सोमवार, 31 दिसंबर 2018

२०१८ में विश्वभर की महत्वपूर्ण बातें- flashback 2018

वर्ष 2018 हम लोगों से  बिदा लेने को है ।आइये  महत्वपूर्ण घटनाओं पर एक नज़र डालते हैं, जो किसी न किसी रूप में हमारे भविष्य को प्रभावित करेंगी। 
 
विश्वपति वर्मा_

भारत के प्रधानमंत्री वर्ष के शुरुआती दौर में एक प्रभावी नेता रहे हैं लेकिन वर्ष के अंतिम महीने यानी दिसम्बर में तीन राज्यों के चुनाव के हार के बाद धरातल पर उनकी लोकप्रियता में कमी आई है ,हालांकि नरेंद्र मोदी सोशल साइट्स पर आज भी सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति लगभग प्रतिदिन सही या गलत कारणों से विश्व के मीडिया में चर्चा का विषय बने रहे। अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ उनकी ठनी रही। अपने अभी तक के कार्यकाल में वे कोई नया मित्र नहीं बना पाए हैं। फिर भी अमेरिकी जनता के एक बड़े हिस्से में ट्रम्प अपनी लोकप्रियता बनाये हुए हैं। वर्ष के अंत में सीरिया और अफगानिस्तान से सेना हटाने का निर्णय लेकर उन्होंने दुनिया को चौंका दिया।  

विश्व राजनीति के परिप्रेक्ष्य में इस वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण घटना तब हुई, जब उत्तरी कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन अंततः अपने देश से बाहर निकला और उसने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून तथा अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प से सिंगापुर में मुलाकात की। इन मुलाकातों के बाद पृथ्वी को परमाणु बमों के अनचाहे धमाकों और दिशा भ्रमित मिसाइलों से थोड़ी राहत मिली। यद्यपि अभी किसी महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं किन्तु फिर भी इस वर्ष दोनों कोरियाई देशों के बीच कटुता में निश्चित ही कमी आई है। 

उधर चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग लगभग ता उम्र के लिए चीन के राष्ट्रपति घोषित कर दिए गए। चीन की सत्ता पर उनका एकाधिकार हो चुका है और आने वाले वर्षों में चीन उनके ही नेतृत्व में आगे बढ़ेगा। उन्हें चुनौती देने वाला शायद अब कोई नहीं बचा। हमारे पड़ोस में बांग्लादेश की शेख हसीना भी सुर्ख़ियों में रही, जिसने बांग्लादेश का औद्योगीकरण करके देश की अर्थव्यवस्था में आमूल परिवर्तन कर दिया और उसे दुनिया की सबसे तेज गति से भागने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया। 
 
उधर पाकिस्तान की सत्ता पर पुनः सेना का कब्ज़ा क्रिकेटर इमरान खान के माध्यम से हुआ। सेना का सामना करने वाले नवाज़ शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोप में कैद की सजा सुना दी गई है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट है और अपने मित्र देशों के सहारे अभी किसी तरह गाड़ी खींच रहा है। 

मध्यपूर्व की बात करें तो  अब्देल फतह अल सीसी का एक बार तो लगभग सफाया हो चुका है और यह क्षेत्र अब शांति की ओर बढ़ता दिख रहा है। इस क्षेत्र की सरकारें थोड़ी स्थिर होने लगी हैं।  मिस्र में राष्ट्रपति सिसी की सरकार दूसरी बार भारी बहुमत से चुन ली गई।  सऊदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान ने सऊदी अरब की परम्परागत सामाजिक व्यवस्थाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन किए और साथ ही युवराज के नेतृत्व में सऊदी अरब अब शत्रु देशों के विरुद्ध अधिक आक्रामक भी दिखने लगा है।
 

पूर्व और सुदूर पूर्व पर नज़र डालें तो मलेशिया की जनता ने अपने एक पुराने लोकप्रिय राजनेता महातिर को 93 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बनाकर दुनिया को चौंका दिया।  आज वे दुनिया के सबसे बड़ी उम्र के राष्ट्राध्यक्ष हैं। जापान के प्रधानमंत्री अबे इस वर्ष पुनः निर्वाचित हुए और अपने देश के सबसे लम्बे समय तक बने रहने वाले प्रधानमंत्री बन गए। उन्हें इस उपलब्धि का श्रेय है कि जापान की अर्थव्यवस्था को नयाजीवन दिया और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से भी अपने संबंधों को सुधारा। 

यूरोप पर नज़र डालें तो इंग्लैंड के नेता पूरे वर्ष यूरोपीय संघ से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढते रहे। यह समस्या इतनी उलझ चुकी है कि इसका सीधा समाधान किसी को भी नज़र नहीं आ रहा। जर्मनी की लौह महिला चांसलर एंजेला मर्केल ने 2022 में अपने पद से हट जाने की घोषणा कर दी है और इस तरह यूरोप के एक जुझारू, लोकप्रिय और सम्मानित नेता की बिदाई तय है। जर्मनी में अब परिवर्तन का दौर आरम्भ होगा। वर्ष के अंत में फ्रांस में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कारणों से उपद्रव की शुरुआत हुई। अतः कुल मिलाकर यूरोप के लिए यह वर्ष कुछ विशेष उपलब्धियों वाला नहीं रहा। 

 
 मालदीव की बात करना उचित होगा जहाँ कुछ वर्षो तक भारत विरोधी और चीन समर्थक राष्ट्रपति सत्ता में रहे जिन्होंने अपने निर्णयों से भारत की चिंताएं बढ़ा दी थीं। इस वर्ष सत्ता परिवर्तन हुआ और पुनः भारत समर्थक राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह चुन लिए गए। इस तरह वर्ष 2018 जाते जाते भारत के खाते में एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि डाल कर चला गया।

एक बार फिर भारत पर नजर डालें तो सितंबर में पेट्रोल और डीजल के दाम में भारत में रोजाना बढ़ोतरी होने लगी और देशभर में तेल का दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर चला गया. पेट्रोल मुंबई में 91 रुपये से ज्यादा जबकि दिल्ली में 84 रुपये प्रति लीटर हो गया. इस बीच पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने की मांग होने लगी. केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद कर में 1.5 रुपये प्रति लीटर की कटौती और एक रुपये प्रति लीटर की कटौती का भार तेल विपणन कंपनियों को उठाने को कहा.

उधर फ्रांस में ईंधन करों में वृद्धि के खिलाफ 'येलो वेस्ट' प्रदर्शन वर्ष के समाप्ति तक लगातार जारी है। पुलिस ने शनिवार को पेरिस में प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े। शनिवार को पेरिस में हजारों प्रदर्शकारियों ने सरकारी टीवी स्टेशनों और बीएफएम टीवी चैनल के दफ्तर के बाहर जमा होकर मीडिया पर फर्जी खबरें चलाने का आरोप लगाया और राष्ट्रपति एमेनुएल मैंक्रों का इस्तीफा मांगा। 

22 दिसंबर को 38, 600 प्रदर्शनकारी जमा हुए थे, वहीं प्रदर्शनों के पहले दिन 17 नवंबर को 2,82,000 लोग शामिल हुए थे। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि 2019 में भी वह विरोध जारी रखेंगे

तहकीकात समाचार (tahkikatsamachar )द्वारा समस्त जानकारी को विश्वसनीय स्रोत से इकट्ठा किया गया है हमारा उद्देश्य है कि पाठकों तक विश्वभर की बड़ी घटनाक्रम को पंहुचायें।

संपादक


लेबल:

रविवार, 30 दिसंबर 2018

....तो अंग्रेजों का जूता पॉलिश करते नजर आते कलेक्टर

23 मार्च 1931 को  तीन युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटकाने का फैसला लिया  जिसमे
भगत सिंह ,सुखदेव एवं शिवराम हरि राजगुरु शामिल थे अपनी मौत का परवाह किये बगैर इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो से लोहा लेते हुए अपने आप को देश के अगले पीढ़ी के लोगों के स्वतंत्रता के लिए बलिदान कर दिया।

अपने बलिदान से पहले उन्हें नही पता था कि जिस देश के लोगों के बेहतर जिंदगी के लिए मुल्क को गोरे साहबों से मुक्त कराया जा रहा है उस देश मे लोकतंत्र के रास्ते भूरे लोग जनता के ऊपर हुकूमत गाँठेंगे।


तस्वीर में दिखाई जाने वाली कुर्सी लोकतंत्र में मामूली कुर्सी होनी चाहिए ,यह कुर्सी डीएम आवास में रखा गया है इस कुर्सी का मालिक  Officer on Special Duty(OSD) होता है जो जनता की बातों और तमाम प्रशासनिक व्यवस्था को जिला अधिकारी तक पंहुचाने और उसके आदेशों का पालन करने के लिए होता है ,जो लोकतंत्र के रास्ते चुना जाता है।

लेकिन दुख की बात है कि इस देश मे लोकतंत्र नाम की कोई चिड़िया नही है ,सरकारी प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है ,वह बीमार पड़ गई है ,दवा भी उसको कोई काम नही कर रहा है क्योंकि  प्रशासन को सत्ताधारियों का लकवा मार गया है

आज देखने को मिलता है कलेक्टर के पीछे हां साहब...... जी साहब .......करने के लिए दर्जनों लोग लगे रहते हैं और इसी के चलते देश के सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा में पास होकर आने वाला व्यक्ति अपने दायित्यों एवं कर्तव्यों को भूल कर तानाशाही रवैया अपनाने लगता है ।

मुझे ज्यादा कुछ नही कहना है बस बताना है कि सैकड़ों क्रांतिकारियों ने देश को अंग्रेजी शासन से आजाद कराने के लिए इतनी बड़ी क्रांति न लाई होती तो वर्तमान में तमाम डॉक्टर,कलेक्टर ,इंजीनियर बनकर तानाशाही करने वाले लोग अंग्रेजों के जूते में पॉलिश लगाते नजर आते।



लेबल:

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान

➡ गाजीपुर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान


महाराजा सुहेलदेव अमर रहें- प्रधानमंत्री

पीएम ने भोजपुरी में जनता का स्वागत किया

खिचड़ी पर्व की पीएम ने बधाई दी

गौरीशंकर राय जी को नमन करता हूं- पीएम

वीर अब्दुल साहब को नमन करता हूं- पीएम

शहीद अब्दुल हमीद को पीएम ने नमन किया

देश को इस धरती ने वीर सपूत दिया- पीएम

गाजीपुर की धरती ने सेना को सपूत दिया-पीएम

ठंड में आप आशीर्वाद देने आए हैं – पीएम

इसके लिए आप सभी को नमन करता हूं-पीएम

पूर्वांचल को मेडिकल हब बनाने का काम-पीएम

यूपी के लघु उद्योगों को मजबूत कर रहे-पीएम

नए मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास किया-पीएम

‘पूर्वांचल और यूपी का गौरव बढ़ाने का अवसर’

5 रुपए का डाक टिकट जारी किया है – पीएम

सुहेलदेव जी की याद में डाक टिकट जारी – पीएम

सुहेलदेव जी मां भारती के सम्मान के लिए लड़े-PM

आसपास के अन्य राजाओं को साथ जोड़ा था-पीएम

दुश्मन सुहेलदेव के सामने खड़े नहीं हो पाए – पीएम

उन्हें नमन करना हमारा दायित्व है – पीएम

बहराइच के चितौरा में सुहेलदेव ने संघर्ष किया-पीएम

विदेशी आक्रांताओं को सुहेलदेव ने हराया – पीएम

बहराइच में भव्य स्मारक योगी जी बनवाएंगे-पीएम

आज गरीब की सुनवाई का मार्ग खुला – पीएम

आज से गरीबों की सुनवाई हो रही है – पीएम

पूर्वांचल में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार –पीएम

पूर्वांचल को मेडिकल हब बनाने का काम – पीएम

यहां घर में डॉक्टर बनने का सपना पूरा होगा-पीएम

गाजीपुर का जिला अस्पताल 300 बेड का होगा-पीएम

लम्बे समय से सिन्हा जी की मांग रही – पीएम

आपकी आवाज सिन्हा जी उठाते रहे हैं – पीएम

100 बेड का जच्चा-बच्चा अस्पताल होगा – पीएम

ऐसी सुविधाओं को और विस्तार देंगे हम – पीएम

हजारों करोड़ की सुविधाएं तैयार हो रही हैं – पीएम

आयुष्मान योजना से गरीबों की मदद की है- पीएम

गरीबों को पीएम आवास उपलब्ध कराया है – पीएम

5 लाख का निशुल्क इलाज आपको मिलेगा- पीएम

6.5 लाख गरीबों का इलाज हो चुका है – पीएम

6 महीने में पूरे देश में योजना से सफलता- पीएम

पहले लोग कर्ज लेकर इलाज कराते थे – पीएम

पीएम जीवन ज्योति योजना से आपको जोड़ा – पीएम

20 करोड़ से अधिक लोग योजना से जुड़े हैं – पीएम

3 हजार करोड़ से अधिक रकम लोगों को मिली-पीएम

देशभर में कोने-कोने का विकास हो रहा है- पीएम

पूरी लगन से सरकार काम कर रही है – पीएम

मध्य प्रदेश में किसानों को यूरिया नहीं- पीएम

किसानों पर लाठियां चल रही है – पीएम मोदी

कर्नाटक में किसानों को लॉलीपाप दिया गया-पीएम

किसानों का कर्ज माफ नहीं किया गया है – पीएम

कांग्रेस ने चोर रास्ते से सरकार बनाई है – पीएम

कर्नाटक में सिर्फ 800 लोगों के कर्ज माफ-पीएम

किसानों के पीछे पुलिस छोड़ दी गई है – पीएम

किसानों से फिर से वसूली की जा रही है-पीएम

10 साल पहले किसका कर्ज माफ हुआ- पीएम

वादा करके कांग्रेस ने कर्ज माफ नहीं किया-पीएम

भाइयों ऐसे लोगों पर भरोसा करोगे क्या-पीएम

6.5 लाख करोड़ का कर्ज माफ नहीं किया-पीएम

कांग्रेस ने 60 हजार करोड़ का कर्ज माफ किया-पीएम

सीएजी के रिपोर्ट के बाद कर्ज माफ किया- पीएम

जिनका हक नहीं था उनका कर्ज माफ हुआ- पीएम

कांग्रेस की सरकार ने सिर्फ धोखा दिया था – पीएम

कांग्रेस लॉलीपाप कम्पनी से सतर्क रहिए अब-पीएम

हमारी सरकार ने 4 साल में बहुत काम किया-पीएम

पूरे यूपी में रेलवे का काम हो रहा है – पीएम

नई ट्रेनों की शुरुआत यूपी में की गई- पीएम

यूपी के रेलवे स्टेशन सुंदर बनाए जा रहे-पीएम

पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का काम चल रहा – पीएम
www.tahkikatsamchar.in

लेबल:

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

निर्धारित दाम से 70 रुपया अधिक दुकानों पर बिक रहा खाद


बस्ती-एक तरफ किसानों की आय दोगुना करने की बात हो रही है दूसरी तरफ किसानों का जेब काटने के लिए जगह जगह लोग बैठे हुए हैं ।

इस समय गेंहू की बुवाई के बाद अब उसे खाद की जरूरत है इसके लिए किसान को खाद दुकान से खरीद कर लाना है ।

लेकिन यंहा सबसे बड़ी विडंबना यह है कि खाद के बोरी पर एक निर्धारित दाम लिखा होने के बाद 70 रुपया प्रति बोरी अतरिक्त दाम लिया जा रहा है।

भानपुर तहसील के अंतर्गत बस्थनवा निवासी जयपाल ने हमे बताया कि गेंहू के फसल डालने के लिए जब हम खाद की खरीदारी करने गए तब हमसे 330 रुपया लिया गया जबकि खरीदे गए बोरी पर आल स्टेट 266 रुपया बिक्री रेट लिखा हुआ है।

इस तरहं से किसानों की आय दोगुना करने की योजना तैयार की जा रही है।

लेबल:

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

यूपी सरकार के कार्यक्रमों का बहिष्कार करेंगी अनुप्रिया पटेल


भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दलों के उससे अलग होने के सिलसिले में उसकी एक और सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) की नाराजगी जाहिर हो गई है अपना दल की तरफ़ से कहा गया है कि जबतक यूपी का बीजेपी नेतृत्व सहयोगी पार्टियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करता तबतक अपना दल के कोटे से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल यूपी सरकार के किसी सरकारी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगी.

तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिली हार के बाद से ही बीजेपी अपने ही सहयोगी पार्टी के तेवर से परेशान हो उठी है. बीजेपी को 2019 के चुनाव में राजनीति विसात बिछने से पहले ही अपने सहयोगी दलों द्वारा ब्लेकमेलिंग का सामना करना पड़ रहा है. एनडीए में शामिल यूपी की अपना दल (एस) की नाराज़गी बीजेपी से कम होने का नाम नहीं ले रही है. अपना दल की तरफ़ से कहा गया है कि जबतक यूपी का बीजेपी नेतृत्व सहयोगी पार्टियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करता तबतक अपना दल के कोटे से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल यूपी सरकार के किसी सरकारी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगी. अपना दल की तरफ़ से आरोप लगाया गया है कि मिर्जापुर में बीजेपी के नेता केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के कार्यक्रमों से दूर रहते हैं. इसलिए जब तक बीजेपी के केंद्रीय नेता प्रदेश के मामले में दखल नहीं देते, तब तक अनुप्रिया पटेल भी सभी सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार करेंगी.2019 लोकसभा चुनाव के पहले एनडीए गठबंधन में शामिल अपना दल (एस) के बगावती सुर बुलंद कर दिए हैं. अपना दल (एस) के राष्टीय अध्यक्ष आशीष पटेल ने बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व पर अनदेखी का आरोप लगाया. आशीष पटेल ने कहा कि अपना दल (एस) पार्टी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने प्रदेश सरकार के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाने का निर्णय लिया है.आशीष पटेल ने कहा, "मैं एक बात आपके सामने स्पष्ट करना चाहता हूं कि कल से मीडिया चैनल जो एक ही बात चला रहे हैं कि हम एनडीए से छोड़ रहे हैं, तो बताना चाहता हूं कि हमारे एनडीए छोड़ने का कोई भी प्रश्न ही नहीं उठता. हमने 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था. हम चाहते हैं कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनः प्रधानमंत्री बने. लेकिन उसके लिए भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश का जो नेतृत्व है उसे अपने व्यवहार को बदलना होगा. सहयोगी दलों के साथ सम्मान पूर्वक रवैया अपनाना पड़ेगा."अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल ने कहा कि उत्तर प्रदेश के भाजपा नेतृत्व द्वारा सहयोगियों के साथ राज्य में सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए था, वह नहीं किया जा रहा है, जब तक इस समस्या का हल नहीं हो जाता तब तक यूपी सरकार के किसी भी कार्यक्रम में पार्टी का कोई भी सदस्य शामिल नहीं होगा. ओमप्रकाश राजभर पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए आशीष पटेल ने कहा कि देखिए, राजभर जी बड़े नेता हैं. उन्हें टिप्पणी करने का पूरा अधिकार है, वह करते रहें. हम उनकी टिप्पणी पर कोई कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं.

लेबल:

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

सरकारी अस्पताल की बड़ी लापरवाही महिला को चढ़ा दिया HIV संक्रमित खून

मल्टीमीडिया डेस्क_
तमिलनाडु के एक सरकारी अस्पताल में 24-वर्षीय गर्भवती महिला को HIV संक्रमित खून चढ़ा दिए जाने का मामला सामने आया है. विरुधूनगर जिले के अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न के दौरान हुए इस हादसे के बाद तीन लैब टेक्नीशियनों को पिछले दो साल में कथित रूप से लापरवाही करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है.
            प्रतीकात्मक तस्वीर ,श्रोत एनडीटीवी
इस गर्भवती महिला को HIV-संक्रमित युवक से लिया गया खून 3 दिसंबर को चढ़ाया गया था. युवक को दो साल पहले एक सरकारी लैब द्वारा HIV तथा हेपाटाइटिस-बी पॉज़िटिव पाया गया था, जब उसने रक्तदान किया था. बहरहाल, उसे टेस्ट के नतीजों की जानकारी नहीं दी गई, और उसने पिछले महीने फिर सरकारी ब्लड बैंक के लिए रक्तदान किया. अधिकारियों के अनुसार, जब तक खून में HIV संक्रमण का पता चल पाता, उसका खून गर्भवती महिला को चढ़ाया जा चुका था.

जब महिला को HIV संक्रमित पाया गया, तो उसका एन्टी-रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट शुरू किया गया. अधिकारियों के अनुसार, गर्भ में पल रहा शिशु भी HIV संक्रमित होगा या नहीं, यह उसके जन्म के बाद ही जाना जा सकेगा.

आमतौर पर HIV का वायरस संभोग, संक्रमित रक्त के ज़रिये अथवा संक्रमित मां से गर्भ में पल रहे शिशु तक फैलता है. इसके अतिरिक्त संक्रमित महिला से स्तनपान के ज़रिये भी यह फैल सकता है.

तमिलनाडु स्वास्थ्य विभाग के उपनिदेशक डॉ आर मनोहरन ने बताया, "दो बार लापरवाही हो चुकी है... हमें संदेह है कि खून को मंज़ूरी देने से पहले टेक्नीशियन ने HIV का टेस्ट किया ही नहीं... यह हादसा है, जानबूझकर नहीं किया गया... हमने जांच के आदेश दे दिए हैं, और युवक का भी उपचार किया जा रहा है..."

उन्होंने बताया, सरकार ने महिला तथा उसके पति के लिए वित्तीय मुआवज़ा तथा नौकरियां देने की पेशकश की है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2017 में दुनियाभर में HIV से संक्रमित तीन करोड़ 69 लाख लोगों में से सिर्फ 59 फीसदी को ही एन्टी-रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट दिया जा रहा था.

लेबल:

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

सप्लाई इंस्पेक्टर के गाड़ी से बड़ा हादसा ,एक व्यक्ति की मौके पर मौत सात घायल

विश्वपति वर्मा-
बस्ती डुमरियागंज मार्ग पर वाल्टरगंज थाना अंतर्गत नरायनपुर गांव के निकट भानपुर में तैनात सप्लाई इंस्पेक्टर की स्कार्पियो मंगलवार की शाम करीब पांच बजे राहगीरों पर कहर बनकर टूट पड़ी। जिसमे सात लोग घायल हो गए वंही एक की मौके पर ही मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार गाड़ी खुद सप्लाई इंस्पेक्टर रवि सिंह चला रहे थे।
                        प्रतीकात्मक तस्वीर
 घायलों को एंबुलेंस से जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। स्कार्पियो को क्रेन की मदद से हटाया गया तो उसके नीचे तीन बाइक व तीन साइकिलें फंसी मिली। मृतक की पहचान वाल्टरगंज थाने के बभनगावां बाबू निवासी रामकिशोर (45) के रूप में हुई।

घटना से आक्रोशित भीड़ ने स्कार्पियो में तोड़फोड़ शुरू कर दी। इस बीच वाल्टरगंज पुलिस मौके पर पहुंच गई और सप्लाई इंस्पेक्टर को हिरासत में लेकर थाने भेज दिया। भीड़ ने इसके बाद बस्ती-डुमरियागंज मार्ग पर जाम लगा दिया और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। हालत बिगड़ते देख सीओ सिटी आलोक सिंह, एसओ सोनहा शिवाकांत मिश्रा, एसओ वाल्टरगंज यशवंत सिंह फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए।
आक्रोशित लोग सप्लाई इंस्पेक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे थे। आला अफसरों ने उन्हें समझा-बुझाकर शांत कराया। सीओ सिटी ने बताया कि ग्रामीणों का आरोप है कि सप्लाई इंस्पेक्टर नशे में धुत थे। उनका मेडिकल कराया जाएगा। तहरीर मिलने पर उचित कार्रवाई की जाएगी

लेबल:

जब जहांगीर 1625-26 में दिल्ली के अपने अंतिम दौरे पर आए, तो उस समय क्रिसमस का मौसम था.


जब जहांगीर 1625-26 में दिल्ली के अपने अंतिम दौरे पर आए, तो उस समय क्रिसमस का मौसम था.

एक पुरानी, लेकिन विश्वसनीय कहानी, के मुताबिक़ इस अवसर का जश्न मनाने के लिए एक अर्मेनियाई व्यापारी, ख्वाजा मोर्टिनिफस ने उन्हें तोहफे में ओपोर्टो की शराब की पांच बोतलें दीं.
सम्राट इस तोहफे से बेहद खुश हुए और व्यापारी से पूछा कि वापसी के तोहफे के रूप में उसे क्या चाहिए.
ख्वाजा ने कहा कि उनके पास ईश्वर की कृपा से वो सब कुछ है जो वो चाहते हैं और सम्राट ने पहले ही उन्हें अपने साम्राज्य में व्यापार करने की अनुमति दे दी है.
जहांगीर ने उनकी टिप्पणी के लिए आभार व्यक्त किया, फिर भी उन्हें तोहफा देने की पेशकश की.
जहांगीर ने तोहफे के रूप में उन्हें गोलकोण्डा के खदान से निकला एक बेशकीमती हीरा दिया.
व्यापारी ने वो हीरा अपने संरक्षक मिर्ज़ा ज़ुल्करनैन को उपहार में दे दिया, जिन्हें अकबर अपना सौतेला भाई मानते थे और जिन्हें सम्बर (राजपुताना) का प्रशासक नियुक्त किया था, जहां मुगलों का नमक बनाने का कारखाना था.
अर्मेनिया के इसाई मिर्ज़ा ने उस हीरे को सोने की एक अंगूठी में जड़वाया जिसे वो लगभग पूरी ज़िंदगी पहनते रहे.

लेबल:

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

अम्बेडकर नगर में जलाए गए सीएम योगी आदित्यनाथ

विश्वपति वर्मा_

 सरदार सेना के नेतृत्व में  दलित छात्रा संजलि को आगरा में जलाकर मार डालने के विरोध में योगी सरकार का विरोध करते हुए प्रदेश के अंबेडकर नगर में पुतला फूंका गया


इस दौरान सरदार सेना के प्रदेश महासचिव आत्माराम पटेल ने कहा कि पितृसत्ता और पूँजीवाद का गठजोड़ स्त्री विरोधी अपराधों की जड़ में है जिससे आए दिन पूरे देश में स्त्री अपराधों में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. उन्होंहे कहा  कि सरकार इस मामले के प्रति  गम्भीर नही है।  यह तो इसी से पता चल जाता है कि हाल ही में आगरा में ज्वलनशील पदार्थ डालकर जलाई गई लड़की के मामले में इतने दिन बीतने के बाद भी अभी तक  किसी अपराधी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है।

उन्होंने सरकार के रवैये को गैरजिम्मेदाराना हरकत को  बताते हुए कहा कि यदि ऐसा ही रह तो आने वाले दिनों में जनता भी उग्र होकर सामने आएगी।

इस मौके पर फैजाबाद मंडल अध्यक्ष चंदन सिंह पटेल , चंद्रेश वर्मा ,आलोक वर्मा, सभाजीत वर्मा,,विनोद  वर्मा, प्रमोद वर्मा, संदीप गौतम , मनोज वर्मा, नरेन्द्र, वीरेंद्र, अरविंद वर्मा,तुलसीराम वर्मा,दिवाकर गौतम ,आशुतोष बर्मा , अतुल पटेल सहित दो दर्जन से अधिक लोग मौजूद रहे ।

लेबल:

रविवार, 23 दिसंबर 2018

देश को गर्त में ले जाने के लिए पर्याप्त है वर्तमान सरकारी व्यवस्था

विश्वपति वर्मा–

स्नातक की पढ़ाई के दौर से पहले ही हमने पत्रकारिता में हिस्सा ले लिया था इस लिए अच्छे लेखों , राइटरों एवं अच्छी व्यवस्था को पढ़ने एवं समझने की हमारी प्राथमिकता थी।

अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से स्नातक की पढ़ाई के दौरान प्राचीन इतिहास और राजनीतिक शास्त्र को हमने पढ़ा ।2500 वर्ष पूर्व की व्यवस्था और भारतीय लोकतंत्र में चल रही राजनीति को जब हमने समझा तो यह हमें यह लगा कि भारत के राजपुरुषों द्वारा चलाई जाने वाली व्यवस्था भारत को विनाश की तरफ ले जाने के लिए पर्याप्त है।

फाइनल ईयर में प्राचीन इतिहास के अध्याय को जब पढ़ रहा था तब मैंने समझा कि भारत की दशा और दिशा  देश के राजनेताओं ने पूर्ण रूप से खराब कर दिया है, प्रशासक के पास देश की व्यवस्था सुधारने के लिए या तो नीति नही है या नियत नही है क्योंकि हमने पढ़ा कि  595 ई. पूर्व में सोलन नामक व्यक्ति को एथेंस की व्यवस्था सुधारने के लिए आर्कन चुना गया था,सोलन कुशल व्यापारी, विद्धवान, कवि एवं बुद्धिमान व्यक्ति के साथ कुशल राजनैतिक था।

अपने उदार कानून व्यवस्था के लिए जाना जाने वाले सोलन में मानवतावादी कूट कूट कर भरी हुई थी जिसके चलते एथेंस की सामाजिक भेद भाव को खत्म कर सोलन ने अपने आप को इतिहास के पन्ने में जोड़ लिया।

मुझे यह बात लिखने की जरूरत क्यों पड़ी इसको भी थोड़ा विस्तार से बता देता हूँ।

सोलन जब आर्कन चुना गया तब उसे पता चला कि राज्य में उन लोगों को दास बना कर रखा गया है जिन्होंने साहूकारों या जमीदारों का ऋण नही चुका पाया है ,सोलन ने सबसे पहले ऋण न चुका पाने के एवज में दास बनाये गए लोगों का ऋण माफ कर उन्हें मुक्त करा दिया। आर्थिक दशा सुधारने के लिए माप तौल की प्रणाली को व्यवस्थित किया। मुद्रा नीति में सुधार किया अंगूर और जैतून की खेती का बढ़ावा दिया एवं उसके निर्यात को प्रोत्साहन दिया ।

अब आप सोच रहे होंगे सोलन ने कौन सी बड़ी बात कर दी थी , भारत मे भी पूर्व में कांग्रेस और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के साथ छत्तीसगढ़ ,राजस्थान एवं  मध्यप्रदेश की प्रांतीय सरकारों ने किसानों का ऋण माफ कर दिया है।

नही ....भारत की केंद्रीय एवं राज्य सरकारों ने सोलन की व्यवस्था पर काम नही किया ।

सोलन को पता था कि एक बार लोगों का ऋण माफ कर देने से लोग अमीर नही हो जाएंगे उनके लिए कुछ ऐसा किया जाए कि उन्हें ऋण लेने की जरूरत न पड़े , सोलन ने प्रांतीय व्यवस्था सुधारते हुए यह अनिवार्य किया कि प्रत्येक पिता अपने पुत्र को किसी न किसी व्यापार का शिक्षा प्रदान करेगा ,श्रमिक वर्ग कोई कर नही देगा , राज्य में नागरिकों के बच्चों को शारीरिक तथा बौद्धिक विकास पर बल देने के लिए खजाने को खोल दिया ,काव्य ,संगीत कला को उच्च स्थान दिया ,बलात्कार को गंभीर अपराध घोषित किया।

उसने राज्य की प्रशासनिक संस्थाओं का पुनर्गठन किया ,पुरानी और निराधार संस्थाओं को खत्म किया ,असेंबली की सदस्यता में संशोधन तथा सर्वोच्च न्यायालय का गठन किया ,देश के नागरिकों को आर्कन के निर्णय के विरुद्ध न्याय पाने के लिए अधिकार देने के साथ उसने तमाम ऐसे कार्य किये जिससे एथेंस क्रांति से बच गया।

वंही हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भारतीय लोकतंत्र के 7 दशक के आधुनिक युग मे भारतीय राजनेता वोट बैंक को जोड़ने के लिए किसानों का कर्ज माफ कर देना ही बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं जो देश के विनाश के लिये पर्याप्त है।

लेबल:

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

आगरा की संजिली को बस्ती में श्रद्धांजलि

विश्वपति वर्मा_
आगरा में 4 दिन पहले अज्ञात लोगों द्वारा आग के हवाले की गई 15 वर्षीय एक लड़की संजिली को श्रद्धांजलि दी गई ।
सरदार सेना के जिला महासचिव प्रभाकर दीप्ति वर्मा के नेतृत्व में आज शाम 6 बजे संजिली को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए अमरौली शुमाली के रामनगर चौराहे पर कैंडल मार्च निकाला गया उसके बाद अंजिली के चित्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।

इस मौके  पर प्रभाकर वर्मा ने कहा कि एक गरीब दलित लड़की को ज्वलनशील पदार्थ छोड़ कर जिंदा जला दिया गया लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा अभी तक उसे न्याय दिलाने के लिए किसी प्रकार का बयान जारी नही किया गया ,उन्होंने पूर्व में हुए कई घटनाओं को याद दिलाते हुए बताया कि जो राजनैतिक एवं पावँरफुल लोग हैं उनके सबंध में यदि कोई घटना होती है तो सरकार झुक जाती है ,सरकार स्वयं उस परिवार के पास पंहुचती है साथ ही साथ मुआवजा एवं संबल देने का काम करती है लेकिन एक जूता कारीगर की बेटी को जिंदा जला दिया गया लेकिन अभी तक किसी भी जिम्मेदार द्वारा गरीब लड़की के परिवार को किसी प्रकार का संबल नही दिया गया।
श्री वर्मा ने कहा कि हम लोग प्रदेश सरकार को सोमवार को चिट्ठी के माध्यम से मांग करेंगे कि संजिली के परिवार को 1 करोड़ रुपया मुआवजा राशि एवं उसकी बड़ी बहन को नौकरी दिया जाए ,क्योंकि जिस असहनीय दर्द को निर्दोष अंजिली ने झेला है वह देख और सुनकर के सहन करने लायक नही है।

 इस मौके पर प्रदीप  चंद्र वर्मा ,अभिषेक वर्मा, जमुना यादव,बलिराम ,उमाकांत सोनी ,अनिल विश्वकर्मा, राजेश यादव ,रामकुमार सोनी, रामपाल चौधरी ,सुरेश वर्मा,संजय चौधरी ,मुकेश मोदनवाल, सहदेव विश्वकर्मा,महेंद्र चौधरी, सहित कई लोगों ने हिस्सा लिया।

लेबल:

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

महिपाल पटेल यूथ बिग्रेड की बैठक ,संत गाडगे को श्रद्धांजलि

महिपाल पटेल "माही "यूथ बिग्रेड की बैठक मूड़घाट चौराहे पर किया गया ,बैठक  शुरू करने से पहले यूथ बिग्रेड द्वारा सबसे पहले संत गाडगे के 62 वें परिनिर्वाण दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।

बैठक में संत गाडगे की जीवन पर संबोधित करते हुए सरदार सेना के जिला अध्यक्ष ने बताया कि संत गाडगे वह व्यक्तित्व थे जिन्होंने लोगों के दुःख, दर्द को देखा और उससे उभरकर जनकल्याण के मार्ग पर लोगों को अग्रेषित किया। वे जीवनभर जनसेवा के लिए कार्य करते रहे। उन्होंने महाराष्ट्र के विदर्भ विभाग में जन्म लिया किन्तु उनका कार्य सर्वदूर फैला हुआ था, वे जानते थे कि भारत अधिकतर गांवों में बसा हुआ है। हमें इस देश को उन्नत बनाना है, तो सर्वप्रथम गांवों का विकास करना होगा। उसमें जो-जो कुरीतियां है, अंधश्रध्दा है, उसका नाश करना होगा।

बैठक को प्रभाकर वर्मा ने संबोधित हुए बताया की संत गाडगे अपना पूरा जीवन समाज के अंतिम पंक्ति में जीवन यापन करने वालों के उत्थान में समर्पित कर दिया वें जीवनभर भूखे को खाना, प्यासे को पानी, नंगे को वस्त्र, गरीब को शिक्षा, बेघर को घर, अंधे, लूले एवं मरीज को दवा, बेकार को रोजगार, पशु, पक्षियों को अभय, गरीब युवक-युवतियों का विवाह, दुःखी एवं निराशों को हौसला आदि बातों को अपने कार्य का सूत्र बनाया और इसी सूत्र को पूर्णत्व देने का कार्य वे जीवन भर करते रहे

बैठक को यूथ बिग्रेड के अध्यक्ष महिपाल पटेल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जंहा सभी राजनैतिक पार्टियां सरदार पटेल के नाम पर राजनीति कर रही हैं वंही किसानों के मसीहा सरदार पटेल को आज भी उपेक्षित रखा गया है माही ने कहा कि आज बस्ती जैसे शहर में सरदार पटेल की एक भी प्रतिमा स्थापित नही है जो न केवल सरदार पटेल पर राजनीति करने वाले लोगों के निजी स्वार्थ को प्रदर्शित करती है बल्कि देश के एक सच्चे सिपाही जिसने खंडित भारत को अखण्ड भारत का स्वरूप करने में विशेष योगदान दिया उसके जीवन काल खण्डों को दबाने का प्रयास कर रहे हैं।बैठक में सभी युवाओं ने सरदार पटेल के नाम पर शहर में म्यूजियम बनाने की मांग पर विचार किया ।

 इस मौके पर वीरेंद्र चौधरी, प्रदीप चन्द्र वर्मा,धैर्य जी पटेल, आकाश पटेल, विनय चौधरी , मनीष ,विकास, संजय चौधरी अरविंद ,सतीश, सुजीत पिंकू सहित दर्जनों युवा मौजूद थे

लेबल:

सपा-बसपा गठबंधन का परवान चढ़ा तो 1993 के मुकाबले क्या होगा परिणाम?

लखनऊ-पीसी चौधरी_

लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन अगर परवान चढ़ा तो उत्तर प्रदेश में 25 साल बाद यह दोनों पार्टियां फिर एकजुट होकर भाजपा से मुकाबिल होंगी। ऐसी स्थिति में कम से कम उत्तर प्रदेश में लोकसभा की चुनावी लड़ाई इस बार काफी कांटे की और दिलचस्प होगी। पुराने आंकड़ें कुछ ऐसा ही कहते हैं।

यह पहला मौका होगा जब दोनों दल लोकसभा चुनाव में एक साथ होंगे। 25 साल पहले यानी 1993 में दोनों दलों का जो गठबंधन हुआ था वह विधानसभा चुनाव में था। पर, उस चुनाव और लोकसभा के लिए 2014 में दोनों पार्टियों के पक्ष में पड़े वोटों को देखें तो यह बात साफ हो रही है कि गठजोड़ कड़ी चुनौती पेश करेगा।

कितना मजबूत होगा गठबंधन
1993 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 264 सीटों पर और बसपा ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सपा को 109 सीटें मिलीं तो बसपा को 67। भाजपा को 177 सीटें मिलीं थी। सपा और बसपा के गठबंधन के बावजूद भाजपा को दोनों से ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन भाजपा को रोकने के नाम पर कुछ और दलों के समर्थन से सपा और बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में 4 दिसंबर 1993 को सरकार बनाई। पर, यह सरकार लंबी नहीं चल पाई।

सपा और बसपा में महत्वाकांक्षाओं की टकराहट शुरू हुई और यह टकराव 2 जून 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस कांड तक पहुंच गया। राजधानी में मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस में  ठहरे मायावती और कांशीराम पर सपाइयों के हमले ने दोनों को अलग कर दिया। इसके बाद बसपा का भाजपा के साथ तीन बार गठबंधन हुआ। पर, लंबा नहीं चला।

लोकसभा चुनाव में पहली बार गठबंधन

बसपा ने प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर या प्रदेश सरकार बनाने के लिए तो गठबंधन किए लेकिन अभी तक लोकसभा चुनाव के लिए वह अकेले ही मैदान में उतरती रही है। यह बात अलग है कि 1991 में बसपा के संस्थापक कांशीराम को लोकसभा में भेजने के लिए मुलायम सिंह यादव ने मदद की थी।

उसी मदद का नतीजा था कि कांशीराम और मुलायम की नजदीकी ने 1993 में सपा और बसपा का गठबंधन कराया। पर, यह पहला मौका होगा जब बसपा लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके उतरने की तैयारी कर रही है।

ये है चुनावी गुणाभाग

लोकसभा चुनाव 1989 में पहली बार बसपा के दो सदस्य पहुंचे थे। इसके बाद यह संख्या क्रमश: बढ़कर 2009-2014 में 21 तक पहुंच गई। 2014 में बसपा को 19.60 प्रतिशत वोट मिले लेकिन सीट एक भी नहीं मिल पाई। सपा को 22.20 प्रतिशत वोट मिले और इसे लोकसभा की सिर्फ पांच सीटों पर जीत मिली। सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो यह 41.80 प्रतिशत पहुंच जाता है।

भाजपा को 42.30 प्रतिशत वोट मिले थे और इसके उम्मीदवार 71 सीटों पर जीते। इसके बाद विधानसभा 2017 के चुनाव में भी सपा को 21.8 प्रतिशत और बसपा को 22.2 प्रतिशत वोट मिले। मतलब सपा का तो वोट प्रतिशत कुछ घटा लेकिन बसपा का बढ़ गया। यह मिलकर 44 प्रतिशत हो जाता है। इसके बावजूद सपा और बसपा को क्रमश: 47 व 19 सीटें ही मिलीं। भाजपा को 39.7 प्रतिशत वोट ही मिला।

मतलब लोकसभा चुनाव के मुकाबले लगभग 2.10 प्रतिशत कम। बावजूद इसके पार्टी के 312 विधायक जीते। संभवत: इसी गणित ने सपा को कांग्रेस के बजाय बसपा के साथ रिश्ते बनाने को मजबूर किया है तो बसपा को भी लग रहा है कि सपा को साथ लिए बिना आगे बढ़ पाना मुश्किल है। कोई जरूरी नहीं है कि चुनाव में मत प्रतिशत का यही आंकड़ा दोहराया जाए लेकिन फिलहाल आंकड़ों के आधार पर सपा और बसपा का गठबंधन भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव की लड़ाई को कांटे की बनाता दिख रहा है।

लेबल:

नौकरियों के लिए नौटंकी बंद हो ,ठीक -ठीक बात करें अमित शाह और कमलनाथ

रवीश कुमार ,वरिष्ठ पत्रकार_

अगले पांच साल में 70 लाख रोज़गार और स्व-रोज़गार के अवसर पैदा करने का उत्तर प्रदेश की जनता को वादा करते हैं. मित्रों, उत्तर प्रदेश में स्थापित हर उद्योग में 90 प्रतिशत नौकरियां उत्तर प्रदेश के युवाओं को ही मिलें, हम सुनिश्चित करते हैं. मित्रों, सरकार बनाने के 90 दिन के अंदर सभी खाली पड़े सरकारी पदों की भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी..."

यह बयान अमित शाह का है, जो उन्होंने लखनऊ में BJP का घोषणापत्र जारी करते हुए दिया था. जनवरी, 2017 में अमित शाह अपना यह बयान BJP के घोषणापत्र से पढ़ रहे थे. एक साल बाद दिसंबर, 2018 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ऐसा ही एक बयान देते हैं.

"बहुत सारे लोग उद्योग में लग जाते हैं, अन्य प्रदेशों से आ जाते हैं, बिहार, उत्तर प्रदेश से, मैं उनकी आलोचना नहीं करना चाहता हूं, पर मध्य प्रदेश के नौजवान रोज़गार से वंचित हो जाते हैं. 70 प्रतिशत रोज़गार लोकल होगा..."

आप दोनों के बयान को ध्यान से पढ़ें. क्या आपका ध्यान उत्तर प्रदेश, बिहार वाले हिस्से पर ही जाता है? उत्तर प्रदेश और बिहार से दूसरे राज्यों में रोज़गार की तलाश में निकलने वाले युवाओं को किस पर गुस्सा आता होगा? ज़ाहिर है, उन्हीं नेताओं पर, जो इन दिनों उनके चैम्पियन बनने की नौटंकी कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के ही नौजवान पलायन करते हैं, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी पलायन होता रहता है.


हमें इस सवाल को दो स्तरों पर देखना होगा. स्थानिकता के नाम 70 से 90 प्रतिशत नौकरियों को रिज़र्व करने से भारत के संघीय स्वरूप पर क्या असर पड़ेगा, वह ढांचा सिर्फ संस्थाओं की इमारत में नहीं होता, लोगों के ज़हन में भी होता है. क्या ऐसा दिन आने वाला है कि हम डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका की तरह राज्यों के बीच सीमेंट की ऊंची दीवारें बनाएंगे, ताकि कोई दूसरे राज्य में न जा सके. फिर आप रोज़गार की वास्तविक स्थिति और उनसे जुड़ी संस्थाओं का भी हिसाब कीजिए.

अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के उद्योगों में 90 प्रतिशत नौकरी स्थानीय युवाओं को देने का वादा किया था. क्या इससे उत्तर प्रदेश के युवाओं को ज़्यादा भला हो गया? क्या उस फैसले से बिहार, मध्य प्रदेश वालों का हक मारा गया? उत्तर प्रदेश में BJP की सरकार बनने पर कितनी ऐसी फैक्टरी या कंपनी लगी हैं, जिनमें 90 प्रतिशत रोज़गार उत्तर प्रदेश के युवाओं को मिला है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोएडा में सैमसंग की फैक्टरी का उद्घाटन किया था, उसी का हिसाब दे दें कि 90 प्रतिशत लोकल युवाओं को रोज़गार मिला या नहीं. वैसे हमने उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नीति का भी अध्ययन किया, 90 प्रतिशत रोज़गार स्थानीय युवाओं को देने की बात नज़र नहीं आई. घोषणापत्रों को भूल जाना आम बात है.

वर्ष 2012 में शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि उद्योगों को 50 प्रतिशत रोज़गार स्थानीय युवाओं को देना होगा. जो 90 प्रतिशत तक देंगे, उन्हें दो साल की टैक्स छूट मिलेगी. क्या मध्य प्रदेश की सरकार बता सकती है कि इस नीति के बाद कितने ऐसे उद्योग आए, जिसमें स्थानीय युवाओं को 50 प्रतिशत रोज़गार मिला? कोई तथ्य रख सकती है, जिससे इस फैसले के असर की बेहतर समीक्षा हो सके? यह आंकड़ा संख्या में दिया जाए, प्रतिशत में नहीं. क्या नए मुख्यमंत्री कमलनाथ इन तथ्यों पर कोई श्वेतपत्र जनता के सामने रख सकते हैं? इंटरनेट पर सर्च करेंगे, तो कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और हिमाचल प्रदेश में स्थानीय नौजवानों को 70 से 90 प्रतिशत नौकरी देने की नीति या योजना से जुड़ी कई ख़बरें मिल जाएंगी.

अब ज़रा हर राज्य में सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया और इससे जुड़ी संस्थाओं का भी हिसाब कर लेते हैं. क्या उत्तर प्रदेश का लोकसेवा चयन आयोग अपने राज्य के नौजवानों के प्रति ईमानदार और पारदर्शी है, क्या बिहार का आयोग है, क्या मध्य प्रदेश का व्यापम है? आप इनकी नौकरी देने का रिकॉर्ड देखिए. बहुत सी नौकरियां तो ऐसी हैं, जिनका विज्ञापन निकला, फॉर्म फीस के नाम पर करोड़ों रुपये वसूले गए और उस परीक्षा का पता ही नहीं चला. जो परीक्षाएं हो गईं, वे भी धांधली से लेकर देरी और फिर मुकदमेबाज़ी के चक्र में फंसकर रह जाती हैं.

अमित शाह बता दें कि वादे के अनुसार 90 दिनों में उत्तर प्रदेश में कितने पदों को भरने की प्रक्रिया आरंभ हुई? वह प्रक्रिया कितने दिनों में पूरी हो रही है, यह भी बता दें. सिर्फ अमित शाह ही नहीं, नीतीश कुमार, अमरिंदर सिंह, ममता बनर्जी सब बता दें.

अभी इसी साल उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब 68,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती निकाली. इसी की परीक्षा में धांधली हो गई. जिसे टॉप करना था, उसे फेल कर दिया गया और फेल करने वाले पास कर दिए गए. अदालत के आदेश से कॉपी चेक हुई, तो अंकित वर्मा टॉपर निकला, जबकि उसे फेल कर दिया गया था. यही नहीं, अखिलेश यादव की सरकार में 68,000 शिक्षकों की बहाली निकली. प्रक्रिया पूरी हो गई, मगर नई सरकार ने समीक्षा के नाम पर रोक लगा दी. अदालत के कई आदेशों के बाद इन्हें नौकरी देने के लिए कहा गया, तो भी नौकरी नहीं दी गई. नौजवानों को अपने ही राज्य से नौकरी के लिए अनगिनत धरना-प्रदर्शन करना पड़ा. अभी भी कई हज़ार युवाओं को नौकरी नहीं मिली.

मैंने 'Prime Time' की नौकरी सीरीज़ में इन चयन आयोगों से परेशान युवाओं पर 50 से अधिक एपिसोड किए हैं. आज भी कर रहा हूं, बस, अब एपिसोड की गिनती बंद कर दी है. आप चाहें, तो स्वतंत्र रूप से सारे एपिसोड निकालकर ऑडिट कर सकते हैं. बल्कि मैं चाहता हूं कि कोई नौकरी सीरीज़ और उसके असर का स्वतंत्र ऑडिट करे. इस सीरीज़ के दौरान 30,000 से अधिक छात्रों को नियुक्तिपत्र मिला है, जिन्हें रिज़ल्ट आने के बाद भी साल-साल भर से इंतज़ार करना पड़ रहा था. यह संख्या भी अंतिम नहीं है, क्योंकि मैंने 30,000 के बाद गिनती बंद कर दी.

मैंने इस कामयाबी को अपना या अपने चैनल का ढिंढोरा पीटने का ज़रिया भी नहीं बनाया. दूसरा कोई चैनल होता, तो दिन-रात यही चलता है कि हमारा असर, 30,000 को मिला नियुक्तिपत्र. मेरी यह आदत नहीं है. जब भी प्रोमो टीम आई, उन्हें यही समझाया कि मैं ऐसा नहीं चाहता हूं. प्रोमो चलेगा, तो मैं यह लोड नहीं उठा सकूंगा. क्योंकि एक एपिसोड के साथ सैकड़ों नहीं, हज़ारों नौजवानों के मैसेज आ जाते थे कि हमारी भर्ती की समस्या दिखा दें.

इसलिए भी मैं अपनी कामयाबी का जश्न नहीं मना सका, क्योंकि जिस वक्त असर होने की ख़बर आती थी, उसी वक्त परेशान नौजवानों के भी रोते हुए मैसेज आने लगते थे. हर परीक्षा की कहानी भयावह है. नौजवानों की उम्र निकल गई और ज़िंदगी बर्बाद हो गई. नौजवान फोन कर बाकायदा रोते हैं. ऐसे मैसेज आज भी आए हैं, जब मैं यह लेख लिख रहा हूं. एक साल हो गया, लेकिन मैं इस नौकरी सीरीज़ के चक्र से नहीं निकल सका.

मेरी हालत यह हो गई कि हर एपिसोड में बोलना पड़ता है कि मैं नौकरी से जुड़ी सबकी समस्या नहीं दिखा सकता, क्योंकि मेरे पास संसाधन नहीं हैं. रिपोर्टर नहीं हैं. और वाकई इतनी समस्याएं हैं कि मैं सबका नहीं दिखा सका, इसलिए अपना ढिंढोरा नहीं पीट सका, क्योंकि अगले की पीड़ा मेरी वाहवाही से ज़्यादा ज़रूरी और गंभीर थी. इन नौजवानों को मीडिया और सरकारों ने फेल किया है. उत्तर प्रदेश, बिहार को लेकर जो डिबेट के नाम पर नौटंकी चल रही है, वह एक दिन का ड्रामा भर है.

आज सुबह ही मैसेज आया कि उत्तर प्रदेश में तीन साल से दारोगा की भर्ती की परीक्षा पूरी नहीं हो सकी है. एक साल पहले उत्तर प्रदेश पुलिस के भर्ती बोर्ड ने कंप्यूटर ऑपरेटर की परीक्षा रद्द की थी, अब तक उस परीक्षा का पता नहीं है कि दोबारा कब होगी. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने 2013 में इंजीनियरों के लिए फॉर्म निकाला. 2016 में उसकी परीक्षा हुई, मगर आज तक रिज़ल्ट का पता नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुलाई, 2017 में भर्ती निकाली. फास्ट ट्रैक अदालतों के लिए तीन साल के कॉट्रैक्ट पर 1,950 लोगों को रखा जाना था. सात महीने पहले रिज़ल्ट आ गया, मगर अभी तक किसी की ज्वाइनिंग नहीं हुई. यह इसलिए भी गौरतलब है कि यह हाल फास्ट ट्रैक अदालतों का है. यह इसलिए बताया कि नौकरी की समस्या को लेकर मेरी तल्खी वाजिब है. वह दिखावे की नहीं है.

राज्य सरकार का छोड़िए, केंद्र सरकार का भी वही हाल है. आप स्टाफ सेलेक्शन कमीशन का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए. SSC CHSL 2016 की परीक्षा पास करने के बाद 614 नौजवानों को मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज़ में ज्वाइनिंग नहीं हो रही थी. 16 फरवरी, 2018 को रिजल्ट आ गया था. पांच महीने बाद इन्हें कमांड का आवंटन हुआ, मगर उसके बाद भी नियुक्तिपत्र का पता नहीं चला. फरवरी से सितंबर आ गया, साधारण घरों के ये नौजवान दिल्ली आकर भटकने लगे. 12 सितंबर के 'Prime Time' में हमने इनकी व्यथा दिखाई. रक्षा मंत्रालय से लेकर तमाम दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते ये नौजवान थक चुके थे. उस वक्त रक्षामंत्री ने ट्विटर पर लिखा था कि हम पता लगाते हैं. तीन महीने तक कुछ नहीं हुआ. तीन राज्यों में हारने के बाद इन सबको नियुक्तिपत्र भेजा जा रहा है. 10 महीने से नौकरी पाकर भी बिना सैलरी के ये नौजवान सड़कों पर भटक रहे थे.

नौजवानों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी तुरंत बंद होनी चाहिए. नौकरी का सवाल नौटंकी का सवाल नहीं है. उत्तर प्रदेश, बिहार के नौजवानों को भी भावुक होने की ज़रूरत नहीं है. अन्य राज्यों के नौजवान भी उन्हीं की तरह मेहनत करते हैं. जितनी मेहनत बिहार के युवा करते हैं, उतनी ही महाराष्ट्र के युवा भी करते हैं. सभी को मिलकर यह देखना चाहिए कि सरकारें उनके साथ जो धोखा कर रही हैं, वह कब बंद करेंगी. यह देखना चाहिए कि जब वे अपने राज्य के भर्ती बोर्ड की बदमाशियों के खिलाफ संघर्ष करते हैं, तब कौन नेता उनके साथ खड़ा होता है. इस भावुकता में पड़ने से पहले भर्ती को लेकर अपने धरना-प्रदर्शनों की संख्या ही गिन लेनी चाहिए.

प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों का बुरा हाल है. उससे भी बुरा हाल है, सरकारी सेक्टर की नौकरियों का. नौकरियां घटाई जा रही हैं. जो हैं, वे समय पर नहीं दी जा रही हैं. सरकारों के पास कितनी नौकरियां हैं, वह भी रीयल टाइम में जानने का हमारे पास कोई तरीका नहीं है. इसलिए मेरे लिए यह सवाल उत्तर प्रदेश, बिहार की भावुकता का नहीं है, एक बेहतर व्यवस्था की उम्मीद का सवाल है. क्या कांग्रेस की सरकारें कुछ अलग करेंगी? क्या BJP की सरकारें अब से कुछ बेहतर करेंगी?

लेबल:

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

किसानों की आय दोगुना करने की सरकार के पास कोई योजना नही-राज्य मंत्री

मल्टीमीडिया डेस्क,श्रोत -एनडीटीवी

संसद में चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा है कि सरकार की ओर से खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से किसानों की आय को दोगुनी (Doubling the income of farmers) करने की कोई योजना सरकार नहीं बना रही है.

 मंत्री का यह दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस दावे के उलट है, जिसमें उन्होंने 2022 तक किसानों की आय डबल करने की दिशा में सरकार की कोशिशों का हवाला दिया था.हालांकि मंत्री ने यह जरूर कहा कि किसानों की आय बढ़ाने पर जोर देने के लिए कुछ योजनाओं पर जरूर काम हो रहा है. 

दरअसल, सांसद आर पार्थिपन और  जोएस जॉर्ज ने सरकार से कई सवाल पूछे थे, इसमें सवाल नंबर (क) था-  क्या खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि सरकार खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से किसानों की आय को दोगुना करने की कोई योजना बना रही है ? यदि हां तो ब्यौरा क्या है ? इस पर 18 दिसंबर को दिए लिखित जवाब में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने (क) सवाल के जवाब में उत्तर लिखा- जी नहीं. मतलब किसानों की आय दोगुनी करने को लेकर सरकार कोई योजना नहीं बना रही है. 

मंत्री ने कहा- आय बढ़ाने पर जोर

सांसदों के सवाल पर अपने लिखित जवाब में मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने यह जरूर कहा कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के प्रोत्साहन और विकास के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय केंद्रीय क्षेत्र की एक स्कीम-प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना को संचालित कर रहा है. पीएमकेएसवाई एक व्यापक पैकेज है, जिसका उद्देश्य अन्य बातों के साथ कृषि उत्पादों की बर्बादी को कम करना और देश में खाद्य प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना है. ताकि  कच्ची सामग्री के रूप में कृषि उत्पादों की मांग बढ़ाई जा सके. जिसके जरिए किसानों को कृषि उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकें और वे अपनी आय बढ़ा सकें.

लेबल:

बद्री की दुल्हनिया गाने पर लड़की और छात्रा से डांस करा रहे मास्टर साहब

उमेश  कुमार ,


शिक्षा व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जंहा पर भविष्य की संभावनाएं होती हैं जंहा से दुनियाभर के कोने कोने में संचालित व्यवस्था को समझने के लिए ज्ञान पैदा होता है ,जंहा से व्यापार एवं सेवा के क्षेत्र में निकलने वाले लोग किताबी ज्ञान अर्जित करते हैं ,यही वह संस्था है जंहा  से नौनिहालों को जिस दिशा में चाहो उस दिशा में मोड़ कर उनके हालात एवं दशा को बदला जा सकता हैं ,लेकिन जब शैक्षणिक संस्थानों में  फूहड़ गानों के बीच अध्यापक द्वारा रंगारंग कार्यक्रम का  लुफ्त उठाया जाये तो इन बच्चों को क्या सीख मिलेगी यह बताने के  लिये  शब्दों का चयन करने का तरीका मुझे नहीं पता है। 

अब मुद्दे पर चलते हैं ,बस्ती  जनपद के सल्टौआ ब्लॉक के अंतर्गत अजगैवा जंगल में स्थिति पूर्व माध्यमिक विद्यालय की स्थिति ठीक नहीं  है ,पठन पाठन की व्यवस्था को ध्वस्त  करके अध्यापकों का नेतागीरी के अलावां अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में कोई रूचि नहीं है , स्कूल की हालत यह है की  बंद कमरे में होम थियटर लगा कर '' बद्री की दुल्हनिया '' के गाने पर बच्चियों एवं एक अन्य लड़की से डांस कराया जा रहा है। 

यह पूरा वाकया तहकीकात समाचार प्रतिनिधि  के कैमरे में तब कैद हुआ जब स्कूल के आठवीं क्लास के दरवाजे को बंद कर अध्यापक द्वारा बद्री की दुल्हनिया गाने पर  एक लड़की से डांस करवाया जा रहा था ,लड़की कौन है यह पूछने पर  अपने आप को एक अध्यापिका बता रही थी  , वंही कमरे में मौजूद छात्राओं से भी गाने पर डांस कराया जा रहा था। 

देखें  वीडियो -

केंद्रीय मंत्री का एक और जुमला परेशान न हों खाते में आएंगे 15 लाख

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उठा '15 लाख रुपये' खाते में आने का मुद्दा एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने इस पर अजीबोगरीब बयान दिया है। आठवले ने कहा कि सरकार लोगों को 15 लाख रुपये देने के लिए आरबीआई से रुपया मांग रही है। महाराष्ट्र के सांगली में एक कार्यक्रम के दौरान आठवले ने ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा, '15 लाख रुपये धीरे-धीरे आएंगे, एक बार में नहीं। रिजर्व बैंक से इसके लिए रुपया मांगा गया है, लेकिन वे नहीं दे रहे हैं। इसलिए रुपया इकट्ठा नहीं हो रहा है। इसमें कुछ तकनीकी समस्याएं हैं।' अपने बयानों के लिए मशहूर महाराष्ट्र के नेता और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत पर कहा था, ' राहुल गांधी ने तीन राज्यों में अच्छी जीत हासिल की है। वह अब 'पप्पू' नहीं हैं लेकिन 'पप्पा' बन गए हैं।'


उन्होंने कहा था, 'राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी की चुनावी हार मोदी की हार नहीं है। यह हार बीजेपी की है न कि नरेंद्र मोदी की। रामदास आठवले रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (ए) के अध्यक्ष हैं। उनकी यह पार्टी सत्ताधारी एनडीए का एक घटक दल है। अपने बयान में आठवले ने शिवसेना को बीजेपी से गठबंधन न तोड़ने की सलाह भी दी थी।


उन्होंने कहा था, 'शिवसेना को बीजेपी के साथ अपना गठबंधन बनाए रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो इससे शिवसेना को ही नुकसान होगा। मैं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के सपनों को पूरा करने की अपील करता हूं। उसे (सेना) अकेले चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। कांग्रेस को यह धारणा नहीं रखनी चाहिए कि वह राफेल सौदे को बार-बार उठाकर 2019 का चुनाव जीत लेगी।'

लेबल:

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

सरकार के इस कदम से पेट्रोल होगा इतना सस्ता

नीति आयोग की देखरेख में सरकार देश भर में 15 फीसदी मेथेनॉल मिला हुआ पेट्रोल लाने की तैयारी कर चुकी है. यही नहीं गाड़ियों का ट्रायल भी जोर-शोर से शुरू हो गया है. इस पूरी कवायद से पेट्रोल के दाम 10 रुपए तक घट सकते है।

आपको बात दें कि मेथेनॉल कोयले से बनता है. फिलहाल पेट्रोल-डीजल में इथेनॉल मिलाया जाता है. इसे गन्ने से बनाया जाता है. जिसकी लागत प्रति लीटर 42 रुपये आती है. वहीं, मेथेनॉल की लागत 20 रुपये प्रति लीटर आती है

.क्या है सरकार की नई योजना

मेथेनॉल से गाड़ियां चलाने की तैयारी पर तेजी से काम हो रहा है.

 15 फीसदी मेथेनॉल मिले हुए पेट्रोल से गाड़ियां चलनी शुरू हो गई है.

 नीति आयोग की निगरानी में पुणे में ट्रायल रन शुरू हो चुका है.

मेथेनॉल मिला हुआ पेट्रोल 8-10 रुपये तक सस्ता होगा.

 पुणे में मारुति और हुंडई की गाड़ियों पर ट्रायल हो रहा है.

2-3 महीने में ट्रायल रन के नतीजे आ जाएंगे.

 नतीजों के बाद मेथेनॉल मिला पेट्रोल मिलना शुरू होगा.

 एथेनॉल के मुकाबले मेथेनॉल काफी सस्ता है
एथेनॉल 40 रुपये प्रति लीटर हैं. वहीं, मेथेनॉल 20 रुपये लीटर से भी सस्ता है.
मेथेनॉल के इस्तेमाल से प्रदूषण घटेगा.कहां से आएगा मेथनॉल घरेलू उत्पादन बढ़ाने और इंपोर्ट पर सरकार का फोकस है.
 RCF (राष्ट्रीय केमिकल एंड फर्टिलाइजर) GNFC (गुजरात नर्मदा वैली फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन) और असम पेट्रोकेमिकल जैसी कंपनियों के क्षमता विस्तार की तैयारी पूरी कर चुकी है.
मेथेनॉल इंपोर्ट करने के लिए नीति आयोग ने बोलियां मंगाई है.
बोलियां आने के बाद इंपोर्ट प्राइस तय किया जाएगा.
चीन, मेक्सिको और मिडिल ईस्ट से मेथेनॉल का इंपोर्ट किया जा सकता है।


  वर्ष 2003 में भारत में पेट्रोल में 5 फीसदी की इथेनॉल मि‍क्‍सिंग को अनिवार्य कि‍या गया था. इसका मकसद था पर्यावरण की सुरक्षा, वि‍देशी मुद्रा की बचत और कि‍सानों का फायदा. अभी 10% तक ब्‍लेंडिंग की जा सकती है

लेबल:

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को कर्जमाफी जैसे वादे ही न करने दे-अर्थशास्त्रियों ने दिया सुझाव

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन सहित 13 अग्रणी अर्थशास्त्रियों ने देश के लिए जो आदर्श आर्थिक रणनीति सुझाई है, उसे व्यापक राजनीतिक विमर्श में लाया जाना चाहिए। इन विशेषज्ञों की यह महत्वपूर्ण पहल ऐसे समय में सामने आई है जब राजनीति में चर्चा का स्तर काफी छिछला हो गया है। अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों के इन जानकारों के बीच आम सहमति पर आधारित ‘आर्थिक रणनीति’ शीर्षक इस पत्रक से राय यह उभरती है कि देश जिन चुनौतियों से गुजर रहा है, उनमें तीन सबसे महत्वपूर्ण बिंदु हैं- रोजगार, किसान और पर्यावरण।

दुर्भाग्यवश, पर्यावरण को अभी तात्कालिक महत्व के सवालों में नहीं गिना जाता। उसके बारे में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब बोला जाता है, लेकिन बड़े आर्थिक फैसले लेते वक्त इस पर सोचने की जरूरत नहीं महसूस की जाती। रणनीति पत्र पर्यावरण को लेकर एक ऐसा स्वतंत्र नियामक गठित करने की जरूरत बताता है, जिसे सिर्फ महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सके। मकसद यह कि देश का राजनीतिक नेतृत्व पर्यावरण संबंधी चिंताओं को अपनी सुविधा और जरूरत के मुताबिक मनचाहे ढंग से मुल्तवी न कर सके। कृषि संकट की गंभीरता को रेखांकित करते हुए भी यह रणनीति पत्र कर्जमाफी का पुरजोर विरोध करता है। रघुराम राजन की राय है कि चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को चुनाव में किसान कर्जमाफी जैसे वादे ही न करने दे।
इन आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज माफी के बजाय किसानों की आमदनी बढ़ाना और ग्रामीण रोजगार योजना पर जोर देना देश के लिए ज्यादा कारगर विकल्प है। कर्जमाफी जैसे कदम वित्तीय और चालू खाते का घाटा बढ़ा देते हैं, जिससे आर्थिक स्थिरता के मोर्चे पर समस्याएं बढ़ने लगती हैं। रणनीति पत्र रोजगार की कमी को गंभीरता से रेखांकित करते हुए कहता है कि देश में सालाना एक से सवा करोड़ रोजगार सृजित किए जाने जरूरी हैं, जबकि फिलहाल इसका एक बेहद छोटा हिस्सा ही सृजित हो पा रहा है। इन अर्थशास्त्रियों ने यह भी गौर किया है कि निजी क्षेत्र में बढ़ती असुरक्षा और बदतर होती सेवा शर्तों के चलते ज्यादातर युवा सरकारी नौकरियों में घुसने की कोशिश में लगे रहते हैं और इस क्रम में अपने कई साल बर्बाद कर देते हैं। रणनीति पत्र बड़े पैमाने पर अर्ध-कुशल नौकरियों की गुंजाइश बनाने, वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और तटीय क्षेत्रों से दूर के इलाकों में रोजगार उपलब्ध कराने की जरूरत को अलग से रेखांकित करता है।

इस दस्तावेज की सबसे खास बात यह है कि यह आर्थिक विकास को महज आंकड़ों में नहीं देखता। इसका जोर आर्थिक विकास से सामान्य लोगों को मिलने वाले ठोस फायदों पर है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि इसे कुछ अर्थशास्त्रियों की निजी राय के रूप में लेने के बजाय राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन अपनी अंदरूनी बहस का मुद्दा बनाएं।

लेबल:

रविवार, 16 दिसंबर 2018

सरदार सेना ने निकाला किसान अधिकार यात्रा

विश्वपति वर्मा_

  सरदार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष  डॉ. आर. एस पटेल के आह्वान में  पदाधिकारियों के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के कई जिलों में लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल  के 69वीं पुण्यतिथि व खेड़ा किसान आंदोलन के शताब्दी वर्ष के अवसर पर सरदार पटेल को श्रद्धांजलि अर्पित किया। 

अंबेडकर नगर जनपद में  सरदार सेना के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता सैकड़ों की संख्या में एकत्रित होकर  किसान अधिकार पदयात्रा निकालकर पटेल नगर स्थित सरदार पटेल प्रतिमा के पास कैंडिल जलाते हुए माल्यार्पण कर सरदार पटेल जी को श्रद्धांजलि अर्पित किया। 
                 इस दौरान सरदार सेना सरदार सेना के प्रदेश महासचिव आत्माराम पटेल ने अपने संबोधन में कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल नहीं होते तो अखंड भारत देश की जगह कई टुकड़ों के अनेक देश बन गये होते। सरदार पटेल देश के ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत देश से राजतंत्र समाप्त करके वास्तविक लोकतंत्र स्थापित करने का सराहनीय कार्य किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात आती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले आता है।  वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे।  आज हम सभी उनके पुण्यतिथि दिवस पर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आज जहां एक तरफ नेताओं के अंदर व्यक्तिवाद हावी है वहीं सरदार पटेल के अंदर राष्ट्र के प्रति समर्पण व त्याग था। उन्होंने राष्ट्र के खातिर देश के प्रथम गौरव प्रधानमंत्री पद को त्याग दिया। आज एक तरफ बीजेपी उनकी सबसे प्रतिमा बनाकर श्रेय लेना तो चाहती है।लेकिन काम उनके विचारधारा के विपरित करता है। सरदार पटेल ने आरएसएस पर वैन लगाया था लेकिन बीजेपी आरएसएस की विचारधारा पर काम करती है। आगे सरदार सेना के मंडल अध्यक्ष  श्री  चंदन सिंह पटेल ने कहा कि वे देश के किसानों के नेता थे किसानों का सबसे बड़ा आंदोलन खेड़ा आंदोलन जिसका शताब्दी वर्ष है इसलिए इस पुण्यतिथि पर हम सभी किसान अधिकार यात्रा निकालकर सरदार को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहे हैं।  इस मौके पर चंद्रेश वर्मा, धर्मेंद्र  वर्मा , गुलशन वर्मा ,प्रदीप वर्मा, कमलेश गौतम, सर्वेश चौधरी, आलोक वर्मा  अतुल पटेल ,मुकेश गौतम ,अशोक वर्मा ,उमेश कुमार, विरेंद्र राम जग विपिन अमर जीत,कुलदीप वर्मा, सुमित वर्मा,बृजेश सहित

लेबल:

अमेरिका ने पाकिस्तान को इन कारणों से किया ब्लैकलिस्ट

अमेरिका ने पाकिस्तान को उन देशों की ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है जहां धार्मिक आाजादी का उल्लंघन होता. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले सुलूक के कारण उसे इस लिस्ट में डाला गया है.


अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉमपेयो ने कहा है कि पाकिस्तान को 'खास चिंता वाले देशों' में रखा गया है. इसका मतलब है कि अमेरिका पाकिस्तान पर धार्मिक आजादी के उल्लंघन को रोकने के लिए दबाव डालेगा और जरूरत पड़ी तो इसके लिए प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय इससे पहले पाकिस्तान की निंदा करने से बचता रहा है क्योंकि वह अफगानिस्तान में अमेरिकी बलों के पहुंचने के लिए अहम मार्ग है. पिछले साल अमेरिका ने पाकिस्तान को विशेष निगरानी सूची में डाल दिया, जो ब्लैकलिस्ट करने की तरफ एक कदम था. इसके अलावा अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद को भी रोक दिया.
मानवाधिकार संस्थाएं लंबे समय से पाकिस्तान में शिया, ईसाई और अहमदिया समेत अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर आवाज उठाती रही हैं. पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में डालने की सबसे बड़ी वजह शायद ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा पाने वाली ईसाई महिला आसिया बीबी का मामला है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बरी किए जाने के बाद रिहा नहीं किया गया है.
जानिए कौन है आसिया बीबी
अमेरिका के राजदूत सैम ब्राउनबैक ने प्रधानमंत्री इमरान खान के शासन में धार्मिक आजादी को लेकर उम्मीद जताई लेकिन उनके मुताबिक पाकिस्तान का अब तक रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है. उन्होंने कहा, "दुनिया में जितने भी लोग ईशनिंदा के आरोप में सजा काट रहे हैं, उनमें से आधे पाकिस्तान में हैं."
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सरकार अकसर उन लोगों को पकड़ने में नाकाम रहती है जो धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा करते हैं या उनकी हत्या तक कर देते हैं. उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि पाकिस्तान का नया नेतृत्व स्थिति को सुधारने के लिए काम करेगा. हाल में इस तरह के कुछ उत्साहवर्धक संकेत मिले भी हैं."
धार्मिक आजादी का उल्लंघन करने वाले देशों की इस अमेरिकी ब्लैकलिस्ट में पाकिस्तान के अलावा नौ देश और हैं जिनमें चीन, इरिट्रिया, ईरान, म्यांमार, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्मेनिस्तान शामिल हैं. अमेरिका ने उज्बेकिस्तान को इस लिस्ट से हटा दिया है लेकिन उसे निगरानी लिस्ट में रखा गया है. ब्लाउनबैक कहते हैं कि इस मध्य एशियाई देश में धार्मिक आजादी को लेकर खासी प्रगति हुई है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के लिए धार्मिक आजादी एक अहम प्राथमकिता है, खासकर इसलिए भी कि उन्हें चुनाव में इवांगेलिकल ईसाईयों का भारी समर्थन मिला था. हालांकि सऊदी अरब जैसे सहयोगी देशों के मामले में ट्रंप मानवाधिकारों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं.
धार्मिक आजादी के मामले में रूस को निगरानी वाले देशों की सूची में रखा गया है. इसके अलावा चीन में उइगुर लोगों के साथ भेदभाव को लेकर ब्राउनबैक ने खास तौर से चिंता जताई. उन्होंने इसे दुनिया भर में मानवाधिकारों के उल्लंघनों की सबसे खराब मिसालों में से एक करार दिया.

लेबल:

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

भवन बना तो जरूर मगर इस्तेमाल में नहीं लाया गया


बस्ती: जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए डेढ़ दशक पूर्व बस्ती बांसी रोड पर मड़वानगर मोहल्ले में आलीशान भवन का निर्माण सरकार ने कराया था। भवन बना तो जरूर मगर इस्तेमाल में नहीं लाया गया। यूपी टूरिज्म के इस भवन को वर्तमान समय में लोग शौच के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। बड़ेवन चौराहे से सटे बस्ती बांसी रोड और हाइवे के ठीक बीचोबीच स्थित बदहाल पर्यटन भवन पर आते जाते हर किसी की नजर पड़ती है। इस भवन का निर्माण कराने के पीछे सरकार की योजना थी कि इससे बस्ती में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लोग यहां आकर ठहरेंगे और बस्ती के पर्यटन स्थलों का भ्रमण करेंगे। सरकार की यह सोच धरी की धरी रह गई। आकर्षक भवन बनकर तैयार तो हुआ, मगर इसका प्रयोग नहीं हो पाया। नतीजतन समय के साथ ही यह बदहाल होता गया। भवन का मुख्य फाटक छोड़ दरवाजे गायब हो चुके हैं। खिड़कियों के शीशे टूट चुके हैं। भवन में लगे दरवाजों का पता नहीं है। आसपास के लोग कमरों में शौच करते हैं। सभी कमरों में गंदगी इतनी भरी है कि इसके पास पहुंचते ही नाक पर रुमाल रखनी पड़ती है। ऊपर के फ्लोर पर भी गंदगी भरी पड़ी है। सीढ़ी की रे¨लग भी टूट गई है। रसोईघर का फाटक गायब हो चुका है। दीवारों के प्लास्टर उखड़ने लगे हैं। पर्यटन भवन के सामने भारी मात्रा में झाड़ झंखाड़ उग आए हैं।

लेबल: ,

आखिर रातों रात कैसे स्थापित हुई बाबा साहब की मूर्ति

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के सिटी मार्केट में सुबह-सुबह अचानक लोगों को बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की मूर्ति दिखी. ये रहस्य बरकरार है कि छह फुट का प्लेटफॉर्म बना कर किसने और कैसे ये मूर्ति लगाई है. इस बात की जांच की जा रही है. लेकिन यह घटना अब चर्चा का मुद्दा बन गई है हर किसी को हैरत है कि  रातोरात 6 फीट का प्लेटफॉर्म बनाकर मूर्ति कैसे स्थापित कर दी गई. पार्किंग के ठेकेदार चंद्रू ने बताया, शाम में यहां कुछ भी नहीं था लेकिन जब सुबह आया तो यहां पर मूर्ति लगी हुई थी.


आपको बता दें कि सिटी मार्केट बेंगलुरु का ऐसा इलाका है जहां दिन का शोर थमते ही रात में फूलों का बज़ार सजने लगता है और पुलिस स्टेशन यहां से महज़ 50 मीटर की दूरी पर है. वहीं कर्नाटक सरकार के 11 जून 2012 के सरकारी आदेश में साफ कहा गया कि सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करके लोकनायकों की मूर्तियों की  स्थापना और धार्मिक स्थलों के निर्माण पर पूरी तरह रोक लगाई जाती है. स्थानीय पार्षद प्रेमलता ने कहा, 'हमे पता ही नहीं था जैसे ही पता चला हमने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी है'.

लेबल:

एक साल तक मोबाइल चलाना छोड़िये जीतिए 71 लाख का इनाम

 विश्वपति वर्मा _                               

बच्चों से लेकर बड़ों तक में मोबाइल फोन की लत (मोबाइल एडिक्शन) बढ़ती जा रही है। हालांकि, अगर आप 1 साल के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं तो आपके लिए एक शानदार ऑफर है। सिर्फ 1 साल के लिए मोबाइल का यूज बंद करके आप 100,000 डॉलर या करीब 71 लाख रुपये जीत सकते हैं। कोका-कोला के मालिकाना हक वाले ब्रैंड Vitaminwater (विटामिनवॉटर) ने एक शानदार कॉन्टेस्ट की घोषणा की है।

www.tahkikatsamachar.in 

इस कॉन्सेस्ट के तहत आपको पूरे एक साल के लिए मोबाइल फोन का यूज बंद करना होगा। हालांकि, इनाम जीतने से पहले आपको लाई-डिटेक्टर मशीन टेस्ट देना होगा, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कहीं आपने नियमों का उल्लंघन तो नहीं किया है। 'स्क्रॉल फ्री फॉर ए ईयर' कॉन्टेस्ट के तहत चुने गए प्रतिभागियों को एक साल के सेलुलर प्लान के साथ 1996 के समय का सेलुलर टेलीफोन दिया जाएगा। 


आप 8 जनवरी 2019 के पहले आवेदन कर सकते हैं। चुने गए प्रतिभागियों से उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए संपर्क किया जाएगा। इसके अलावा, आपको एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करना होगा, जिसमें इस बात का उल्लेख होगा कि आप अगले एक साल तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हालांकि, इस एक साल में आपको लैपटॉप या डेस्कटॉप के इस्तेमाल की इजाजत होगी। अगर टचस्क्रीन वाला स्मार्टफोन इस्तेमाल किए बिना आप छह महीने भी गुजार देते हैं तो भी 10,000 डॉलर (करीब 71,000 रुपये) जीत सकते हैं

लेबल:

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

पूर्व ग्राम प्रधान ने चकनाली पाट कर मनरेगा में बना दी सड़क

 

बस्ती

ग्राम रेंगी तहसील भानपुर जनपद बस्ती में मनरेगा के तहत ग्राम पंचायतों में मजदूरों को हर दिन रोजगार देने के लिए विकास क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में जोर शोर से सड़क बनाने का कार्य शुरू किया गया था। इस दौरान मिट्टी का कार्य तथा जलाशयों पर ज्यादा ध्यान दिया था। इससे ग्राम सभा की हर छोटी बड़ी चकरोड को जहां सड़क का रूप दिया गया वहीं खेतों में सिंचाई के लिए चकनाली 382 ,397  बनाई गई थी, पूर्ब ग्राम प्रधान के द्वारा वह भी मनरेगा की भेंट चढ़ गई। इससे किसानों के समक्ष सिंचाई की समस्या उत्पन्न हो गई है।

शासन के मंशानुरूप हर एक को रोजगार तथा ग्राम पंचायत की चहुओर विकास कार्यो से आच्छादित करने का मनरेगा योजना में प्रावधान किया गया है। विकास की आंधी में जहां चकरोड था उसे भी सड़क का रूप दे दिया गया। साथ ही साथ सिंचाई के लिए चकनाली राजस्व अभिलेखों में तथा मौके पर थी, वह भी मनरेगा की भेट चढ़कर निजी ब्यक्त के लिए सड़क बन गई जो की ग्राम रेंगी के  एक व्यक्ति द्वारा पेड़ पौधा लगा कर निजी प्रयोग में लाया जा रहा है । क्षेत्र के फूल चन्द चौधरी , शिव प्रसाद राम सिंह ,राम प्रकाश ,बेचन प्रसाद ,सुभाष चन्द ,संतराम ,ज्ञानदाश,राम चरन ,phool chand ,राम कुमार सुग्रीम. पप्पू चौधरी आदि लोगो  ने बताया कि मनरेगा के तहत कार्य का प्रस्ताव बना कर पूर्ब ग्राम प्रधान के द्वारा कार्य कराया गया  है। ऐसे ही सिंचाई के लिए चकनाली को भी सड़क का रूप दे दिया गया, जिससे किसानों को खेतों में पानी ले जाने के लिए परेशानी हो रही है। लोगों ने इसकी जांच और खोदाई  कराने की मांग प्रशासन से किया है।

लेबल: , , ,

जनता तय करे कि वह हार जीत का हिस्सा बनेगी या व्यवस्था परिवर्त की अपेक्षा करेगी

विश्वपति वर्मा_
हाल ही में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव में कोई जीत का जश्न मना रहा है तो कोई हार की समीक्षा कर रहा है ।

केंद्रीय सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को 2014 में आम जनमानस ने यह मानकर वोट दिया था कि देश मे गरीबी,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार पर नियंत्रण होगा।

लेकिन पांच साल पूर्ण होने वाले कार्यकाल में वर्तमान सरकार ने जमीनी हकीकत को न तो समझना चाहा और न ही चुनावी वादों को गंभीरता से लिया ।

ये तो सब जानते हैं कि कमलनाथ और शिवराज एक साथ बैठ कर चाय पी लेंगे लेकिन उनके कार्यकर्ता जो विधायक और सांसद चुनते हैं ,जो खुल कर किसी एक पक्ष के लिए राजनीतिक झंडा उठाते हैं वें कहीं के न रहे हैं।

लेकिन सत्ताधारी को इस बात की गंभीरता लेनी चाहिए कि जब वह संवैधानिक पद पर बैठता है तो राज्य व देश की जनता के लिए शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित करे।

हमे नही लगता कि केंद्र की मोदी सरकार ने देश की जनता के लिए कोई ऐसा कार्य किया हो जिससे वें गर्व से कह सकें कि सरकार और सरकार में फर्क होता है !क्या फर्क पड़ता है कांग्रेस के भ्रष्टाचार के दलदल वाली सरकार से और क्या फर्क दिखाई दिया निराधार मुद्दे पर पांच साल बिता देने वाली सरकार में।

पांच साल बीतने को हैं देश मे नई शिक्षा नीति का कोई पता लता नही है ,देश के परिषदीय विद्यालयों में ही नही समस्त सरकारी स्कूलों की यह स्थिति है कि न तो अध्यापक की संख्या पूरी है और न ही किसी प्रकार की कोई ठोस शैक्षणिक व्यवस्था है।

इसी प्रकार सरकार की समस्त संस्थाओं की स्थिति है जंहा पर सरकारी धन के बंदरबांट के लिए योजनाओं को तैयार करने की बारीकियों पर चर्चा होती है। देश भर के 46 फीसदी महिलाओं में खून की कमी और 22 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं ,लेकिन सरकारी महकमों में आज तक यह नही तय हो पाया कि पुष्टाहार और समाज कल्याण के पैंसे को कहां खर्च करना है।

पंचायती राज और ग्राम विकास के रास्ते भारत के गांवों और वँहा के निवासियों को समग्र एवं समेकित विकास के श्रेणी में लाने के लिए अकूत पैंसे खर्च किये जाते हैं लेकिन 2018 में केंद्र सरकार द्वारा  पंचायती राज को दिए  80,000,000,000 रुपया (80 अरब) कहाँ गया यह इसकी तस्वीर कुछ साफ नही है

इतना पैंसा मिलने के बाद भी यदि गांवों की बदहाल स्थिति में सुधार न आये तो यह स्पष्ट है कि जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा सही तरीके से खर्च नही किया गया आपको बता दें कि इन पैंसों से केवल ग्राम पंचायत के माध्यम से खर्च किया गया है  लेकिन पैसों के आंकड़ों का ये पक्ष जितना चमकदार है, इसकी दूसरी तस्वीर कई सवाल खड़े करती है।

देश मे किसानों की स्थिति हाशिये पर है अपने फसलों को लागत मूल्य से कम दाम पर बेंचने के लिए मजबूर हैं लेकिन उन्हें क्या फर्क पड़ता है अगर सब  कुछ ठीकठाक हो गया तो अगले चुनाव में मुद्दा ही क्या बचेगा ,फिर हार की समीक्षा और जीत के जश्न का तो कोई मतलब ही नही रहेगा क्योंकि जब देश विकसित हो जाएगा तो सरकार काहें के लिए खजाने से एक ही काम के लिए बार बार पैंसा भेजेगी।

आखिर मतदाताओं को ही यह तय करना होगा कि सरकार जनता के किस योजनाओं के लिए पैंसा खर्च करे, प्राथमिकताओं को तय करते हुए काम करने की जरूरत को लाने की आवश्यकता है या फिर राजनेताओं के सुखमय जीवन के लिए बड़े बड़े कार्यालय को खोलने की जरूरत है।

अब देश की जनता तय करे कि वह हार -जीत का हिस्सा बनेगी या फिर अपने आने वाली पीढ़ी के लिए सरकार से शिक्षा ,चिकित्सा, रोजगार ,भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बदलाव की अपेक्षा करेगी।

लेबल: