसदी स्कूलों में बच्चे कंप्यूटर का इस्तेमाल करते थे। साल 2014 में यह संख्या घटकर 7 फीसदी हो गई जबकि 2018 में यह 6.5 फीसदी पर पहुंच गई। ग्रामीण स्कूलों में लड़कियों के लिए बने शौचालयों में केवल 66.4 फीसदी ही इस्तेमाल के लायक हैं। 13.9 फीसदी स्कूलों में पीने का पानी अभी भी नहीं है और 11.3 फीसदी में पानी पीने लायक नहीं है।
राज्य सरकारें अब भी शिक्षा को लेकर पर्याप्त गंभीर नहीं हैं। शायद इसलिए कि यह उनके वोट बैंक को प्रभावित नहीं करती। दरअसल समाज के कमजोर तबके के बच्चे ही सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जबकि संपन्न वर्ग के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों की उपेक्षा का आलम यह है कि स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्तियां तक नहीं होतीं। एक या दो शिक्षक सभी कक्षा को पढ़ा रहे होते हैं। शिक्षकों को आए दिन पल्स पोलियो जनगणना या चुनावी ड्यूटी में लगा दिया जाता है। कई स्कूलों में शिक्षक दिन भर मिड डे मील की व्यवस्था में ही लगे रह जाते हैं। शिक्षकों की नियुक्तियों में भी भारी धांधली होती है। अक्सर अयोग्य शिक्षक नियुक्त कर लिए जाते हैं। फिर शिक्षकों के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं होती।

इसके अलावा स्कूलों में ढांचागत सुविधाएं ठीक करने पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूलों में सुधार नहीं हो सकता। असल बात दृढ़ इच्छाशक्ति की है। दिल्ली सरकार ने हाल में अपने स्कूलों पर अतिरिक्त रूप से ध्यान दिया और उसके शानदार नतीजे आए हैं। आज प्राथमिक शिक्षा में आमूल-चूल बदलाव की जरूरत है। उसमें निवेश बढ़ाया जाए, शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया बदली जाए। सिलेबस में परिवर्तन हो, छात्रों व टीचरों को कंप्यूटर और आधुनिक तकनीकी साधन उपलब्ध कराया जाए। 

शिक्षा की इतनी बदहाल स्थिति को देखकर बड़ा सवाल पैदा होता है कि दिन भर बेबुनियाद मुद्दे पर चिल्लाने वाले नेता लोग शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए गंभीरता क्यों नही दिखाते

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शनिवार, 19 जनवरी 2019

बिजली के जर्जर तारों से बढ़ रही दुर्घटनाओं की आशंका


भानपुर-भानपुर पावँर हाउस से सम्बंधित दर्जनों गांवों के आस पास खेतों से गुजरने वाले हाईटेंशन लाइन के ढीला होने की वजह से दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ गई है।

अमरौली शुमाली के चिरैयाडाड निवासी राकेश पटेल ने बताया कि चिरैयाडाड गांव के उत्तर -पूरब दिशा से जाने वाली बिजली के तार आपस मे सट जाते हैं जिससे से हर वर्ष शार्ट सर्किट की वजह से आग लगती है इस वजह से कई बार मे सैकड़ो बीघा फसल जल कर राख हो चुका है ।उन्होंने कई वर्षों से ढीले पड़े तारों को फिर से कसे जाने की मांग की है।

औड़जंगल निवासी रविन्द्र चौधरी ने बताया कि औड़वा गांव से पश्चिम दिशा में उत्तर-दक्षिण को खेत से गुजर कर जाने वाली लाइन काफी दिनों से लटक रहा है जिससे किसानों में डर का माहौल रहता है।

इसी प्रकार भानपुर पॉवर हाउस के दर्जनों गांवों में पुराने तार काफी जर्जर एवं ढीले हो चुके हैं जिसे मरम्मत करने की आवश्यकता है।

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गुरुवार, 17 जनवरी 2019

कैग खुलासा- केंद्र सरकार ने छिपाया चार लाख करोड़ रुपये का खर्च और कर्ज

कैग  ने नरेंद्र मोदी सरकर के वित्तीय प्रबंधन पर बड़ा खुलासा किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार ने चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्ज और कर्ज यानी उधारी छिपाने का काम किया है. इस धनराशि का जिक्र बजट के दस्तावेजों में नहीं है. माना जा रहा है कि राजकोषी घाटे के आंकडे दुरुस्त रखने के लिए सरकार ने ऑफ बजट फाइनेंसिंग (Off-budget financing) की तरकीब का इस्तेमाल किया. खाद्यान्य और उर्वरकों पर सब्सिडी सहित अन्य तमाम खर्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकार ने बजट से बाहर दूसरे सोर्स से पैसे की व्यवस्था की. ताकि बजट के लेखे-जखे में उधारी न दिखे, इसके लिए उपभोक्ता मामलों , रेल और ऊर्जा मंत्रालय में ऑफ बजट फाइनेंसिंग सिस्टम अपनाया गया. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इसको  लेकर मोदी सरकार
(PM Modi) की जबर्दस्त खिंचाई की है.

कैग (CAG)  ने कहा है कि ऐसे खर्चों का जिक्र बजट में होना चाहिए. क्योंकि ऑफ बजट फाइनेंसिंग (Off-budget financing) से जुड़े खर्च संसद के नियंत्रण के बाहर होते हैं. जिस पर कोई चर्चा नहीं होती. वहीं बकाए के हर साल बढ़ने के चलते सरकार को अधिक ब्याज के रूप में सब्सिडी पर ज्यादा खर्च झेलना पड़ता है. वहीं, जब सार्वजनिक उपक्रम लोन चुकता करने में विफल होते हैं तो आखिर में देनदारी सरकार के सिर पर ही आती है. कैग ने कहा है कि डिस्क्लोजर स्टेटमेंट के जरिए ऑफ बजट फाइनेंसिंग की धनराशियों का खुलासा होना चाहिए. इसकी बड़े पैमाने पर समीक्षा की जरूरत है. इस बारे में जवाब तलब करने पर संबंधित मंत्रालयों ने  जुलाई, 2018 में बताया कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को स्वायत्ता है. उनकी उधारी स्वतंत्र व्यापार उपक्रमों के लिए होती है. जहां सरकारी समर्थन सिर्फ एक बेहतर ब्याज दर प्राप्त करने में मदद करता है. ऑफ बजट वित्तीय व्यवस्था एफसीआई की कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए है, जो बैकिंग स्त्रोतों से स्वतंत्र रूप से मिल रहा है. 

दरअसल, देश में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन(FRBM)अधिनियम, 2003 लागू है.  इसका मकसद अर्थव्यवस्था में वित्तीय अनुशासन को संस्थागत करना, राजकोषीय घाटे को कम करने और और आर्थिक प्रबंधन में सुधार करना है. सीएजी ने वर्ष 2016-17 के दौरान जब ऑडिट की तो चौंकाने वाले मामले सामने आए. वर्ष 2018 की 20 वीं रिपोर्ट (CAG Report of 2018) को बीते आठ जनवरी को सीएजी ने संसद में पेश किया. एनडीटीवी ने इस रिपोर्ट की पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. कैग ने ऑफ बजट फाइनेंसिंग को लेकर रिपोर्ट में कुल चार केस स्टडी पेश किए हैं. 
श्रोत-एनडीटीवी 

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आवश्यकता है निडर और साहसी लोगों की ,देख लो हो सकता है आपके भी काम का हो

बस्ती ,गोरखपुर ,सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर ,अम्बेडकर नगर ,जौनपुर ,मिर्जापुर,प्रयागराज व बाराबंकी में जिला स्तरीय संवाददाता की आवश्यकता है ।

1-उम्मीदवार तहकीकात समाचार और विज़न स्वराज के लिए काम करेंगे

2-उनका मुख्य कार्य ग्राउंड जीरो से सूचनाओं का आदान प्रदान करना है

3-हिंदी भाषा मे लिखने और बोलने की पकड़ होनी चाहिए

4 -भारत सरकार और प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जानकारी होनी चाहिए, यदि जानकारी न हो तो अध्ययन कर लें

5-संवाददाता बनाये जाने पर उन्हें गांव से जुड़ना होगा।

6- संवाददाता को लिखने का कम लेकिन पढ़ने का शौक ज्यादा होना चाहिए

7-संवाददाता -निडर एवं साहसी होना चाहिए

हम भारत के गांवों में काम कर रहे हैं ,हमारा उद्देश्य समाज की दबी कुचली आवाज को बुलंद करना है। ब्रेकिंग न्यूज़, ब्लॉग पोस्ट, डाक्यूमेंट्री ,लाइव कवरेज एवं प्रसारण सेवाएं उपलब्ध होगी।

हां एक बात और हम डिग्री को महत्व नही देते हैं ,आप पढ़ लिखकर ज्ञान रखते हैं या बिना पढ़े ।बस जरूरत यह है कि आपको हर विषय के बारे में जानने की रुचि होनी चाहिए ।

हां एक बात और ...हम आपके लिखे हुए आर्टिकल पर नगद भुगतान भी करते हैं जो 300 से 500 रुपये तक होगी ।



विश्वपति वर्मा
संपादक-तहकीकात समाचार

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बुधवार, 16 जनवरी 2019

मांगा आरटीआई जवाब में भेज दिया कंडोम

विश्वपति वर्मा_

अराजकतत्वों द्वारा फैलाये जाने वाली तमाम शर्मनाक घटनाओं के बारे में आपने सुनी होगी लेकिन प्रशासन के पोशाक में कोई शर्मनाक हरकत आपके साथ हो जाये तो आपको कैसा लगेगा

जी हां आरटीआई के एक जवाब में प्रशासन के प्रेषक से कार्यकर्ता के पते पर जो पत्र पंहुचा है आवेदन कर्ता को उसमे कंडोम प्राप्त हुआ है ।

             प्रतीकात्मक तस्वीर
राजस्थान के हनुमानगढ़ की भादरा तहसील में रहने वाले विकास चौधरी और मनोहर लाल को आरटीआई का अजीबोगरीब जवाब मिला है। राज्य सूचना आयोग के निर्देश पर भेजे गए इस जवाब में दोनों को जो कुछ भी मिला वह बेहद चौंकाने वाला था। गांव की विकास परियोजनाओं को लेकर मांगे गए विवरण की जगह जवाब के रूप में ग्राम पंचायत ने उन्हें अखबार में लिपटे हुए पुराने कंडोम भेज दिए।

विकास परियोजनाओं का मांगा था विवरण

राजस्थान के चानी बदी गांव के रहने वाले विकास और मनोहर दिल्ली में रहकर राज्य सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते हैं। पिछले साल 16 अप्रैल को उन्होंने ग्राम पंचायत में दो अलग-अलग आवेदन किए थे। इसमें साल 2001 से गांव में शुरू हुई विकास परियोजनाओं का विवरण मांगा गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विकास चौधरी ने बताया कि जब हमने लिफाफे को खोला तब इसमें एक पुराने अखबार में लिपटे इस्तेमाल किए गए कंडोम मिले।

गांव के महत्वपूर्ण लोगों के सामने खोला दूसरा लिफाफा
उन्होंने कहा, हम दूसरे लिफाफे को लेकर आशंकित थे इसलिए हमने इसे बीडीओ के सामने खोलने का फैसला किया। हमने उन्हें फोन किया और सारी बातें बताकर दूसरे लिफाफे को खोलने के दौरान उनसे वहां उपस्थित रहने का अनुरोध किया। विकास ने बताया कि बीडीओ ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन लोगों ने गांव के ही कुछ महत्वपूर्ण लोगों के सामने कैमरे की रिकॉर्डिंग के बीच दूसरा लिफाफा खोलने का फैसला किया।

श्रोत-एनबीटी

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मंगलवार, 15 जनवरी 2019

सरकार के लिए चुनौती नही बेरोजगारी? हिंसा, ब्लैकमेलिंग, तस्करी बढ़ने के संकेत

विश्वपति वर्मा_

पूरे देश मे बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती के रूप में देखी जा रही है वंही अकेले उत्तर प्रदेश की 20 करोड़ की आबादी में सबसे ज्यादा युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं।देश के सबसे बड़े प्रदेश में रोजगार के अवसर न होना शर्म की बात है।

 यूपी में बढ़ रही बेरोजगारी के कारण लूट-खसोट, छीना-झपटी, चोरी-डकैती और हत्या जैसी आपराधिक घटनाएं भी बढ़ रही हैं। प्रदेश में वर्तमान समय में रोजगार के अवसर बहुत कम हैं यहां का युवा वर्ग गैर राज्यों में रोजगार तलाश रहे हैं।

बेरोजगारी पर जारी 2018 की  रिपोर्ट के मुताबिक करीब 21 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 5 करोड़ से ज्यादा बेरोजगार युवा ठोकरें खा रहे हैं, और ये सब तब है, जबकि राज्य में लगभग 5 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 66 वें दौर (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी के आंकड़ों के आधार पर उत्तर प्रदेश 11वें पायदान पर आता है। इस मामले में केरल सबसे खराब है, वहां बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है जबकि गुजरात में सबसे कम। आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में प्रति 1000 व्यक्ति 39 व्यक्ति बेरोजगार है। भारत के लिए यही आंकड़ा 50 व्यक्ति का है। उत्तर प्रदेश में शहरी आबादी में प्रति 1000 व्यक्ति 29 लोग बेरोजगार हैं। जबकि ग्रामीण आबादी में 1000 आदमी पर केवल 10 आदमी बेरोजगार है। एनएसएसओ की रिपोर्ट की मानें तो उत्तर प्रदेश में 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक (2012-17) 15 से 35 आयुवर्ग वाले युवाओं की भारी जमात बेरोजगारी की समस्या से जुझती नजर आएगी।

इतने बड़े प्रदेश में लाखों युवा बेरोजगार हैं?

- बेरोजगारी का एक कारण जनसंख्या वृद्धि भी है। लड़के बढ़ रहे हैं लेकिन लड़कियों का अनुपात कम हो रहा है यह चिंता का विषय है। देश में सबसे आवादी वाला प्रदेश यूपी है यहां रोजगार के अवसर नहीं हैं क्योकि ज्यादा उद्योग-धंधे नहीं हैं बेरोजगारी को मिटाने के ज्यादा से ज्यादा उद्योग स्थापित किये जाएं।

- प्रदेश से बेरोजगारी मिटाने के लिए युवाओं को अपने रोजगार के अवसर मिलने चाहिए ताकि वह अपने पैरों पर खड़े होकर दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध कराएं इससे बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी।

- यूपी व्यापार के क्षेत्र में भी सबसे आगे हैं। देश की बड़ी मार्केट के रूप में यूपी को जाना जाता है। समस्या इस बात की है कि यहां छोटा से छोटा सामान चाइना का बिक रहा है इस पर प्रतिबन्ध लगाकर स्वदेशी सामान बनाकर बेचा जाये इससे बेरोजगारी कम हो सकती है।

- जनसंख्या की दृष्टि से जितना अधिक हो सके उतनी अधिक फैक्ट्रियां लगाईं जायें ताकि यूपी का युवा किसी दूसरे राज्य में रोजगार के लिए भटके उसे अपने राज्य में ही रोजगार मिले इससे युवा अपने परिवार के साथ रहकर भी नौकरी कर सकें।

स्थानीय एवं केंद्रीय सरकारों द्वारा यदि बेरोजगारी को बड़ी चुनौती मानते हुए इसपर गंभीरता नही दिखाई गई तो आने वाले वर्षों में देश प्रदेश में बेरोजगारी की वजह से हिंसा, तस्करी, ब्लैकमेलिंग जैसी घटनाओं को बढ़ते क्रम में देखा जा सकता है।

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सोमवार, 14 जनवरी 2019

पिछडों या रसूखदारों का आरक्षण ! अभी उलझन बरकरार

विश्वपति वर्मा_

करियों और उच्च शिक्षा में सामान्य वर्ग के कम धनवान बैकग्राउंड वाले लोगों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। संविधान के 124वें संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था की गई है।


देश के दबे कुचले लोगों को समाज की मूलधारा में लाने के लिए सरकार द्वारा अनेकों योजनाओं को संचालित किया जा रहा है ।वंही नौकरी इत्यादि में अवसर दिलाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी लागू है।

  इधर संसद के दोनों सदनों में संविधान के 124वें संशोधन के पास होने से सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है।

लेकिन देखा जाए तो यह गरीब परिवार नही बल्कि धनवान पृष्ठभूमि वाले युवाओं के लिए नौकरियों और उच्च शिक्षा में आने का रास्ता बनाया गया है जैसे कि एससी और पिछड़ी जातियों में इसका फायदा रसूखदार लोग लेते रहे हैं।

 संविधान में रिजर्वेशन के आधार के रूप में सामाजिक पिछड़ेपन की चर्चा है, पर आर्थिक पिछड़ेपन का जिक्र भी नहीं है। यह ठीक है कि अपने फैसले को अमल में लाने के लिए सरकार ने संविधान में संशोधन किया, पर ऐसा कोई भी संशोधन तभी मान्य होगा जब वह संविधान के बुनियादी चरित्र में कोई तब्दीली न करता हो। यह न्यायपालिका तय करेगी कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल चरित्र का उल्लंघन है या नहीं?

 दूसरी उलझन यह है कि इस कदम से आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दायरा टूटेगा। कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। कई राज्यों ने इस व्यवस्था को बाइपास करने के तरीके खोज लिए हैं, लेकिन सरकार के इस फैसले से आरक्षण की सीमा पूरे देश में न्यूनतम 59.5 फीसदी हो जाएगी। ऐसे में आशंका बनती है कि सामान्य वर्ग को रिजर्वेशन देने का यह कानून कहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त न कर दिया जाए। अब तक के अनुभव बताते हैं कि कोर्ट ने तय मानदंडों से हटकर आरक्षण देने के प्रयासों को स्वीकार नहीं किया है।

25 सितंबर, 1991 को तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया था, मगर सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार’ केस के फैसले में इसको यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आरक्षण का आधार आय व संपत्ति को नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) में आरक्षण समूह को है, व्यक्ति को नहीं। इसी तरह वर्ष 2015 में राजस्थान सरकार और 2016 में गुजरात सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। मान लीजिए, मोदी सरकार के फैसले को कोर्ट ने स्वीकृति दे भी दी तो इसे अमल में लाने से कई जटिलताएं पैदा होंगी। गरीबी का दायरा इसमें इतना व्यापक रखा गया है कि डर है, कहीं किसी परीक्षा में आरक्षित कोटे का कट ऑफ सामान्य वर्ग से ज्यादा न हो जाए। विडंबना यह है कि एक तरफ देश में सरकारी नौकरियां दिनोंदिन कम हो रही हैं, दूसरी तरफ सरकार युवाओं को रिजर्वेशन देकर अपनी पीठ थपथपा रही है। ऐसे में यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक उपाय लगता है, जिसका कोई ठोस लाभ किसी को नहीं मिलने वाला। सचाई यही है कि आरक्षण की गाय जितनी दुही जा सकती थी, उतनी दुही जा चुकी है। सरकार युवाओं के लिए कुछ करना चाहती है तो रोजगार बढ़ाने वाली नीतियां अपनाए और ढेरों प्रफेशनल कॉलेज खोले, जहां सबको अपनी क्षमता निखारने का मौका मिले।

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शनिवार, 12 जनवरी 2019

यूपी में सपा बसपा गठबंधन की घोषणा ,बराबर सीटों पर लड़ेंगे चुनाव

कभी एक दूसरे की साथी रहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने शनिवार को करीब 25 साल बाद एक बार फिर साथ आने का ऐतिहासिक ऐलान कर दिया। एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीएसपी मुखिया मायावती ने इसका ऐलान किया। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 38-38 पर एसपी-बीएसपी चुनाव लड़ेंगी। गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखा गया है लेकिन गांधी परिवार के परंपरागत गढ़ अमेठी और रायबरेली में गठबंधन उम्मीदवार नहीं उतारेगा। मायावती ने कहा कि बाकी 2 सीटें अन्य दलों के लिए रखा गया है। बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि जिस तरह 1993 में हमने साथ मिलकर बीजेपी को हराया था, वैसे ही इस बार उसे हराएंगे।

मायावती के बयान में दिखी गेस्ट हाउस कांड की कसक
बीएसपी सुप्रीमो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कम से कम 2 बार काफी जोर देकर 1995 के गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया और कहा कि उनकी पार्टी ने जनहित के लिए उसे भूलकर एसपी के साथ गठबंधन का फैसला किया है। मायावती ने कहा, 'लोहियाजी के रास्ते पर चल रही समाजवादी पार्टी के साथ 1993 में मान्यवर कांशीराम और मुलायम सिंह यादव द्वारा गठबंधन करके चुनाव लड़ा गया था। हवा का रुख बदलते हुए बीजेपी जैसी घोर सांप्रदायिक और जातिवादी पार्टी को हराकर सरकार बनी थी। लखनऊ गेस्ट हाउस कांड से ऊपर जनहित को रखते हुए एक बार फिर देश में उसी तरह के दूषित और साम्प्रदायिक राजनीति को हराने के लिए हाथ मिलाया है।'

लखनऊ के होटल ताज में प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह यानी गुरु-चेले की नींद उड़ाने वाली है। उन्होंने कहा कि 1990 के आस-पास बीजेपी के जहरीले माहौल की वजह से आम जनजीवन प्रभावित था और जनता त्रस्त थी। आज भी वैसा ही माहौल है और हम एक बार फिर उन्हें हराएंगे।

'गठबंधन नई राजनीतिक क्रांति की शुरुआत'

मायावती ने गठबंधन को नई राजनीतिक क्रांति का आगाज बताया। उन्होंने कहा, 'नए वर्ष 2019 में यह एक प्रकार की नई राजनीतिक क्रांति की शुरुआत है। गठबंधन से समाज की बहुत उम्मीदें जग गई हैं। यह सिर्फ 2 पार्टियों का मेल नहीं है बल्कि सर्वसमाज का मेल है। यह सामाजिक परिवर्तन और मिशनरी लक्ष्यों को प्राप्त करने का आंदोलन बन सकता है।'
माया ने बताया कि कांग्रेस को गठबंधन में क्यों नहीं किया शामिल

बीएसपी सुप्रीमो ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखने की वजह भी बताई। उन्होंने कहा, 'आजादी के बाद काफी लंबी अवधि तक केंद्र और देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस ने एकछत्र राज किया, लेकिन जनता परेशान रही। गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार बढ़ा, जिसके खिलाफ कई दलों का गठन हुआ। ऐसे में केंद्र में सत्ता चाहे कांग्रेस के हाथ में आए या बीजेपी के हाथ में, बात एक ही है। दोनों की नीतियां एक जैसी। दोनों की सरकारों में रक्षा सौदों में घोटाले हुए। बोफोर्स से कांग्रेस को सरकार गंवानी पड़ी और बीजेपी को राफेल की वजह से सरकार गंवानी पड़ेगी।'

एनबीटी

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युवाओं के कर्णधार स्वामी विवेकानंद की जयंती आज

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को हुआ। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंगरेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहाँ उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ।


सन्‌ 1884 में श्री विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थी कि नरेंद्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यंत गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रातभर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।

रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किंतु परमहंसजी ने देखते ही पहचान लिया कि ये तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। परमहंसजी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ।

स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की परवाह किए बिना, स्वयं के भोजन की परवाह किए बिना गुरु सेवा में सतत हाजिर रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यंत रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूंक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे

25 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की।

सन्‌ 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानंदजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे। योरप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए।

फिर तो अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ। वहां इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे।स्वामी जी  समाज की दशा और दिशा बदलने के लिए लगातार युवाओं का आह्वान करते रहे।


4 जुलाई सन्‌ 1902 को उन्होंने देह त्याग किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।

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महागठबंधन की सीटों को लेकर आज होगी घोषणा

मल्टीमीडिया डेस्क-

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती आज दोपहर एक साझा प्रेस कांफ्रेंस संबोधित करेंगे. माना जा रहा है इसमें लोकसभा चुनावों में महागठबंधन की सीटों को लेकर बड़ी घोषणा हो सकती है. इसकी जानकारी बसपा के महासचिव सतीश मिश्रा और सपा सचिव राजेंद्र चौधरी ने एक साझा बयान में दी. यह पत्रकार वार्ता शनिवार दोपहर शहर के पांच सितारा होटल में आयोजित होनी है. हाल ही में दोनों दलों के नेताओं ने दिल्ली में भेंट कर लोकसभा चुनावों में महागठबंधन के स्वरूप पर चर्चा की थी.

सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों में से सपा और बसपा की योजना 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ने की है. इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को भी दो या तीन सीटें देने की चर्चा है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट अमेठी और सोनिया गांधी की सीट रायबरेली पर महागठबंधन अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगा.निषाद पार्टी को भी महागठबंधन में शामिल किया जा सकता है

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ने 73 सीटें जीती थीं और इस बार उसके नेता 73 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं. बसपा-सपा और रालोद ने साथ मिलकर उपचुनाव लड़ा था जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट और उप मुख्यमंत्री की फूलपुर सीट से सपा प्रत्याशियों को जीत मिली थी. जबकि कैराना सीट पर रालोद प्रत्याशी ने भाजपा से यह सीट छीनी थी

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शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

इसी तरहं से झूठ फैलाते हैं भारतीय जनता पार्टी के नेता और प्रवक्ता

विश्वपत्ति वर्मा–

भारतीय जनता पार्टी में इसी तरहं के अयोग्य लोग प्रवक्ता बन गए हैं ,जिन्हें प्रवक्ता की गरिमा भी नही मालूम है।

अश्वनी उपाध्याय ने 2013में टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे  एक रिपोर्ट को शेयर किया है ,जिसमे लिखा है कि सोनिया गांधी महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से भी अमीर हैं ,उन्होंने लिखा कि भारत सरकार को जल्द से जल्द क़ानून बनाकर इनकी 100 फ़ीसद बेनामी संपत्ति को ज़ब्त कर लेना चाहिए और उम्रक़ैद की सज़ा देनी चाहिए."

अब इन प्रवक्ता को कौन समझाए कि हफ़िग्टन पोस्ट ने 2013 में ही अपने रिपोर्ट में तथ्यात्मक संसोधन कर दिया था ,क्योंकि इसी रिपोर्ट के आधार पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर छापी थी।

वंही हफ़िग्टन पोस्ट के एडिटर ने अपने नोट में लिखा कि- सोनिया गांधी और क़तर के शेख़ हामिद बिन ख़लीफ़ा अल-थानी का नाम लिस्ट से हटाया गया है, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का नाम इस लिस्ट में किसी थर्ड पार्टी साइट के आधार पर रखा गया था, जिसपर बाद में सवाल उठे. हमारे एडिटर सोनिया गांधी की बताई गई संपत्ति की पुष्टि नहीं कर सके, इसलिए लिंक को हटाना पड़ा. इस ग़लतफ़हमी के लिए हमें खेद है."

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मीडिया समूहों और उनके पत्रकारो का शासन-प्रशासन के साथ चोली दामन का साथ

विश्वपत्ति वर्मा (सौरभ)

भारत मे सत्ता और मीडिया समूहों का चोली दामन का साथ अनेक मौकों पर देखा गया है, वंही पत्रकार भी जनप्रतिनिधि एवं प्रशासन की जी हजूरी में लगे रहते हैं। जो पत्रकारिता जगत के लिए एक शर्मनाक स्थिति है।

प्रदेश में वर्तमान में पत्रकारिता संक्रमण के दौर से गुजर रही है। पत्रकारिता के मापदंड खत्म हो चुके हैं, लोग अमर्यादित पत्रकारिता कर रहे है साथ ही देशहित समाजहित सर्वोपरि की अवधारणा खत्म होकर अब जेबहित की पत्रकारिता हो चली है। साथ ही संगठनात्मक संरक्षण में पलते ब्लेकमेलर भी पत्रकार कहलाने लगे हैं। बिना किसी मापदण्ड के चल रहे इस धंधे में (जी हाँ इसे अब धंधा ही कहना पड़ेगा) उतरना हर किसी के लिए आसान हो गया है।

वहीं राजनीतिक संरक्षण में पत्रकारिता करने वालों की वजह से असल पत्रकार कहीं खो गया है। अब समय आ गया है कि हमे पत्रकारिता को बचाने के लिए मुहिम चलाना होगी। पत्रकारिता में हनन होते मूल्यों को पुनः संजोना होगा। व्यवसायीकरण के दौर में आज प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सब सिर्फ व्यवसाय आधारित पत्रकारिता कर रहे हैं, बावजूद इसके प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने चाहे अपना वजूद बरकरार रखने के लिए ही पर कुछ मूल्यों का निर्धारण किया हुआ था। किंतु अब पत्रकारिता के नाम पर छलावा करने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया का स्थान  यूट्यूब चैनल और प्रिंट मीडिया का स्थान वेबसाइट्स ने ले लिया है। बिना किसी सरकारी निगरानी समिति के चल रहे यूट्यूब चेनल्स ओर उनमे चल रही मूल्यहीन पत्रकारिता की बानगी बनी खबरों के कारण पत्रकारों की अहमियत कम होती जा रही है।

 अब समय आ गया है पत्रकारिता के मापदंड तय होना चाहिए , पत्रकारों की एक भीड़ सी हो गयी है, जिसमे पत्रकार खो गया है। सरकार ने जनसम्पर्क विभाग तो बनाया लेकिन पत्रकारों के लिए कोई मापदण्ड तय नही किए, पत्रकार किसे माना जाए ? क्या हाथ मे माइक आईडी ही पत्रकारिता का तमगा बन गया है? 

आज की तारीख में पत्रकारों के लिए एक छोटी सी परीक्षा अनिवार्य हो गयी है। एक जमाना था जब हम किसी अखबार संस्थान में जाते थे तो वो यह देखते थे कि खबरें लिखना भी आता है या नही, खबर की परिपक्वता, उस खबर का क्या असर होगा?, समाज पर क्या असर पड़ेगा ?, इन सब बातों का अनुभव व्यक्ति में है या नही?  इसके बाद एक विषय दिया जाता था जिस पर खबर बनाई जाती थी और वो खबर उनके मापदण्ड में खरी उतरी या नहीं?  यह देखा जाता था। परन्तु वर्तमान दौर में यह देखा जाने लगा है कि यह व्यक्ति महीने में कितने कमाकर संस्थान को दे सकता है? यह देखा जा रहा है। वो पैसा कहां से ला रहा? उसका तरीका क्या है ?  समाज मे उसके इन तरीकों से क्या असर पड़ रहा है कोई नही देख रहा। अब तय होना चाहिए कि खबरें किस परिमाप में लिखी जाए?

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मंगलवार, 8 जनवरी 2019

मन्दिर में प्रसाद के नाम पर शराब का वितरण ,बना बड़ा मुद्दा


भाजपा नेता नरेश अग्रवाल द्वारा आयोजित पासी सम्मेलन में खाने के पैकेट में शराब का वितरण करने वाले एक मामले में तूल पकड़ लिया है।

मामले की फोटो और वीडियो वायरल होने के बाद हरदोई सांसद अंशुल वर्मा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले को गंभीरता से लेने की बात कही है।

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सोमवार, 7 जनवरी 2019

सरकारी नौकरी में सवर्ण जातियों को 10% आरक्षण को मंजूरी

केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले मास्टरस्ट्रोक खेला है. मोदी सरकार ने फैसला लिया है कि वह सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देगी. सोमवार को पीएम मोदी की अध्‍यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर मुहर लगाई गई. कैबिनेट ने फैसला लिया है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिया जाएगा.

बताया जा रहा है कि आरक्षण का फॉर्मूला 50%+10 % का होगा. सूत्रों का कहना है कि लोकसभा में मंगलवार को मोदी सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने संबंधी बिल पेश कर सकती है. सूत्रों का यह भी कहना है कि सरकार संविधान में संशोधन के लिए बिल ला सकती है. इसके तहत आर्थिक आधार पर सभी धर्मों के सवर्णों को दिया जाएगा आरक्षण. इसके लिए संविधान के अनुच्‍छेद 15 और 16 में संशोधन होगा.

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